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गर्भावस्था में पीलिया है खतरनाक

पीलिया खुद में बीमारी नहीं है, बल्कि अन्य किसी रोग की ओर इशारा है. गर्भावस्था में वैसे भी काफी सतर्कता बरती जाती है फिर भी किसी भी तरह के रोग या उसके लक्षणों को कदापि हल्के में नहीं लेना चाहिए. आगे चल कर पीलिया ही हेपेटाइटिस का रूप ले लेता है जिसके कई रूप हैं. […]

पीलिया खुद में बीमारी नहीं है, बल्कि अन्य किसी रोग की ओर इशारा है. गर्भावस्था में वैसे भी काफी सतर्कता बरती जाती है फिर भी किसी भी तरह के रोग या उसके लक्षणों को कदापि हल्के में नहीं लेना चाहिए. आगे चल कर पीलिया ही हेपेटाइटिस का रूप ले लेता है जिसके कई रूप हैं. इसके प्रति जागरूकता से ही बचाव संभव है.

रक्त में बिलीरूबीन की मात्र 1 mg/dl से अधिक होने पर पीलिया कहा जाता है. इसमें मरीज की आंखें, त्वचा एवं पेशाब का रंग पीला हो जाता है. पीलिया रोग नहीं, रोग का लक्षण है. रक्तकणीका से हिमोग्लोबिन टूटने पर पर बिलीरूबीन बनता है. लीवर द्वारा बिलीरूबीन को रक्त से साफ किया जाता है. लीवर में खराबी आने पर बिलीरूबीन शरीर में बढ़ जाता है और पीलिया का रूप धारण कर लेता है. इसके अतिरिक्त लीवर में बननेवाले प्रोटीन, जैसे की क्लोटिंग फैक्टर (खून को जमानेवाले) की कमी आ जाती है. गर्भावस्था में लीवर की सूजन का मुख्य कारण वाइरस द्वारा संक्रमण होता है. जैसे वाइरल हेपेटाइटिस ए, बी, सी, डी और इ. हेपटाइटिस ए और इ प्राय: दूषित जल, फलों के रस, दूषित खान-पान एवं अस्वच्छ पर्यावरण से होता है. यह एक रोगी से दूसरे रोगी में भी फैलता है. इसमें पहले कुछ दिन बुखार और पेट में दर्द रहता है, फिर उल्टी आती है. गर्भावस्था में हेपेटाइटिस-इ अत्यंत गंभीर रूप धारण कर सकता है. पीलिया कम नहीं होने तक जान का खतरा भी बना रहता है. 20 प्रतिशत मातृत्व मृत्यु का खतरा रहता है. अत्यधिक संक्रमण में लीवर ट्रांसप्लांट से जान बच सकती है. यह संक्रमण मां से गर्भ में पल रहे बच्चे को नहीं जाता है. आठ से बारह सप्ताह में लीवर पूर्ण रूप से सुचारू हो जाता है. नवजात शिशु को स्तनपान कराने में कोई परहेज नहीं है. 48 घंटे के अंदर शिशु को इम्मूनोग्लोबुलिंन का इंजेक्शन लगाने से नवजात शिशु को संक्रमण से बचाया जा सकता है.

ऐसे फैलता है हेपेटाइटिस-बी
हेपेटाइटिस-बी का संक्रमण अधिकतर दूषित सीरिंज, खून या यौन संबंध से हो सकता है. यह संक्रमित मां से गर्भ में बच्चे को हो सकता है. गर्भावस्था के दौरान मां के रक्त में एचबी, एजी का जांच करके इस संक्रमण का पता लगाया जा सकता है. मां केवल कैरियर भी हो सकती है. बच्चे में इसका संक्रमण रोकने के लिए जन्म उपरांत 12 घंटे के अंदर हेपेटाइटिस-बी वैक्सीन की पहली खुराक एवं इम्मूनोग्लोबुलिंन के इंजेक्सन दिये जाते हैं. शिशु को स्तनपान कराने में परहेज नहीं करना चाहिए. पीलियां होने पर आराम करें. इसे कभी हल्के में लेने की कोशिश न करें एवं डॉक्टर की निगरानी में रहें.

प्रमुख लक्षण

आंख, त्वचा, पेशाब का पीला होना

भूख न लगना, उल्टी आना

थकावट, कमजोरी महसूस होना

पेट में दर्द होना

पूरे शरीर में खुजलाहट होना

गंभीर खतरे के निशान

रक्तचाप कम हो जाना

गुर्दे में असर आने से पेशाब बंद होना या पेशाब करने में दिक्क्त होना

दिमाग में सूजन आने से दौरे पड़ना, बेहोशी होना (इंसेफालोपथी)

खून जमने की शक्ति न होने से शरीर से रक्तस्राव होना

हेपेटाइटिस सेप्रेग्नन्सीमें असर

शुरुआती दिनों में गर्भपात का खतरा

समय से पहले डिलीवरी की चांस

डिलीवरी के बाद रक्तस्नव का डर

गर्भावस्था में गंभीर रूप धारण कर सकता है हेपेटाइटिस-इ

डॉ मीना सामंत

प्रसूति व स्त्री रोग विशेषज्ञ कुर्जी होली फेमिली हॉस्पिटल, पटना

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