प्रिंसिपलों ने कहा : क्वालिटी एजुकेशन व सुविधाओं के लिए निजी स्कूल लेते हैं ज्यादा फीस
भारती जैनानी, कोलकाता
राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शुक्रवार को विधानसभा में यह घोषणा की कि निजी अस्पतालों के बाद अब निजी स्कूलों के कामकाज पर भी नजर रखी जायेगी. अधिक फीस व डोनेशन लेनेवाले स्कूलों के खिलाफ कानून बनाया जायेगा. इस घोषणा के बाद महानगर के निजी स्कूलों में हड़कंप मचा हुआ है. हालांकि निजी स्कूल के कुछ प्रिंसिपल मुख्यमंत्री के इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं. इस मसले पर शिक्षाविदों की राय-
सामान्य स्कूलों में ज्यादा फीस या डोनेशन लेने की समस्या ही नहीं है. सामान्य स्कूलों में वाजिब फीस है, उससे अधिक बच्चों के लिए सुविधाएं व क्वालिटी एजुकेशन भी है. जो निजी स्कूल बेहद अधिक डोनेशन अभी भी ले रहे हैं, उनके लिए अगर सरकार कुछ नियम-कायदे बना रही है तो यह अच्छी कोशिश है.
भोगेन्द्र झा (चेयरमैन, कलकत्ता पब्लिक स्कूल, बागुइहाटी)
अगर कोई निजी स्कूल एडमिशन के नाम से लाखों रुपये डोनेशन ले रहा है तो उस पर नियंत्रण होना ही चाहिए. ऐसे डोनेशन की लेनदेन से भ्रष्टाचार बढ़ता है. आज डिजिटल बोर्ड में अंगुली स्पर्श करने से ही चैप्टर बदल जाता है, बच्चे ह्यूमन डाइजेस्टिक सिस्टम देख सकते हैं. यह टेक्नोलॉजी शुरू करने में निजी स्कूल खर्च करते हैं, यहां सरकारी स्कूल जैसी फीस तो नहीं होगी. सरकार द्वारा निगरानी रखने का कदम सराहनीय है.
एस सी दूबे (शिक्षाविद व रेक्टर, ऑक्सफोर्ड हाइ स्कूल)
कोलकाता में दिल्ली जैसी स्थिति नहीं है कि प्राइवेट स्कूल एडमिशन के नाम से लूट मचायें. वहां काफी डोनेशन लिया जाता था, इसलिए सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा. यहां सामान्य स्कूल में आधुनिक सुविधाओं के हिसाब से फीस ज्यादा ली जाती है, क्योंकि स्कूल चलाने व मेनटेन करने के लिए काफी खर्च होती है. इसके बदले में यहां बच्चों का जीवन भी संवरता है. अगर सरकार ने निजी स्कूलों के साथ बातचीत करने, अपना पक्ष व प्रस्ताव रखने की रणनीति तय की है तो यह अच्छी बात है, इससे शिक्षा में कुछ सकारात्मक बदलाव आयेगा.
मुक्ता नैन (प्रिंसिपल, बिरला हाइ स्कूल)
एडमिशन के नाम से बहुत ज्यादा डोनेशन लेने वाले निजी स्कूलों पर नियंत्रण व निगरानी होनी चाहिए. सरकार की यह घोषणा एक सही कदम है, लेकिन इसका प्रभाव विपरीत नहीं होना चाहिए. हमारा स्कूल आज केजी से लेकर 12वीं कक्षा तक जो सुविधाएं बच्चों को देता है, उसकी तुलना में हमारी फीस अन्य स्कूलों के मुकाबले बहुत नोमिनल है. क्वालिटी एजुकेशन के लिए स्कूल को कई खर्चे करने पड़ते हैं. अगर फीस नहीं लेंगे तो स्कूल नहीं चलाया जा सकता है. आज सरकारी स्कूलों में सरकार कई तरह के लाभ बच्चों को दे रही है, फिर भी पैरेंट्स निजी स्कूलों की तरफ दाैड़ते हैं, क्योंकि क्वालिटी एजुकेशन चाहिए. यह भी समझना होगा. इसी के आधार पर सरकार को स्कूल प्रबंधकों से विचार-विमर्श करना चाहिए.
विजया चाैधरी (प्रिंसिपल, बीडीएम इंटरनेशनल स्कूल)-