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इंडोनेशिया में चुनावः हम भी कुछ सीख सकते हैं

इस माह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के अलावा दुनिया के छह लोकतांत्रिक देशों में चुनाव हो रहे हैं, जिसमें तकरीबन 106 करोड़ मतदाता शामिल हो रहे हैं. इस चुनावी माह की शुरुआत अफगानिस्तान से हुई, जहां 5 अप्रैल को मतदान हुआ. 7 अप्रैल से भारत में भी आम चुनाव की शुरुआत हो चुकी […]

इस माह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के अलावा दुनिया के छह लोकतांत्रिक देशों में चुनाव हो रहे हैं, जिसमें तकरीबन 106 करोड़ मतदाता शामिल हो रहे हैं. इस चुनावी माह की शुरुआत अफगानिस्तान से हुई, जहां 5 अप्रैल को मतदान हुआ. 7 अप्रैल से भारत में भी आम चुनाव की शुरुआत हो चुकी है. आज 9 अप्रैल को इंडोनेशिया में लेजिस्लेटिव के लिए चुनाव हो रहा है. इंडोनेशिया की निर्वाचन व्यवस्था की प्रमुख खासियतों और भारत इनसे क्या सीख ले सकता है, जैसे बिंदुओं पर फोकस कर रहा है आज का नॉलेज..

दुनिया की सर्वाधिक मुसलिम आबादीवाला देश इंडोनेशिया उन चुनिंदा मुसलिम बहुल देशों में शामिल है, जो धर्मनिरपेक्ष बने हुए हैं. भारत से इसकी निकटता और अभिन्नता किस प्रकार की है, इस संदर्भ में इंडोनेशिया के पूर्व राष्ट्रपति सुकर्णो के वे शब्द याद करने होंगे, जिनमें उन्होंने कहा था- ‘हमारी नसों में भारतीय पूर्वजों का खून बहता है और हमारी संस्कृति भारत से लगातार प्रभावित रही है. दो हजार वर्ष पहले, आपके देश (यानी भारत) से लोग भाईचारे की भावना से जावाद्वीप और सुवर्णद्वीप पहुंचे. उन्होंने श्रीविजय, माताराम और मजापहित जैसे शक्तिशाली राज्यों की स्थापना की पहल की. उसके बाद हमने उन देवताओं की उपासना करना सीखा, जिनकी उपासना आप लोग (यानी भारतीय) अभी तक करते हैं और हमने एक ऐसी संस्कृति विकसित की, जो आपसे बहुत मिलजी-जुलती है. बाद में हमने इसलाम को अपना लिया, लेकिन हमारा धर्म भी हमारे पास उन लोगों के जरिये आया, जो सिंधु नदी के दो किनारों से यहां पहुंचे.’

सुकर्णो के इन शब्दों को कुछ समय पूर्व नीमराणा फोर्ट पैलेस में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रैटजिक स्टडीज (लंदन) द्वारा ‘रिथिंकिंग इंडियाज रोल इन वल्र्ड’ विषय पर आयोजित एक सम्मेलन में इंडोनेशियाई विद्वान एस द्विजवांदोनो ने जब दोहराया, तो लगा कि इंडोनेशिया वास्तव में भारत के बहुत करीब है. इसे देखते हुए लगता है कि भारत और इंडोनेशिया में केवल संस्कृति का ही नहीं, बल्कि अन्य व्यवस्थापरक विषयों में भी समरूपता होनी चाहिए. लेकिन क्या ऐसा है?

छह देशों में इस माह चुनाव

इस वर्ष का अप्रैल माह लोकतांत्रिक माह कहा जा सकता है, क्योंकि इस महीनें में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के साथ-साथ दुनिया छह लोकतांत्रिक देशों में चुनाव होने जा रहा है. इन चुनावों में लगभग 106 करोड़ मतदाता हिस्सा ले रहे हैं. इस चुनावी माह में चुनाव की शुरुआत अफगानिस्तान से हुई, जहां 5 अप्रैल को मतदान हुआ. अगले दिन 6 अप्रैल को हंगरी में मतदान हुआ और 7 अप्रैल से भारत में लोकसभा चुनाव का श्रीगणोश हुआ. अब भारत के पड़ोसी देश इंडोनेशिया में 9 अप्रैल को लेजिस्लेटिव के लिए चुनाव होगा. इसके अलावा 17 तारीख को अल्जीरिया में और 30 तारीख को इराक में चुनाव संपन्न होगा.

1955 से हो रहे हैं चुनाव

भारत और इंडोनेशिया के सांस्कृतिक रिश्ते बहुत ही घनिष्ठ रहे हैं और इतिहास कुछ समय तक एक जैसा. दोनों देशों ने लोकतांत्रिक व्यवस्था को चुना और दोनों ही देशों में अपेक्षित सुधारों के साथ लोकतंत्र अपनी गति से चल रहा है. इंडोनेशिया में चुनाव की प्रक्रिया 1955 से आरंभ हुई. राष्ट्रीय स्तर पर इंडोनेशिया के लोग राष्ट्राध्यक्ष के रूप में राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं और विधायिका का चुनाव करते हैं. यहां राष्ट्रपति का चुनाव पांच वर्षो के लिए होता है और इतनी ही अवधि के लिए पीपुल्स रिप्रेजेंटेटिव काउंसिल (डीपीआर) तथा रीजनल रिप्रेजेंटेटिव काउंसिल (डीपीडी) का चुनाव होता है. काउंसिल का चुनाव बहु-प्रत्याशी चुनाव क्षेत्रों (मल्टी कैंडिडेट कांस्टीटुएंसीज) से आनुपातिक प्रतिनिधित्व (प्रोपोर्सनल रिप्रेजेंटेशन) के आधार पर होता है.

मतदाता की न्यूनतम उम्र 17 वर्ष

महत्वपूर्ण बात यह है कि इंडोनेशिया की बहु-पार्टी व्यवस्था में अब तक लेजिस्लेटिव में कोई भी एक दल पूर्ण विजय नहीं प्राप्त करने में समर्थ नहीं हुआ है, बल्कि पार्टियों ने गंठबंधन सरकारों में एक साथ काम करने की ही जरूरत महसूस की है. इंडोनेशिया में वह व्यक्ति मतदान में हिस्सा ले सकता है, जिसने 17 वर्ष की उम्र पूरी कर ली हो और उसके पास पहचान पत्र हो. 5 जुलाई, 1971 को इंडोनेशिया में ‘न्यू ऑर्डर’ ने स्थान लिया और इसके बाद उसी के मुताबिक चुनाव हुआ. इस व्यवस्था पर आधारित चुनाव 1977-99 तक हुए, लेकिन न्यू ऑर्डर के खत्म हो जाने के बाद नवीन सुधार किये गये. अब इन्हीं सुधारों के आधार पर चुनाव हो रहे हैं. इसका एक परिणाम यह हुआ कि इंडोनेशिया में राजनीतिक दलों की संख्या कम हो गयी.

30 फीसदी महिला उम्मीदवार

इंडोनेशिया में आज यानी 9 अप्रैल को जो आम चुनाव होने जा रहे हैं, वे इससे पहले हुए चुनावों से कुछ अलग हैं, क्योंकि इस बार हर राजनीतिक दल को बाध्य किया गया है कि वे कम-से-कम 30 प्रतिशत महिला उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में लायें. इससे चुनावी मुकाबला काफी दिलचस्प हो गया है और अनुमान है कि 80 हजार से अधिक महिला उम्मीदवार इस बार चुनाव मैदान में अपनी-अपनी राजनीतिक किस्मत आजमा रही हैं.

हर क्षेत्र की महिलाओं का प्रतिनिधित्व दुनिया के तीसरे सबसे बड़े गणराज्य में होनेवाले चुनावों में महिलाओं की बड़ी संख्या में भागीदारी से इस देश में न केवल महिलाओं को अधिक सक्रिय भूमिका निभाने का अवसर प्राप्त होगा, बल्कि भारत जैसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को कुछ सीखने का मौका भी मिलेगा. फिलहाल भारत इस मामले में बहुत पीछे है. यहां महिलाआंे को संसद और विधायिकाओं में आरक्षण देकर राजनीतिक लाभों को भुनाने की कोशिश प्रत्येक राजनीतिक दल द्वारा की जा रही है, लेकिन वास्तव में कोई भी दल अपने नैतिक आदर्शो में इसे शामिल नहीं करता. यदि ऐसा होता तो प्रत्येक दल कम-से-कम 33 प्रतिशत टिकट महिला सदस्यों को दे सकता था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

46 पंजीकृत राजनीतिक दल

इंडोनेशियन लेजिस्लेटिव (विधायी) के लिए 9 अप्रैल को संपन्न होनेवाले चुनावों में नेशनल रीजनल रिप्रेजेंटेटिव काउंसिल अथवा उच्च सदन (डीपीडी) की 132 सीटों और पीपुल्स रिप्रेजेंटेटिव काउंसिल अथवा निम्न सदन (डीपीआर) की 560 सीटों, क्षेत्रीय विधानसभाओं (डीपीआरडी) की 2,112 सीटों तथा रीजेंसी/ म्युनिस्पैलिटी (डीपीआरडी) की 16,895 सीटों के लिए मतदान होगा. हालांकि, ओवरसीज इंडोनेशियन (विशेषकर ताइवान में) ने इससे पहले ही इंडोनेशियाई विधायिका के लिए मतदान कर दिया है, जो सामान्यतया 3 से 4 दिन पहले ही हो जाता है.

इस चुनाव में कुल 46 पंजीकृत राजनीतिक दल भाग ले रहे हैं. लेकिन इनमें से केवल 12 दल ही ऐसे होंगे, जो जनरल इलेक्शन कमीशन (केपीयू) द्वारा निर्धारित योग्यताओं को पूरा करते हैं. उल्लेखनीय है कि इंडोनेशियाई आम चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित योग्यताओं में इन चीजों को शामिल किया गया है. सभी दलों का प्रत्येक प्रांत में कम-से-कम एक शाखा कार्यालय होना चाहिए. उनकी प्रत्येक प्रांत की कम-से-कम 75 प्रतिशत रीजेंसीज या नगर पालिकाओं में शाखा कार्यालय या शाखाएं होनी चाहिए. शाखाओं की उपस्थिति प्रत्येक रीजेंसी के कम-से-कम 50 प्रतिशत जिलों में होनी चाहिए. प्रत्येक दल के कम-से-कम 1000 रजिस्टर्ड सदस्य होने चाहिए. साथ ही, प्रत्येक दल द्वारा कम-से-कम 33 प्रतिशत महिलाओं को उम्मीदवार बनाया गया होना चाहिए.

राजनीतिक दलों का सत्यापन

आरंभ में सभी राजनीतिक दलों को हाउस यानी पीपुल्स रिप्रेजेंटेटिव काउंसिल के लिए अनुमति प्राप्त थी कि वे बिना किसी सत्यापन के चुनाव लड़ सकते हैं, लेकिन 29 अगस्त, 2012 के बाद इंडोनेशिया के कांस्टीट्यूशनल कोर्ट ने इस प्रावधान को बदलते हुए सत्यापन को अनिवार्य बना दिया है. इसलिए अब सभी राजनीतिक पार्टियों को सत्यापन कराना होगा. इसके साथ ही यह तय किया गया है कि राष्ट्रपति पद के लिए उसी प्रत्याशी को मान्यता दी जायेगी, जिसे उस पार्टी या गंठबंधन ने टिकट दिया हो, जिस दल या गंठबंधन को विधायिका की कम-से-कम 20 प्रतिशत सीटें प्राप्त हुई हों अथवा उसने विधायिका के चुनाव में मतों का कम-से-कम 25 प्रतिशत हिस्सा हासिल किया हो.

सामान्यतया इंडोनेशिया में विधायिका के चुनावों के लिए चुनाव प्रक्रिया लगभग दो वर्ष पहले ही शुरू हो जाती है. उदाहरण के तौर पर वर्ष 2014 के आम चुनावों के लिए 9 अगस्त, 2012 से ही प्रक्रिया शुरू हो गयी थी. दरअसल, इस दिन से मतदाता पंजीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई थी. 9-15 अप्रैल, 2013 से डीपीआर, डीपीडी और डीपीआरडी के लिए उम्मीदवारों का रजिस्ट्रेशन शुरू हुआ. 4 अगस्त, 2013 को डीपीआर उम्मीदवारों की सूची प्रकाशित हुई और 16 अगस्त, 2013 को प्रोविजनल मतदाता सूची प्रकाशित कर दी गयी. इसके लगभग सात महीने बाद यानी 16 मार्च, 2014 से चुनाव प्रचार की प्रक्रिया शुरू हुई.

भारत में दलीय व्यवस्था

भारत में बहुदलीय व्यवस्था है, जिसमें राष्ट्रीय और प्रांतीय या क्षेत्रीय दल हिस्सा लेते हैं. कोई भी दल जो स्थानीय, राज्य स्तर और राष्ट्रीय चुनाव में हिस्सा लेना चाहता है, उसे चुनाव आयोग में पंजीकृत होना चाहिए. राज्य या क्षेत्रीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिए किसी भी दल की कम-से-कम उस राज्य में 5 वर्षो से राजनीतिक सक्रियता होनी चाहिए और राज्य के मतों के कम-से-कम चार प्रतिशत मत प्राप्त होने चाहिए अथवा विधानसभा में कम-से-कम दो सीटें प्राप्त होनी चाहिए. इसके विपरीत किसी राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिए चार या उससे अधिक राज्यों में कुल वैध मतों के छह प्रतिशत मत प्राप्त होने चाहिए अथवा एक राज्य अथवा एक से अधिक राज्यों में लोकसभा की कम-से-कम चार सीटें या विकल्प के रूप में इसे लोकसभा की कम-से-कम दो प्रतिशत सीटें प्राप्त होनी चाहिए, लेकिन इस स्थिति में शर्त यह है कि यह स्थिति उसे कम-से-कम तीन राज्यों में हासिल हो. कोटे की कम-से-कम चार प्रतिशत सीटों पर जीत हासिल होनी चाहिए या फिर 3.33 प्रतिशत विधायी सदस्यों का चुनाव होना चाहिए. भारत में इस समय राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त दलों की संख्या छह, क्षेत्रीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त दलों की संख्या 47 और 12 मार्च, 2014 तक गैर-मान्यता प्राप्त दलों की संख्या 1563 है.

भारत व इंडोनेशिया : चुनाव प्रक्रिया का फर्क

भारत में लोकसभा (प्रतिनिधि सदन), राज्य सभा, प्रांतीय विधायिकाओं और स्थानीय सभाओं के लिए एक साथ अनिवार्य रूप से चुनाव नहीं होते. लोकसभा और प्रांतीय विधायिकाओं के लिए चुनाव विशाल लोकतंत्र और कुछ संवैधानिक प्रावधानों के कारण अलग-अलग ही हो रहा है, क्योंकि अब दोनों का गठन और समापन एक साथ नहीं हो पाता. लेकिन लोकसभा और विधायिका के लिए भारत का मतदाता अलग-अलग एकल वोट ही डालता है और प्रत्येक प्रत्याशी (निर्दलियों को छोड़कर) अपने पार्टी चुनाव चिह्न् पर ही चुनाव लड़ता है. चुनाव आयोग द्वारा मतगणना के बाद परिणामों की घोषणा कर दी जाती है और बहुमत दल सरकार बनाता है. लोकसभा और प्रांतीय विधायिकाओं का कार्यकाल पांच वर्ष का है. सामान्यतया प्रत्येक पांच वर्ष बाद आम चुनाव होते हैं. राज्यसभा के लिए एक साथ चुनाव नहीं होता, बल्कि उसके एक-तिहाई सदस्य छह वर्षो के लिए आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर चुने जाते हैं. इंडोनेशियाई चुनाव व्यवस्था में कुछ बातें बेहद महत्वपूर्ण हैं. पहली यह कि राजनीतिक दलों की प्रत्येक स्तर पर उपस्थिति होनी चाहिए. दूसरी महिलाओं के लिए प्रत्येक राजनीतिक दल की प्रतिबद्धता और तीसरी मतदाता को राजनीतिक पार्टी और उम्मीदवार को अलग-अलग वोट करने का अधिकार. प्राय: ऐसा होता है कि मतदाता को उम्मीदवार पसंद होता है, तो पार्टी पसंद नहीं होती और यदि पार्टी पसंद होती है, तो उम्मीदवार पसंद नहीं होता. ऐसी स्थिति में वह मतदान नहीं करता या उसके प्रति उदासीन हो जाता है. इंडोनेशिया में वह इस दुविधा से बच जाता है. हालांकि, भारत में अब इसका विकल्प ‘नोटा’ के रूप में लाया गया है. लेकिन इंडोनेशियाई प्रावधान सकारात्मक है, जबकि नोटा नकारात्मक. ऐसी ही स्थिति राजनीति में महिलाओं की भागीदारी को लेकर भी देखी जा सकती है और इस बारे में हमें इंडोनेशिया से कुछ सीख लेनी होगी.

मिलते हैं एक साथ चार बैलेट पेपर

इंडोनेशिया में आज यानी 9 अप्रैल को चुनाव संपन्न होगा. 7 से 9 मई को परिणाम घोषित किये जायेंगे और 11-17 मई को सीट आवंटन किया जायेगा. जुलाई 2014 में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होंगे. इंडोनेशिया में चुनाव की प्रक्रिया क्या है और यह भारत के चुनाव से किस प्रकार भिन्न है, यह जानना जरूरी है. इंडोनेशिया में चुनाव के दिन मतदाताओं को एक साथ चार बैलेट पेपर दिये जाते हैं. ये बैलेट पेपर क्रमश: नेशनल पीपुल्स रिप्रेजेंटेटिव काउंसिल (डीपीआर), रीजनल रिप्रेजेंटेटिव काउंसिल (डीपीडी), लोकल प्रोविंसियल और रीजेंसी/ म्युनिस्पैलिटी रीजनल रिप्रेजेंटेटिव काउंसिल्स (डीपीआरडी और डीपीआरडी) के लिए अलग-अलग होते हैं. इन बैलेट पेपरों में प्रत्येक राजनीतिक पार्टी के लिए पार्टी नंबर और पार्टी का चुनाव चिह्न् होता है, जिसमें पार्टी का चुनाव चिह्न् उनके प्रत्याशियों के लिए होता है, जो पार्टी उम्मीदवार के रूप में सूचीबद्ध किये गये हों. प्रत्येक मतदाता बैलेट पेपर को पंचिंग उपकरण से पंच कर पार्टी को या उम्मीदवार को या फिर दोनों को ही वोट दे सकता है. हाउस के विपरीत सीनेट (डीपीडी) के उम्मीदवार को वैयक्तिक आधार पर चुना जाता है. इसलिए प्रत्येक मतदाता उसकी तसवीर, बैलेट नंबर अथवा नाम के सामने पंच करता है. एक बार जब मतों की गणना हो जाती है, तो जनरल इलेक्शन कमीशन उन दलों को बाहर कर देता है, जो राष्ट्रीय वोट का 3.5 प्रतिशत मत पाने में असफल रहते हैं. इसके बाद शेष राजनीतिक दलों को चुनाव आयोग सीट आवंटित करता है, जिसके लिए तय फामरूला अपनाया जाता है.

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