-राजेंद्र कुमार, लखनऊ-
पांच हजार साल पुराने, बाबा विश्वनाथ के इस शहर की चुनावी सरगरमी देख कर लगता है कि मानो यहां चुनाव नहीं, युद्ध लड़ा जा रहा है. राजनीतिक दलों का पहला और अंतिम लक्ष्य है, जीत. किसी भी कीमत पर और किसी भी तरीके से. कई सालों से जेल में बंद माफिया मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल द्वारा कांग्रेस के दबंग उम्मीदवार अजय राय को समर्थन के एलान पर वाराणसी के लोगों का तो फिलहाल यही कहना है. लोग मुख्तार और अजय राय की ताजी सियासी जुगलबंदी से भौंचक हैं. अजय राय के भाई की हत्या का आरोप मुख्तार अंसारी पर लगा था. इस चुनाव के पहले तक दोनों एक-दूसरे के सख्त खिलाफ थे. मगर, अब वाराणसी में नरेंद्र मोदी को शिकस्त देने के लिए दोनों साथ आने की बात कर रहे हैं. मुख्तार घोसी संसदीय सीट तथा उनके भाई अफजाल अंसारी बलिया सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. पहले इन दोनों ने वाराणसी में ‘आप’ के उम्मीदवार अरविंद केजरीवाल को समर्थन देने का संकेत दिया था.
पूर्वाचल के दो बाहुबली
2010 में कांग्रेस में शामिल हुए और 2012 में कांग्रेस के टिकट पर पिंडरा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीते. अजय राय पर हत्या के प्रयास, हिंसा भड़काने, हमला करने सहित विभिन्न थानों में कुल 16 मामले दर्ज हैं. उन पर गैंगस्टर एक्ट और गुंडा एक्ट भी लग चुका है. अपने आपराधिक इतिहास पर राय कहते हैं कि चार मुकदमे मायावती सरकार के शासनकाल में उन पर राजनीतिक साजिश के तहत लगाये गये. ज्यादातर में उन्हें क्लीन चिट मिलने वाली है. पूर्वाचल के माफिया सरगना बृजेश सिंह के करीबी माने जाने वाले अजय राय का मुख्तार अंसारी से बैर रहा है. अंसारी पर राय के भाई की हत्या का आरोप है.
मुख्तार अंसारी : मुख्तार अंसारी का परिवार गाजीपुर में बहुत प्रतिष्ठित है. देश के उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी से उनके परिवारिक रिश्ते हैं. मुख्तार के एक भाई देश के नामी पत्रकार हैं. देश की न्यायपालिका से उनके परिवार का गहरा नाता रहा है. मऊ विधानसभा क्षेत्र से विधायक मुख्तार अंसारी पर हत्या का पहला मामला 1985 में सामने आया. मऊ दंगे के आरोपी मुख्तार पर एक दर्जन हत्याओं का आरोप है. उनका आपराधिक जाल पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर, वाराणसी, जौनपुर, देविरया, आजमगढ़, मऊ, गोरखपुर, बलिया, गोंडा, फैजाबाद सहित डेढ़ दर्जन जिलों में फैला है. उस पर लगभग डेढ़ दर्जन मुकदमे दर्ज हैं.
दिल्ली के कालकाजी थाने में दर्ज प्रतिबंधित विदेशी हथियार रखने के मुकदमे में उन पर टाडा लग चुका है. एक अपहरण के मामले में 1993 में गिरफ्तार हुए अंसारी ने पुलिस को दिये बयान में 10 हत्याओं की बात कबूली थी. विधायक कृष्णानंद की हत्या में भी पुलिस उन्हीं का हाथ मानती है. पुलिस उन्हें जिहादियों का हमदर्द बताती है. नेपाल के मिर्जा दिलशाद बेग के जरिये मुख्तार के आइएसआइ और बिहार के बाहुबली शहाबुद्दीन से संबंध होने के दावे उप्र की पुलिस करती रही है.
मौका देख राजनीतिक पाला बदलने में माहिर मुख्तार और अफजल अंसारी ने कौमी एकता दल का गठित किया है. इस दल के बैनर तले ही मुख्तार ने बीते विधानसभा चुनाव में कई सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. खुद मुख्तार ने जेल से चुनाव लड़ा और जीता. उन्हें राजनीतिक संरक्षण देने की शुरुआत मुलायम सिंह यादव ने 1993 में की थी. मुख्यमंत्री रहते मुलायम सिंह ने उन पर से हत्या के दो मुकदमों सहित कुल चार मामलों को वापस लेने का फैसला किया. बाद में जब मायावती मुख्यमंत्री बनीं तो उन्होंने मुख्तार को जेड श्रेणी की सुरक्षा देने का आदेश दिया. भाजपा शासन में कल्याण सिंह ने मुख्तार अंसारी के आपराधिक तंत्र को तोड़ने का काम किया.