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पहाड़ों के बीच फूलों का मेला

भारत को विविधताओं का देश कहा जाता है. इसका कारण है यहां की विविधता भरी आवो-हवा. कश्मीर से कन्याकुमारी तक मौसम का मिजाज हो या प्रकृति की रंगीनियत, सब में विविधता है. बात कला और संस्कृति की करें, तो उसमें भी विभिन्न रूप-रंग दिखायी पड़ते हैं. ऐसी ही विविधता लिए प्रदेश है कश्मीर. ऐसे तो […]

भारत को विविधताओं का देश कहा जाता है. इसका कारण है यहां की विविधता भरी आवो-हवा. कश्मीर से कन्याकुमारी तक मौसम का मिजाज हो या प्रकृति की रंगीनियत, सब में विविधता है. बात कला और संस्कृति की करें, तो उसमें भी विभिन्न रूप-रंग दिखायी पड़ते हैं. ऐसी ही विविधता लिए प्रदेश है कश्मीर. ऐसे तो कश्मीर की वादियों के कायल देश-विदेश के पर्यटक हैं, पर अप्रैल माह में यहां कुछ ऐसा होता है, जो इसकी खूबसूरती को कई गुना बढ़ा देता है.

एक साथ 12 लाख ट्यूलिप : हर साल यहां अप्रैल के पहले हफ्ते में दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा ट्यूलिप फेस्टिवल मनाया जाता है. कश्मीर के डल झील के किनारे, इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्यूलिप गार्डन, श्रीनगर में एक साथ 70 से भी ज्यादा प्रजातियों के करीब 13 लाख से भी ज्यादा रंग-बिरंगे ट्यूलिप देखने को मिल जाते हैं.

फेस्टिवल का इतिहास : यह फेस्टिवल हर साल अप्रैल के पहले सप्ताह में शुरू होता है और दूसरे सप्ताह तक मनाया जाता है. 2007 में पर्यटन को बढ़ावा देने के मकसद से उत्सव शुरू किया गया. 2008 में इसका विधिवत उद्घाटन हुआ. साथ ही यहां दुनिया भर से ट्यूलिप के नये प्रजाति को लगाने का भी कार्य हो रहा है. एक अनुमान के अनुसार सिर्फ इस फेस्ट के समय करीब चार हजार पर्यटक प्रतिदिन यहां आते हैं. पूरे फेस्ट के दौरान यहां दो लाख से ज्यादा पर्यटक पहुंचते हैं. यह एशिया का सबसे बड़ा ट्यूलिप फेस्टिवल माना जाता है. इसकी प्रसिद्धि बढ़ती ही जा रही है.

पहाड़ियों के बीच में गार्डन
श्रीनगर शहर से करीब आठ किलोमीटर की दूरी पर यह गार्डन स्थित है. डल झील के किनारे जबरवान पहाड़ियों की चोटियों पर स्थित इंदिरा गांधी ट्यूलिप गार्डन बेहद आकर्षक और लुभावना है. यह गार्डन कुल 90 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है. इस मौसम में यहां कम-से-कम 13 लाख ट्यूलिप बल्ब एक बार में खिलते हैं. यह गार्डन, शालीमार गार्डन, निशात बाग, चश्म-ए-शाही गार्डन और अन्य मुगल गार्डन के पास ही स्थित है. गिनती विश्व के खूबसूरत बगीचों में की जाती है. हालैंड से लाये गये रंग-बिरंगे फूल यहां खिले रहते हैं. हर वर्ष कई नई किस्मों के फूलों के पौधों को यहां लगाया जाता है. आम आदमी ही नहीं फिल्म उद्योग भी इस बगीचे से प्रभावित होने से नहीं बच पाया है. यहां पर कई हिंदी और दक्षिण भारतीय फिल्मों की शूटिंग भी हो चुकी है.

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