सिलीगुड़ी: कई कारणों से उत्तर बंगाल अत्यंत महत्वपूर्ण है. सीमांत क्षेत्र होने के कारण यह भू-भाग अपना विशेष सामरिक महत्व रखता है. पड़ोसी देश चीन की वक्रदृष्टि इस क्षेत्र विशेष पर है. इस क्षेत्र विशेष की संवेदनशीलता को हम नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं. लेकिन इस क्षेत्र को प्रारंभ से ही सूबे की तंत्र-तंजीम ने पूरी तरह से उपेक्षा कर रखा है. चिलाराय वेलफेयर फाउंडेशन, नयी दिल्ली के चेयरमैन डॉ आरपी सिंह ने आज संवाददाताओं से बात करते हुए ये बातें कहीं.
उन्होंने कहा कि यह अत्यंत चिंता का विषय है कि यहां के राजवंशी व अन्य अल्पसंख्यक समुदाय के बीच उनके अस्तित्व का एक बड़ा संकट साफ तौर पर दिख रहा है. उनका कहना था कि बढ़ते सामाजिक व आर्थिक संतुलन के कारण इस क्षेत्र विशेष की स्थिरता, शांति व सुरक्षा का गंभीर संकट मुंह बांये सामने खड़ा है. अगर समय रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो अराजक तत्वों की सक्रियता से हमारी शांति, सुरक्षा व एकता को नुकसान पहुंच सकता है.
उन्होंने कहा कि शासन को इस दिशा में कारगर कदम उठाना चाहिए. श्री सिंह ने कहा कि केवल शासन-प्रशासन से ही नहीं, बल्कि विवेक संपन्न लोगों से भी यह जानना चाहते हैं कि कारण क्या है कि समृद्ध विरासत को वहन करने वाले राजवंशी अवाम आज किन कारणों से बदहाली की स्थिति में पहुंच गये हैं. आज उनके समक्ष केवल जीवकोपाजर्न की समस्या ही नहीं है, बल्कि अस्तित्व का विकट संकट भी उत्पन्न हो गया है.
उन्होंने कहा कि उनकी संस्था का उद्देश्य शिक्षा, स्वास्थ्य एवं जन-कल्याण के क्षेत्र में इनके विकास को लेकर विशेष कुछ करने की है. इस दिशा में वे काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि सुनियोजित तरीके से इन्हें इनके अधिकारों से वंचित रखा गया है. इस विषय को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की गयी है, जिसे उच्चतम अदालत ने स्वीकार कर लिया है. उन्होंने कहा कि सामुदायिक उपेक्षा के शिकार इस क्षेत्र के केवल राजवंशी, आदिवासी या गोर्खाली समुदाय ही नहीं है, बल्कि बिहार, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा व अन्य अल्पसंख्यक समुदाय के लोग भी हुए हैं. उन्होंने सरकार के इस रवैया का पुरजोर विरोध करते हुए कहा कि वे राजवंशी व अन्य अल्पसंख्यक समुदाय के न्यायोचित जन आंदोलन का समर्थन करते हैं.