जलपाईगुड़ी. देश ने एक सप्ताह पहले ही अपनी आजादी की वर्षगांठ मानाइ है.ऐसे में जहां आजादी से जुड़े विभिन्न निशानियों एवं धरोहरों को बचाने की पहल होने चाहिए,वहां इसे खत्म किया जा रहा है.इसी कड़ी में स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा जलपाईगुड़ी स्थित हिंदू निवास को बंद कर दिया गया. हिंदू निवास स्वतंत्रता संग्राम के दौरान देश के वीर क्रांतिकारियों का गुप्त ठिकाना था. इस होटल के कोणे-कोणे में, ईंट, पत्थर में स्वतंत्रता संग्राम की विभिन्न कहानियां लिखी हुयी थी.
यह होटल आज ईंट, बालू व पत्थर की दुकान में परिणत हो गया है. इससे शहर के वरिष्ठ नागरिकों से लेकर इतिहास विशेषज्ञ तक हताश हैं. होटल के वर्तमान मालिक सुवीर दत्त को इस बात का खेद भी है. उन्होंने बताया कि वीर-क्रांतिकारी के पदचिह्न से भरे इस होटल को होटल की तरह ही बचा कर रखने की उन्होंने काफी कोशिश की थी, लेकिन कामयाब नहीं हो पाये. रोजीरोटी की खातिर उन्हें अपना होटल का व्यवसाय बंद करना पड़ा और ईंट, बालू व पत्थर का व्यवसाय शुरू करना पड़ा. उल्लेखनीय है कि रखरखाव की कमी के कारण होटल पूरी तरह से जर्जर हो गया है. होटल की दीवारें नष्ट हो गयी है. विभिन्न पेड़-पौधे उग गये हैं. इन सबके बावजूद वीर क्रांतिकारियों का गुप्त कमरे और तहखाने बचे हुए हैं. सुवीर दत्त के पिता ने वर्ष 1936 में इस होटल का निर्माण किया था. यह होटल रेलवे स्टेशन के नजदीक है. रेल यात्रियों की सुविधा के लिए इस होटल का निर्माण किया गया था. उस दौरान न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन होकर नहीं बल्कि जलपाईगुड़ी टाउन स्टेशन होकर बांग्लादेश के चिलाहाट, पार्वतीपुर होकर ट्रेन कोलकाता जाती थी.
क्या कहते हैं मालिक : सुवीर दत्त ने बताय कि उनके पिता ने उन्हें कहा था कि रात ढाई बजे के आसपास कोलकाता जाने वाली ट्रेन टाउन स्टेशन में आकर खड़ी होती थी. दूर से ट्रेन की आवाज सुन कर होटल में छीपे कुछ लोग स्टेशन की ओर रवाना होते थे. बीच बीच में उनलोगों के होटल में पुलिस आती थी, लेकिन उनके पिता नीलमणि दत्त ने कभी भी होटल में रहनेवाले वीर-क्रांतिकारियों के बारे में पुलिस को कुछ नहीं बताया. उन्होंने एक बार होटल के पीछे के गुप्त रास्ते से क्रांतिकारियेां को सुरक्षित बाहर किया था. स्वतंत्रता के बाद उनमें से कई लोग उनके पिता के साथ आकर मिले थे.
क्या कहते हैं इतिहास विश्लेषक : इतिहास विश्लेषक उमेश शर्मा ने बताया कि भौगोलिक स्थिति के चलते इस होटल का अवस्थान काफी महत्वपूर्ण था. रेलवे मार्ग से प्रफुल्ल त्रिपाठी समेत कई स्वतंत्रता संग्रामी, क्रांतिकारी रंगपुर से जलपाईगुड़ी आते थे और आंदोलन को अंजाम देते थे और फिर किसी दूसरे ठिकाने पर लौट जाते थे.