धर्म, मोक्ष, विचार और विद्रोह का पवित्र तीर्थ बनारस 2014 के आम चुनाव में सबसे बड़े संघर्ष का साक्षी बन रहा है. देश की राजनीति से जुड़ी हर बहस के केंद्र में खड़े दो नेता- नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल- तो यहां आमने-सामने हैं ही, अन्य ध्रुव भी जोर-आजमाइश में जुटे हैं. ऐसे में पढ़िये बनारस की सुस्ती और मस्ती में मची हलचल की नब्ज थामते तीन आलेख..
कहते हैं, सच में दिखनेवाला बनारस वस्तुत: मिथकों में है. मान्यता है कि बनारस शंकर के त्रिशूल पर टिका है, जो अदृश्य है. अपने प्रभावी छवि के रूप में बनारस हिंदू धर्म की मोक्ष स्थली है, किंतु इस छवि के भीतर हिंदू धर्म की कुरीतियों पर आक्रमण कर उसे विरचित करनेवाले बुद्ध, कबीर एवं रविदास से भी इसका अर्थ जुड़ता है. यहां मणिकर्णिका है तो कबीर चौरा एवं लहरतारा भी, जो कबीर के जन्म एवं कर्मस्थली के रूप में जाने जाते हैं. यहीं तुलसीदास ने रामचरित मानस रची थी, तो यहीं प्रसिद्ध दलित संत रविदास ने सिर गोबर्घनपुर में जन्म लिया था. आप देखिए, समरूपी दिखनेवाले बनारस में कितने ‘विरुद्धों का सामंजस्य’ हैं, कितने अंतर्विरोध इसके अर्थ में एक साथ सक्रिय हैं. कहते हैं कि बनारस जिसका भी है, आधा है. वह किसी का भी पूरा नहीं है. बनारस जितना दृश्य है, उतना ही अदृश्य भी!
हिंदी के प्रसिद्ध कवि केदारनाथ सिंह की एक कविता है ‘बनारस’, जो बनारस के अर्थ के उपरोक्त अनुगूंजों को ठीक से रूपायित करती है: ‘इसे अचानक देखो/ अद्भुत है इसकी बनावट/ यह आधा जल में है/ आधा मंत्र में/ आधा फूल में है/ आधा शव में/ आधा नींद में है/ आधा शंख में/ अगर ध्यान से देखो तो यह आधा है और आधा नहीं भी है.’ अर्थात्, जो भी बनारस पर अपनी पूरी जीत का गुमान पाले हो, उसे बनारस के उपरोक्त स्वभाव को भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. और, मन में जो अपनी पराजय स्वीकार किये बैठा हो, उसे भी मानना चाहिए कि पूरा नहीं तो कम-से-कम आधा बनारस तो उसका है ही.
बनारस महत्वपूर्ण हिंदू तीर्थ स्थान है- घंटे, शंख, फूल से गूंजता एवं महकता हुआ, परंतु, यह बौद्ध, कबीरपंथी एवं रविदासी तीर्थ स्थान भी है. यहां रहनेवालों में मुसलमान एक बड़ा समुदाय है. यहां उनकी लगभग ढाई लाख की आबादी है. यहां गिरिजा देवी रहती हैं, तो बिस्मिल्लाह खान भी यहीं शहनाई की गूंज बिखेरते थे. राजनीतिक रूप में देखें, तो एक तरफ बनारस समाजवादी नेताओं- जय प्रकाश नारायण और राज नारायण की कर्मस्थली रही है, तो दूसरी तरफ आजादी के बाद पूर्वाचल में मजबूती से उभरे वामपंथी आंदोलन की राजधानी भी बनारस ही रही है. सरजू पाण्डे जैसे वामपंथी नेता का ज्यादा समय बनारस एवं पूर्वाचल के लोगों से संवाद में ही बीतता था. 70 के दशक में कांग्रेस के प्रसिद्ध ब्राह्नाण चेहरा कमलापति त्रिपाठी का भी यह गृहनगर रहा है. एक जमाने में बनारस में और उत्तर प्रदेश में कमलापति त्रिपाठी की तूती बोलती थी. प्रसिद्ध युवा तुर्क चंद्रशेखर, जो बाद में भारत के प्रधानमंत्री बने, का भी यह प्रभाव क्षेत्र रहा है. वही बनारस धीरे-धीरे आरएसएस का भी गढ़ बनता गया है. पिछले कई चुनावों से आरएसएस के असर के कारण यहां से भाजपा के उम्मीदवार जीतते रहे हैं. 1991 में श्रीशचंद्र दीक्षित, 1996 में शंकर प्रसाद जायसवाल, 1998 में शंकर प्रसाद जायसवाल, 1999 में शंकर प्रसाद जायसवाल और 2009 में मुरली मनोहर जोशी ने यहां से विजय पायी. सिर्फ 2004 में कांग्रेस के राजेश मिश्र यहां से जीत सके थे.
बद्री नारायण
समाजशास्त्री,
जीबी पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान,
इलाहाबाद