कालिम्पोंग में ऐसे लोगों की संख्या काफी है जो सिर्फ पानी की किल्लत की वजह से सिलीगुड़ी में बसना चाहते हैं. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र को स्वीटजरलैंड बनाना चाहती हैं और वह यहां कई बार आ भी चुकी हैं. कालिम्पोंग का भी दौरा उन्होंने कई बार किया. वर्ष 2013 में ही उन्होंने कालिम्पोंग में पानी की किल्लत दूर करने के लिए 325 करोड़ रुपये की परियोजना लगाने की घोषणा की थी. करीब तीन साल होने को चला है, परियोजना का कोई अता-पता नहीं है. स्थानीय लोगों का कहना है कि सप्ताह में सिर्फ एक दिन पानी की आपूर्ति होती है. 100 से लेकर 125 लीटर पानी से ही एक सप्ताह तक काम चलाना पड़ता है.
कालिम्पोंग शहर में रहने वाली एक गृहिणी प्रियंका शर्मा ने बताया है कि इतने कम पानी में पूरे परिवार का गुजारा संभव नहीं है. पीने के पानी की ही किल्लत हो जाती है, तो भला नहाने-धोने के लिए पानी का इंतजाम कहां से करें. आलम यह है कि चाह कर भी वह लोग मेहमानों को नहीं बुलाते हैं. घर में मेहमान आने से पूरे परिवार को परेशानी होती है. यदि गाहे-बगाहे कोई मेहमान आ भी जाये तो उनको जल्दी चलता करने की कोशिश की जाती है.
इस बीच, पानी की इस किल्लत का फायदा टैंकर माफिया के लोग उठा रहे हैं. कालिम्पोंग शहर में एक हजार लीटर पानी की कीमत करीब 400 से 500 रुपये है. दूर-दराज के लोगों को इसकी कीमत और अधिक चुकानी पड़ती है. कालिम्पोंग के एक अन्य निवासी मुकेश शर्मा का कहना है कि पानी का जुगाड़ करने में एक पूरा दिन खत्म हो जाता है. जीटीए की ओर से टैंकर द्वारा पानी की आपूर्ति किये जाने की व्यवस्था है, लेकिन इसका लाभ सिर्फ शहर में सड़क किनारे रहने वाले लोग ही उठा सकते हैं.
दूर-दराज के इलाकों में टैंकर ले जाने की कोई व्यवस्था नहीं है. जीटीए के टैंकर से पानी लेने के लिए आम लोगों की काफी लंबी कतारें लग जाती हैं. एक बार लाइन में लगने के बाद कई घंटों खड़े रह कर पानी लेना पड़ता है. कभी-कभार तो आपस में ही मारामारी लग जाती है. उन्होंने आगे कहा कि पानी के लिए वहां के लोगों को बारिश पर भी निर्भर रहना पड़ता है. जब भी कभी बारिश होती है, तो सारे लोग अपने घरों में रखे सभी प्रकार के बर्तनों से पानी संग्रह करने में जुट जाते हैं.