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राजनीतिक चर्चा छोड़ समस्या का समाधान करें

गोरखाओं की जनसंख्या में गिरावट पर बांग्लादेशी घुसपैठ को बताया जिम्मेवार दार्जिलिंग : असम में एनआरसी लागू होने के बाद उसमें गोरखाओं का नाम छूटने के मामले के बाद अपना पक्ष रखते हुए गोजमुमो के भूमिगत नेता विमल गुरुंग ने शुक्रवार को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की. विज्ञप्ति के माध्यम से विमल गुरुंग ने कहा […]

गोरखाओं की जनसंख्या में गिरावट पर बांग्लादेशी घुसपैठ को बताया जिम्मेवार
दार्जिलिंग : असम में एनआरसी लागू होने के बाद उसमें गोरखाओं का नाम छूटने के मामले के बाद अपना पक्ष रखते हुए गोजमुमो के भूमिगत नेता विमल गुरुंग ने शुक्रवार को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की. विज्ञप्ति के माध्यम से विमल गुरुंग ने कहा है कि एनआरसी में गोरखा लोगों का नाम छूटने के विषय पर राजनीतिक चर्चा करने से बेहतर इसका तथ्य खोजकर समाधान का मार्ग निकालना जरूरी है. जारी किये गये विज्ञप्ति में विमल गुरूंग ने कहा है कि राजनीतिक बयानबाजी करने से समस्या का समाधान नहीं हो सकता है.
श्री गुरूंग ने कहा कि एनआरसी में नाम छूटने के अनेक कारण हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि अगर किसी पिता ने अपने जाति का नाम लिखा है तो बेटा जात लिखा है. देखने में भले ही यह सामान्य विषय पर, परंतु इस तरह के विषयों के कारण समस्या हो रही है. विज्ञप्ति में श्री गुरूंग ने कहा है कि सरकारी कार्यालय में कार्यरत पिता अपने नाम के साथ राई लिखा है, जबकि बेटा अपने नाम के साथ सांगपांग लिखता हैं.
लेकिन राई और सांगपांग एक ही हैं. इस तरह के कार्य से ही विवाद हो रहा है. असम सरकार ने 1971 के प्रावधान के अंतर्गत गोरखाओं को भी शामिल किया है. परंतु 1971 के प्रावधान का मतलब केवल बंग्लादेशी के ऊपर लागू होने वाला विषय है. इसमें गोरखा समुदाय नहीं आता है. गृह मंत्रालय गोरखा को 1947 के फॉरेन ट्रिब्यूनल में शामिल नहीं किये जाने की बात कह चुका है.
श्री गुरूंग ने कहा कि असम में गोरखा को प्रवासी की सूची में शामिल करके एनआरसी की प्रक्रिया में डालने का कार्य किया है. इसकी जानकारी भारत सरकार को देना जरूरी है. इन्हीं कारणों से असम में गोरखाओं का नाम एनआरसी से छूटा है. श्री गुरूंग ने फिर दोहराया कि अभी राजनीतिक चर्चा करने से बेहतर असम में जितने भी गोरखा लोगों का नाम छूटा है, उनका पता करके समाधान का मार्ग निकालना जरूरी है. उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान के धारा 9 के अनुसार यदि किसी ने स्वेच्छा से दूसरे देश की नागरिकता ली है तो उस व्यक्ति को भारत का नागरिकता खोना पड़ता है.
उनलोगों का हमलोग चाहकर भी कोई सहायता नहीं कर सकते हैं. लेकिन 1950 के भारत-नेपाल संधि के कारण नेपालियों को देश छोड़ने की जरूरत नहीं पड़ती है. बंगाल के संदर्भ में देखा जाये तो तराई डुआर्स क्षेत्र में पिछले तीन-चार दशक से गोरखाओं की जनसंख्या में काफी गिरावट आयी है. इसका मुख्य कारण बांग्लादेशी घुसपैठ ही है. उस तरह की समस्या से गोरखा समुदाय को केवल एनआरसी ही राहत दे सकती है. उन्होंने कहा कि यहां एनआरसी लागू होने से पहले हमलोग व हमारी पार्टी जनता को अपने दस्तावेजों को संग्रह करने में सहयोग करेगी. पीड़ितों के बारे में बयानबाजी करने से बेहतर उनलोगों को सहयोग करके न्याय दिलाने में सहयोग करना बड़ी बात है.

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