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चाय की चुस्की के बीच सिसकती श्रमिकों की जिंदगी

जोखिम में डालती है नन्हे बच्चों की जान न क्रेच, न पीने का पानी, कैंटीन भी नदारद श्रमिक यूनियनों ने खोला मोरचा बागान प्रबंधनों को दी आंदोलन की चेतावनी सिलीगुड़ी : सिलीगुड़ी तथा इसके आसपास के इलाकों में स्थित चाय बागानों में कार्य कर रहे श्रमिकों की स्थिति इन दिनों बेहद दयनीय है. हर दिन […]

जोखिम में डालती है नन्हे बच्चों की जान
न क्रेच, न पीने का पानी, कैंटीन भी नदारद
श्रमिक यूनियनों ने खोला मोरचा
बागान प्रबंधनों को दी आंदोलन की चेतावनी
सिलीगुड़ी : सिलीगुड़ी तथा इसके आसपास के इलाकों में स्थित चाय बागानों में कार्य कर रहे श्रमिकों की स्थिति इन दिनों बेहद दयनीय है. हर दिन ही किसी न किसी चाय बागान के बंद होने तथा श्रमिकों को समय पर वेतन तथा अन्य सुविधाएं नहीं देने की बात सामने आती रहती हैं.
राज्य सरकार के साथ-साथ केन्द्र सरकार की ओर से भी चाय बागानों में कार्य कर रहे चाय श्रमिकों की पूरी तरह से अनदेखी की जा रही है. बागान मालिकों के मनमाने रवैये की वजह से चाय श्रमिकों की स्थिति दिन पर दिन बदहाल होती जा रही है. कई श्रमिकों की भूख से मौत हो चुकी है. हालांकि इस कठोर सत्य को न तो बागान प्रबंधक न ही राज्य सरकार मानने के लिए तैयार है. चाय की चुस्की के बीच श्रमिकों की जिंदगी सिसक रही है.
खासकर महिला श्रमिकों की हालत तो और भी खराब है. दो जून की रोटी जुटाने के लिए महिला श्रमिकों को अपने छोटे बच्चों की जान को दांव पर लगाना पड़ता है. चाय उद्योग के लिए यह अभी ‘पिक सीजन’ है. चाय की पत्तियां इसी मौसम में खिलती है और पत्तियों को तोड़ने का काम भी होता है. चाय पत्तियों को तोड़ने के काम में अधिकांश रूप से महिला श्रमिक लगी होती हैं. महिलाएं सुबह ही अपने घर से चाय पत्ती तोड़ने के लिए चाय बागानों की ओर निकल पड़ती हैं. एक महिला श्रमिक को दिन भर में 25 किलो चाय की पत्ती तोड़ना अनिवार्य है.
अगर वह 25 किलो चाय की पत्ती तोड़ेंगी तो उन्हें मजदूरी के रूप में 122 रुपये का भुगतान किया जायेगा. अगर वह 25 किलो चाय पत्ती नहीं तोड़ पायेंगी, तो प्रति किलो की दर से 3 रुपये काट लिये जायेंगे. रोजी-रोटी की जुगाड़ में लगी ये महिलाएं किसी तरह का जोखिम नहीं उठातीं और अपने दूधमुंहे बच्चे को लेकर चाय की पत्ती तोड़ने के लिए चाय बागान निकल जाती हैं.
नियमानुसार हरेक चाय बागान में नन्हें बच्चों को रखने के लिए क्रेच बनाना अनिवार्य है. सिर्फ इतना ही नहीं, इन क्रेचों में बच्चों की देखरेख के लिए प्रशिक्षित कर्मचारियों का होना भी अनिवार्य है. इसके लिए राज्य सरकार की ओर से कड़े नियम बनाये गये हैं. उसके बावजूद बागान प्रबंधन द्वारा इस नियम की पूरी तरह से अनदेखी की जा रही है.
सिलीगुड़ी में कई चाय बागानों में क्रेच की सुविधा नहीं है. यदि कहीं क्रेच है भी तो वहां बच्चों को रखने के लिए मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं करायी जा रही है. इसी वजह से महिला चाय श्रमिक अपने दूधमुंहे बच्चे को लेकर चाय बागान की ओर निकल पड़ती हैं.
यह महिलाएं अपने बच्चों को चाय के चार पौधों के बीच गमछा लगाकर वहां रख देती हैं और खुद चाय पत्ती तोड़ने में जुट जाती हैं. यह तरीका अपने आप में बेहद खतरनाक और जोखिम भरा भी है. चाय बागानों में जिन कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है, वह काफी जहरीला होता है. इसके अलावा चाय बागानों में खतरनाक कीड़े-मकोड़े भी उड़ते रहते हैं.
इतना ही नहीं, चाय बागानों में विषैले सांप भी निकलते हैं. सांप काटने की वजह से अब तक कई श्रमिकों तथा बच्चों की मौत हो चुकी है. इसके बाद भी मजबुरीवश महिला चाय श्रमिक अपने बच्चों की जान को दांव पर लगाकर चाय पत्ती तोड़ने का काम करती हैं.
चाय बागानों में महिला श्रमिकों को किसी प्रकार की कोई सुविधा नहीं दी जाती. सरकारी आंकड़ों द्वारा मिली जानकारी के अनुसार, इस क्षेत्र में कुल 270 चाय बागान हैं जिनमें से आधे से अधिक में क्रेच के लिए आवश्यक सुविधाओं का अभाव है. 270 चाय बागानों में से मात्र 140 चाय बागानों में क्रेच में रहने वाले बच्चों के लिए दूध की आपूर्ति की जाती है.
इसके अलावा 270 चाय बागानों में से मात्र 119 में ही शौचालय की व्यवस्था है. जहां-जहां क्रेच हैं भी वहां-वहां प्रशिक्षित कर्मचारियों की व्यवस्था नहीं की गई है. इतना ही नहीं, चाय बागानों के आसपास कैंटीन तक की व्यवस्था नहीं हैं, जहां महिला चाय श्रमिक स्वयं तथा अपने नन्हें बच्चों को कुछ खिला सके.
इस बीच, चाय बागानों की इस बदहाली को देखते हुए श्रमिक यूनियनों के नेताओं ने अपने तेवर तल्ख कर लिये हैं. पश्चिम बंगाल चा बागान श्रमिक कर्मचारी यूनियन के तराई-डुवार्स रिजन के सहायक सचिव अमूल्य दास ने महिला श्रमिकों की ऐसी दयनीय स्थिति पर अपनी चिंता जाहिर की है और चाय बागान प्रबंधन से तत्काल क्रेच बनाने की मांग की है.
उन्होंने बताया कि इस मुद्दे पर चाय बागान प्रबंधन से पहली भी बातचीत की जा चुकी है. इसके अलावा चाय श्रमिकों ने अपनी विभिन्न मांगों से संबंधित जो चार्टर्ड ऑफ डिमांड राज्य सरकार के श्रम विभाग तथा बागान प्रबंधन को दिया है उसमें भी इस बात की जिक्र की गई है.
उन्होंने कहा कि जिस सेक्शन में महिला श्रमिक चाय पत्ता तोड़ने का काम कर रही हैं उसी सेक्शन में तिरपाल का शेड बनाकर बच्चों को रखने की व्यवस्था करनी होगी. इसके अलावा किसी बुजुर्ग कर्मचारी को बच्चों की देखरेख के लिए यहां तैनात करना होगा. उन्होंने कहा कि यदि शीघ्र ही इस समस्या के समाधान की दिशा में कोई पहल नहीं की गई, तो वह लोग जोरदार आंदोलन करेंगे.
क्या है आंकड़ा
– 270 चाय बागानों में से 144 चाय बागानों में बच्चों को दूध की आपूर्ति बंद
– 270 चाय बागानों में से 119 में शौचालय का अभाव
– 270 चाय बागानों में से 133 चाय बागानों के क्रेच में पानी तथा कपड़ों की धुलाई की व्यवस्था नहीं
– 125 चाय बागानों में कैंटीन का अभाव, अधिकतर क्रेचों में एटेंडेंट की कमी
कठोर नियम
महिला चाय श्रमिकों को 122 रुपये की मजदूरी प्राप्त करने के लिए हर दिन ही 25 किलो चाय पत्ती तोड़ना अनिवार्य. कम तोड़ने पर प्रति किलो 3 रुपये की दर से मजदूरी में कटौती. अधिक तोड़ने पर मात्र डेढ़ रुपये प्रति किलो का भुगतान.

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