-कन्हैया झा, नयी दिल्ली-
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छोटे डंक का बड़ा खतरा
-कन्हैया झा, नयी दिल्ली- वेक्टर्स-बोर्न डिजीज यानी रोग वाहकों से होनेवाली बीमारियां दुनियाभर में व्यापक रूप से फैलती जा रही हैं. इस वर्ष विश्व स्वास्थ्य दिवस के मौके पर इन बीमारियों की भयावहता को फोकस किया गया है. भारत व चीन में किस तरह स्वास्थ्य सेवाओं में विभिन्नता है, उसकी तुलनात्मक जानकारियों समेत रोग वाहकों […]
वेक्टर्स-बोर्न डिजीज यानी रोग वाहकों से होनेवाली बीमारियां दुनियाभर में व्यापक रूप से फैलती जा रही हैं. इस वर्ष विश्व स्वास्थ्य दिवस के मौके पर इन बीमारियों की भयावहता को फोकस किया गया है. भारत व चीन में किस तरह स्वास्थ्य सेवाओं में विभिन्नता है, उसकी तुलनात्मक जानकारियों समेत रोग वाहकों से होनेवाली बीमारियों के खतरों के बारे में बता रहा है आज का नॉलेज..
भारतीय टेलीविजन धारावाहिक इतिहास के पहले पारिवारिक सीरियल ‘हमलोग’ के नये अवतार ‘हम’ नामक धारावाहिक में नायिका मुंबई में मेडिकल की पढ़ाई के दौरान छुट्टियों में अपनी मौसी से मिलने गांव आती है. गांव में प्रसव पीड़ा के दौरान स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव के चलते एक महिला के दम तोड़ने की घटना उसे भीतर तक झकझोर देती है, और नायिका उस गांव में ही एक स्वास्थ्य केंद्र खोलने का संकल्प लेती है. इस टेलीविजन धारावाहिक में भले ही सीतामढ़ी के एक गांव में इस सपने को साकार होते हुए दिखाया गया हो, लेकिन आज देश के ज्यादातर इलाके समुचित स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित हैं.
महज कुछ दशक पूर्व गया के निकट पहाड़ियों से घिरे एक गांव में स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं होने के चलते एक महिला की असमय मौत हो गयी थी. बाद में, उसके पति ने अकेले ही करीब दो दशकों की मेहनत के बाद पहाड़ी का सीना चीरते हुए गांव तक आने-जाने का रास्ता बनाया. जी हां, हम दशरथ मांझी की बात कर रहे हैं, जिनके नाम से आप भलीभांति परिचित होंगे. यह महज एक उदाहरण हो सकता है, लेकिन हकीकत यह है कि आज भी देश के दूरदराज इलाकों की बात तो छोड़िए, कसबों और छोटे शहरों तक में जरूरी स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया नहीं हैं. लेकिन यदि दशरथ मांझी की तरह संकल्प लेकर इस दिशा में आगे बढ़ा जाये, तो हमारे यहां भी विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करायी जा सकती हैं. दशरथ मांझी ने भले ही सड़क निर्माण के लिए पहाड़ी का सीना चीरने का अथक प्रयास किया, लेकिन उसके पीछे उनका मकसद यही था कि सड़क संपर्क कायम होने से भविष्य में लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया हो पायेंगी.
हेल्थ फॉर ऑल
दरअसल, स्वास्थ्य इंसान के लिए सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है. डब्ल्यूएचओ के ग्लोबल हेल्थ मूवमेंट की मुहिम ‘हेल्थ फॉर ऑल’ के तहत दुनियाभर में सभी इंसानों को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने की कोशिश की गयी है. इसमें सभी को इलाज की समुचित सुविधाएं उपलब्ध कराने और उन सुविधाओं को वंचितों तक पहुंचाने का आह्वान किया गया है. मालूम हो कि वैश्विक स्तर पर ‘हेल्थ फॉर ऑल’ को 1981 में ही अपनाया गया था. इस मुहिम के अनुसार सबसे जरूरी यह है कि पूरी दुनिया में आबादी के मुताबिक डॉक्टरों की पर्याप्त संख्या होनी चाहिए.
वर्ल्ड हेल्थ स्टेटिस्टिक्स 2010 में दुनियाभर में डॉक्टरों की संख्या के बारे में बताया गया है. ज्यादातर विकसित यूरोपीय देशों में प्रत्येक 10,000 आबादी पर 30 से ज्यादा डॉक्टर मौजूद थे, जबकि ज्यादातर गरीब अफ्रीकी देशों में इनकी संख्या पांच से भी कम थी. विभिन्न देशों में विविध संदर्भो में स्वास्थ्य संसाधनों का वितरण भी राष्ट्रीय स्तर पर असमान है. कुछ विकासशील एशियाई देशों में स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता में ग्रामीण और शहरी इलाकों में आर्थिक -सामाजिक तौर पर स्पष्ट रूप से असमानताएं हैं.
विश्व स्वास्थ्य दिवस 2014 का प्रमुख संदेश
-वेक्टर्स स्प्रेड डिजीज: मच्छरों, मक्खियों, कीड़ों, मीठेपानी में मौजूद घोंघों समेत अन्य रोग वाहकों आदि से बीमारियां फैल सकती हैं, जिनसे गंभीर रूप से बीमार पड़ने के साथ इंसान की मौत तक हो सकती है.
-रोकी जा सकती हैं बीमारियां: मलेरिया, डेंगू और येलो फीवर जैसी बीमारियों की रोकथाम की जा सकती है, फिर भी दुनिया के गरीब लोगों में इसका व्यापक दुष्प्रभाव देखा गया है.
-50 फीसदी आबादी पर खतरा: इन बीमारियों से दुनिया की आधी आबादी पर खतरा मंडरा रहा है. वैश्विक तौर पर यात्र, व्यापार और आप्रवासन की प्रवृत्ति बढ़ने के चलते दुनियाभर में व्यापक तौर पर लोग इसकी चपेट में आ रहे हैं.
-खुद को बचायें: मच्छरदानी में सोने के साथ पूरे बांह की शर्ट और पैंट पहने और कीटों से बचानेवाली क्रीम का इस्तेमाल करते हुए स्वयं और परिवारजनों को सुरक्षित रखें.
स्वास्थ्य जोखिम बरकरार
डेंगू का खतरनाक डंक
डेंगू के सबसे पहले मामले 1950 में फिलीपींस और थाइलैंड में सामने आये थे. आज यह बीमारी एशियाई और लैटिन अमेरिकी देशों में घातक रूप धारण कर चुकी है. हाल के दशकों में डेंगू के मामले दुनियाभर में नाटकीय रूप से बढ़ चुके हैं. दुनियाभर में ढाई अरब (विश्व की आबादी का तकरीबन 40 फीसदी) आबादी के बीच इसका जोखिम बढ़ चुका है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि दुनियाभर में 5 से 10 करोड़ लोग सालाना इसकी चपेट में आते हैं. 1970 से पहले इस बीमारी का खतरा महज नौ देशों तक सीमित था. अफ्रीका, अमेरिका, पूर्वी भूमध्यसागरीय, दक्षिण-पूर्वी एशिया और पश्चिमी प्रशांत इलाके में 100 से ज्यादा देशों में अब इस बीमारी का जोखिम बढ़ चुका है. लैटिन अमेरिका समेत दक्षिण-पूर्वी एशिया और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्रों में इसका असर सबसे ज्यादा देखा जा रहा है. लैटिन अमेरिका में वर्ष 2013 में डेंगू के 20,35,000 मामले पाये गये थे, जिनमें से 37,687 घातक थे. वर्ष 2010 में फ्रांस और क्रोएशिया जैसे यूरोपीय देशों में भी डेंगू के मामले पाये गये. 2012 में पुर्तगाल के एक द्वीप में इसके 2000 मामले सामने आये. डब्ल्यूएचओ का अंदाजा है कि दुनियाभर में डेंगू के सालाना पांच लाख गंभीर मामले सामने आते हैं, जिनमें मरीज को अस्पताल में दाखिल कराना पड़ता है. इसमें महिलाओं और बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा है.
मलेरिया की भयावहता
मलेरिया पारासाइटिक बीमारी है, जो संक्रमित एनोफील्स मच्छरों से फैलता है. वैश्विक तौर पर 60 से ज्यादा एनोफील्स मच्छरों की पहचान ‘वेक्टर्स’ के रूप में की गयी है. डब्ल्यूएचओ के हालिया अनुमान के मुताबिक, तकरीबन 97 देशों में मलेरिया का खतरा है, जहां 3.4 अरब लोग इसके दायरे में आते हैं. इस मामले में सबसे भयावह स्थिति सब-सहारा अफ्रीकी देशों की है, जहां मलेरिया से होनेवाली विश्व में कुल मौतों की 90 फीसदी घटनाएं होती है. खासकर कांगो और नाइजीरिया में इसका खतरा सबसे ज्यादा देखा गया है.
चिकनगुनिया
चिकनगुनिया एडीज मच्छरों से फैलनेवाली बीमारी है. यह बीमारी अफ्रीका, एशिया और कैरीबियाइ द्वीपसमूह, हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के इलाकों में सबसे ज्यादा देखने में आयी है. उपरोक्त इलाकों के तकरीबन 40 देशों में इस बीमारी के मामले सामने आये हैं. पहली बार यह बीमारी 1952 में तंजानिया में डिटेक्ट की गयी थी.
येलो फीवर
यह बीमारी भी एडीज मच्छरों से फैलता है. इसमें ‘येलो’ का तात्पर्य इससे प्रभावित कुछ मरीजों में जोंडिस होने की वजह से है. दुनियाभर में इसके दो लाख मामले सालाना पाये जाने का अंदाजा है, जिसमें 30,000 से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है. अफ्रीका व लैटिन अमेरिकी इलाके में 90 करोड़ से ज्यादा लोगों पर इसका खतरा बरकरार है.
जापानी इनसेफेलाइटिस
जापानी इनसेफेलाइटिस वायरस का संचरण संक्रमित क्यूलेक्स मच्छरों से इंसानों में होता है. सालाना 50,000 से ज्यादा लोगों के इस बीमारी की चपेट में आने का अनुमान है, जिसमें 10,000 से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है. इसमें भी बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा है. पाकिस्तान के पश्चिमी इलाकों समेत पूरे एशिया और पश्चिमी प्रशांत इलाकों समेत कोरिया व पापुआ न्यूगिनी में इसका खतरा सबसे ज्यादा देखा गया है. हालांकि, इसके वायरस मुख्य रूप से ग्रामीण इलाकों में ज्यादा फैलते हैं. खासकर बाढ़ के बाद धान के खेतों में इस वायरस के फैलने का खतरा बढ़ जाता है, लेकिन शहरी क्षेत्र भी इससे अछूते नहीं हैं. एशिया में इस वायरस का प्रभाव सबसे ज्यादा देखा गया है.
चीन में स्वास्थ्य सेवाएं भारत से बेहतर
अत्यधिक आबादी और सीमित स्वास्थ्य संसाधनों वाले विकासशील देशों में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं के स्तर पर व्यापक विषमता पायी जाती है. ‘हेल्थ सिस्टम्स इन रूरल एरियाज: ए कंपरेटिव एनालिसिस इन फाइनांसिंग मेकेनिजम्स एंड पेमेंट स्ट्रक्चर बिटविन चाइना एंड इंडिया’ नामक एक रिसर्च रिपोर्ट में शिजुन वांग ने इस बारे में लिखा है. इसमें चीन और भारत में ग्रामीण स्वास्थ्य प्रणाली को कुछ संदर्भो में अच्छा बताया गया है. हालांकि, दोनों ही देशों की ग्रामीण स्वास्थ्य प्रणालियों में खामियां हैं. चीन में ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न आय स्तरों के मुताबिक एक तय रकम तक स्वास्थ्य खर्चे को लोगों को वापस (रीइंबर्समेंट) कर दिया जाता है. खासकर अत्यधिक गरीब तबके के लोगों को कुछ हद तक प्रीमियम की सुविधा भी मुहैया करायी जाती है. जबकि भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र में सबसे बड़ी दिक्कत वित्तीय समस्या को लेकर है, जो सरकारी क्षेत्रों में उच्च लागत वाले इलाज को मुफ्त मुहैया न कराये जाने से है. इसका समाधान जरूरी है.
चीन के हालात
उपरोक्त शोध रिपोर्ट के मुताबिक, जनगणना 2000 के अनुसार, चीन में लोगों की जीवन संभाव्यता 74 वर्ष है, जो वैश्विक औसत (68 वर्ष) से कहीं अधिक है. प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय को परचेजिंग पावर पैरिटी (क्रय शक्ति समानता) में तब्दील करने पर 2008 में यह 6,060 डॉलर रहा और स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति कुल खर्च 400 डॉलर से भी कम ही रहा. इस मायने में चीन की एक बड़ी उपलब्धि टीकाकरण को लेकर रही है. चीन में तकरीबन 98 फीसदी बच्चों का जन्म कुशल स्वास्थ्यकर्मी की देखरेख में होता है, जबकि एक वर्ष के भीतर 94 फीसदी बच्चों को खसरे का टीका लगा दिया जाता है.
ग्रामीण चिकित्सा सुविधाओं को व्यापक बनाने के मकसद से वर्ष 2003 में चीन ने पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर एनआरसीएमसीएस (न्यू रूरल कॉआपरेटिव मेडिकल केयर सिस्टम) की शुरुआत की. 2010 तक इसका दायरा बढ़ाते हुए समूचे ग्रामीण इलाकों तक इसे पहुंचा दिया गया. इस व्यवस्था के तहत हेल्थ सेंटर्स के तीन स्तर हैं, जिसमें विलेज क्लीनिक, टाउनशिप हेल्थ सेंटर्स और काउंटी हॉस्पिटल्स हैं. सबसे निचले स्तर यानी विलेज क्लीनिक पर औसतन प्रति 1,000 आबादी पर दो डॉक्टर हैं. यहां प्राथमिक स्तर की स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करायी जाती हैं. टाउनशिप हेल्थ सेंटर्स प्रत्येक 10,000 से 30,000 की आबादी के बीच है. काउंटी हॉस्पिटल्स में सभी कर्मचारी प्रशिक्षित होते हैं और यहां आधुनिक चिकित्सा तकनीक मुहैया करायी जाती है. प्रत्येक दो से छह लाख की आबादी पर इसे स्थापित किया गया है. इस स्कीम को बीमा से भी जोड़ा गया है, जिसमें प्रीमियम का भुगतान सरकार व जनता दोनों को करना होता है. हालांकि, यह योजना स्वैच्छिक है, लेकिन इसके फायदों को देखते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादातर लोग इससे जुड़े हुए हैं.
भारत के हालात
भारत में जीवन संभाव्यता (2007 में) पुरुषों में 64 वर्ष और महिलाओं में 56 वर्ष है. चीन के मुकाबले यह 10 वर्ष कम है. ग्रामीण मेडिकल कॉलेजों में किये गये एक अध्ययन के मुताबिक वर्ष 2002 में ग्रामीण क्षेत्रों में रहनेवाले लोगों में से 70 फीसदी परिवारों ने अपनी सालाना आमदनी का तकरीबन 60 फीसदी खर्चा स्वास्थ्य पर किया था. हालांकि, नेशनल रूरल हेल्थ मिशन (एनआरएचएम) यानी राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के आने से देश के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं में कुछ सुधार जरूर हुआ है, लेकिन बेहतर कार्यान्वन न होने से पूरी आबादी को इसका फायदा नहीं मिल पा रहा है. भारत में प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय को परचेजिंग पावर पैरिटी (क्रय शक्ति समानता) में तब्दील करने पर यह 2,930 डॉलर है, जबकि इसका वैश्विक औसत 10,000 डॉलर से ज्यादा है. वर्ष 2000 के आंकड़ों के मुताबिक भारत में तकरीबन 47 फीसदी बच्चों का जन्म कुशल स्वास्थ्यकर्मी की देखरेख में होता है, जबकि एक वर्ष के भीतर 70 फीसदी बच्चों को खसरे का टीका लगा दिया जाता है. देखा जाये तो उपरोक्त सभी मामलों में हम अभी चीन से पीछे हैं.
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