आपका तिस्ता हिमालय के संपादक डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह की अध्यक्षता में देवेन्द्र नाथ शुक्ल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केंद्रित आलोचना सत्र में डॉ मनीषा झा ने कवि शुक्ल की कविताओं को विसंगतियों के क्रूरतम स्वरूप को उभारने वाली कविता कहा. डॉ ओमप्रकाश पाण्डेय ने अपने दोहों के माध्यम से कवि शुक्ल की रचना शैली की जिटलता का स्मरण कराते हुए उनके रचना कर्म पर प्रकाश डाला. प्रो अजय कुमार साव ने श्री शुक्ल के कवि व्यक्तित्व के विज्ञान और मिथक ,दो छोरों के बीच से चुनौतियों को पार करते हुए अनोखी उपलब्धि के रूप में रेखांकित किया. मणिपुर केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की प्रो डॉ कंचन शर्मा ने कवि शुक्ल की कविता ‘हिमालय खोज रहा हूं’ में व्यक्त कवि की पीड़ा को वर्तमान समय की चिंता बताया.
उन्होंने आगे कहा कि कवि शुक्ल रोटी और भूख की पीड़ा, बूढ़े बनते बच्चों के दर्द और तत्कालीन समाज की पीड़ा, विषाद से जूझने वाले कवि हैं. उनकी कविताओं में समाज, संक्रमित त्रिशंकु संस्कृति चिंता बनकर उभरी है. कवियित्री रंजना श्रीवास्तव ने शुक्ल की काव्यगत जटिलता को उनकी विशिष्टता के रूप में रेखांकित किया. साथ ही कहा कि उनका समावेशी व्यक्तित्व साहित्य जगत को जोड़ता रहा है. डॉ भीखी प्रसाद वीरेंद्र ने शुक्ल के रचना कर्म को बहुआयामी बताया. आलोचना सत्र के अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह ने कहा कि रचनाकार के लिए आवश्यक है कि वह जनता को जनता की दृष्टि से देखे और सृजन कर्म में प्रवृत्त हो. धन्यवाद ज्ञापन करते हुए पुनीत बंसल ने कहा कि अपने सृजन कर्म में आज भी हमारे लिए देवकीनन्दन अग्रवाल अपनी उपस्थिति का आभास देते रहते हैं. इसी आभास को संपन्न बनाने की दिशा में यह अवसर स्मरणीय रहेगा. इस अवसर पर अधिवक्ता अत्रीय शर्मा, समाजसेवी सम्पतमल संचेती, रोशन लाल अग्रवाल, पुष्पा देवी अग्रवाल, प्रभाकर मिश्र, बीबी पाण्डेय, जेके उपाध्याय, ओम प्रकाश अग्रवाल, ज्योति अग्रवाल, मोती अग्रवाल, कमलेश्वरी प्रसाद उपस्थित रहे. समारोह का कुशल संचालन व्यंग्यकार करन सिंह जैन ने किया.