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चार काम, जिनके लिए याद किये जायेंगे जस्टिस सतशिवम

-आज सेवानिवृत्त हो रहे हैं सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा मुख्य न्यायाधीश- ।। सेंट्रल डेस्क।। देश के प्रधान न्यायाधीश पी सतशिवम आज (26 अप्रैल को) सेवानिवृत्त हो रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के तौर पर केवल नौ महीने के छोटे कार्यकाल में उन्होंने ऐसे कानूनी फैसले दिये जो सालों तक नजीर बने रहेंगे. उन्होंने […]

-आज सेवानिवृत्त हो रहे हैं सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा मुख्य न्यायाधीश-

।। सेंट्रल डेस्क।।

देश के प्रधान न्यायाधीश पी सतशिवम आज (26 अप्रैल को) सेवानिवृत्त हो रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के तौर पर केवल नौ महीने के छोटे कार्यकाल में उन्होंने ऐसे कानूनी फैसले दिये जो सालों तक नजीर बने रहेंगे. उन्होंने कई पुराने, लेकिन अहम न्यायिक और प्रशासनिक फैसलों की समीक्षा की और जरूरत महसूस होने पर उनमें सुधार भी किया. पिछले साल जुलाई महीने में सर्वोच्च अदालत के मुख्य न्यायाधीश का पद संभालने से पहले ही सतशिवम उल्लेखनीय फैसलों की बदौलत सुर्खियों में आ चुके थे.

2010 में उन्होंने एके रामानुजन के चर्चित निबंध ‘300 रामायण’ को पाठय़क्रम से हटाने के सवाल पर दिल्ली विश्वविद्यालय को नोटिस भेजा था. 2013 में एक न्यायिक पैनल में रहते हुए उन्होंने 1984 के सिख विरोधी दंगों के चार आरोपियों की गुनहगारी को इस आधार पर बहाल किया कि देरी से दर्ज होने की वजह से कोई मामला निरस्त नहीं किया जा सकता. आइए, उनके चार ऐसे कामों को जानें जिनकी वजह से उन्हें मुख्य न्यायाधीश के तौर पर लंबे समय तक याद किया जायेगा :

1. मौत की सजा को मानवीय बनाया

इस साल जनवरी में जस्टिस सतशिवम ने एक न्यायिक बेंच की अध्यक्षता की, जिसने 11 दोषियों की मौत की सजा को इस आधार पर उम्रकैद में बदल दिया कि उनकी दया याचिकाएं सालों तक लटकी पड़ी रहीं और इस दौरान उन्हें काफी मानसिक यातना ङोलनी पड़ी. फरवरी में इस बेंच ने राजीव गांधी के हत्यारों की भी मौत की सजा को उम्रकैद में इस आधार पर बदला कि उनकी दया याचिकाओं पर फैसला होने में जरूरत से ज्यादा देर हो चुकी थी. मार्च के अंत में इस बेंच ने देविंदर पाल सिंह भुल्लर की मौत की भी सजा को उम्रकैद में बदल दिया.

खालिस्तानी आतंकवादी भुल्लर को 1993 के दिल्ली बम धमाके के लिए 2001 में दोषी ठहराया गया था. ये न्यायिक फैसले केवल यही स्थापित करते हैं कि दया याचिकाओं पर फैसला लेने में देरी के आधार पर मौत की सजा को निरस्त किया जा सकता है.

2. चुनाव सुधारों का रास्ता खोला

कुछ दिनों पहले नरेंद्र मोदी को अपनी उम्मीदवारी का परचा दाखिल करते हुए अपनी शादी की बात स्वीकार करनी पड़ी, इसकी वजह सतशिवम ही रहे. एक गैर-सरकारी संगठन ‘रिसर्जेट इंडिया’ की याचिका पर फैसला सुनाते हुए उन्होंने कहा कि निर्वाचन पदाधिकारी ऐसे नामांकन पत्रों को रद्द कर सकते हैं, जिनमें उम्मीदवार ने सूचनाएं गलत या अधूरी दी हों. इसकी वजह यह है कि मतदाताओं को अपने प्रत्याशी के बारे में सब कुछ जानने का अधिकार है. एक अन्य मामले में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (इवीएम) में संभावित छेड़छाड़ के संबंध में भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा उठाये गये सवाल पर जस्टिस सतशिवम ने पिछले साल अक्तूबर में चुनाव आयोग को ऐसी व्यवस्था तैयार करने का निर्देश दिया जिसमें मतदाता को इवीएम में अपना मत डालने के बाद एक छपी हुई परची दिखे, ताकि उसे भी यकीन हो कि उसका वोट किसे गया है. यह परची वोटर को आठ सेकेंड के लिए दिखेगी और वोटर इसे अपने साथ ले नहीं जा पायेगा.चुनाव सुधार की दिशा में सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिये गये निर्देशों में सबसे महत्वपूर्ण इवीएम में ‘इनमें से कोई नहीं’ यानी ‘नोटा’ का बटन है. जस्टिस सतशिवम की अध्यक्षता में बनाये गये एक पैनल ने यह सवाल उठाया कि पेपर बैलेट के जमाने में अगर किसी मतदाता को कोई उम्मीदवार पसंद नहीं होता था, तो वह मत पेटी में खाली मतपत्र डाल देता था, ऐसे में इवीएम में अगर नोटा का बटन होगा तो ऐसे लोगों की भी लोकतंत्र में भागीदारी बढ़ेगी, जो वर्तमान व्यवस्था या उम्मीदवारों को नापसंद करते हैं. हालांकि उन्होंने साफ किया कि नोटा वोटों की भारी संख्या का परिणाम नये चुनाव के रूप में नहीं होगा.

3. न्यायिक दक्षता बढ़ाने में योगदान किया

जस्टिस सतशिवम ने एक घोषित एजेंडे के साथ न्यायिक प्रणाली में प्रवेश किया. सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामलों को निबटाने में तेजी के साथ ही वे न्यायिक प्रणाली को व्यवस्थित बनाना चाहते थे. संवैधानिक प्रश्नों से संबंधित मामलों के निबटारे के लिए उन्होंने अगस्त में एक विशेष पीठ का गठन किया. साथ ही महिलाओं और बच्चों से जुड़े मामलों के लिए भी एक अतिरिक्त पीठ का गठन किया गया. यह अक्तूबर में स्थापित बेंच का ही परिणाम था, जिससे जनवरी में अभूतपूर्व संख्या में दया याचिकाओं को निबटाया गया. नवंबर 2013 में देश भर में लोक अदालतों के जरिये एक ही दिन में 35 लाख मुकदमों का निबटारा कर एक रिकॉर्ड बना. इस दिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनवाई के लिए लिये गये 107 मामलों में से 51 का निबटारा किया गया. राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण की पहल से राष्ट्रीय लोक अदालत का गठन किया गया, जिसे जस्टिस सतशिवम का सहयोग प्राप्त था.

4. जातिगत अत्याचारों पर दिखायी सख्ती

सिर पर मैला ढोनेवालों की दशा इस देश में जाति व्यवस्था का सबसे बड़ा अत्याचार है. समाज का यह ‘अछूत’ वर्ग मानव मल की सफाई और सीवेज पाइप में बिना किसी सुरक्षा उपकरण के प्रवेश करने के लिए बाध्य है. 28 मार्च को जस्टिस सतशिवम की अध्यक्षता वाली बेंच ने 1993 से लेकर अब तक सीवर की सफाई के दौरान जान गंवानेवाले लोगों के परिवारों को मुआवजे के रूप में 10-10 लाख रुपये स्वीकृत किये. सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनने से पहले जस्टिस सतशिवम ने न्यायिक सेवा में आरक्षण की बात उठायी थी. हालांकि उन्होंने इस आरक्षण को संस्थागत बनाने के बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहा, लेकिन उन्होंने यह अपील की कि न्यायिक सेवा के वरिष्ठ पदों पर आसीन लोगों को इस बारे में जरूरी कदम उठाने चाहिए. बीते जनवरी महीने में तमिलनाडु हाई कोर्ट के जज सीएस कर्णन ने भी जस्टिस सतशिवम की इस मांग का जोरदार समर्थन किया.

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