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धनोपार्जन का साधन समझ संगीत ना सीखें
शास्त्रीय संगीत के साथ आधुनिक शिक्षा भी ग्रहण करें कोलकाता में पांच मार्च को ‘गोल्डेन ट्रायो’ बिखेरेगा सुर त्रिवेणी अजय विद्यार्थी कोलकाता : प्रसिद्ध मोहनवीणा वादक, ग्रैमी पुरस्कार विजेता पद्यभूषण पंडित विश्व मोहन भट्ट भारतीय संगीत की विशिष्ट हस्तियों में से एक हैं. ये पंडित रविशंकर के शिष्यों में से एक हैं. इन्हें मोहन वीणा […]
शास्त्रीय संगीत के साथ आधुनिक शिक्षा भी ग्रहण करें
कोलकाता में पांच मार्च को ‘गोल्डेन ट्रायो’ बिखेरेगा सुर त्रिवेणी
अजय विद्यार्थी
कोलकाता : प्रसिद्ध मोहनवीणा वादक, ग्रैमी पुरस्कार विजेता पद्यभूषण पंडित विश्व मोहन भट्ट भारतीय संगीत की विशिष्ट हस्तियों में से एक हैं. ये पंडित रविशंकर के शिष्यों में से एक हैं. इन्हें मोहन वीणा के जनक के तौर पर भी जाना जाता है.
इन्हें 2002 में पद्मश्री सम्मान, ग्रैमी अवार्ड व 2012 राजस्थान रत्न से नवाजा गया. इस वर्ष इन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से सम्मानित किया गया है. 1980 के मध्य में भारत रत्न पंडित रविशंकर के निर्देशन में उनके तीन शिष्य पंडित विश्वमोहन भट्ट (मोहनवीणा), पंडित तरुण भट्टाचार्य ( संतूर) तथा पंडित दयाशंकर (शहनाई) के ‘गोल्डेन ट्रायो’ ने त्रिवेणी सुरों के संगम से विश्व के दर्शकों का हृदय को जीत लिया था.
सुरों की त्रिवेणी जोड़ी ने रॉयल अल्बर्ट हॉल, हेनली स्टेडियम (कनाडा), थियेटर डी ला वेल (पेरिस) के साथ-साथ अमेरिकी, यूरोपीय देशों, जापान, ब्रिटेन के साथ भारत के विभिन्न शहरों में धूम मचायी और ‘गोल्डेन ट्रायो’ विश्व प्रसिद्ध हो गया. लगभग तीन दशक बाद पंडित रविशंकर के निधन के बाद उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए 11 अगस्त, 2013 को प्रसिद्ध तबला वादक विक्रम घोष की संगत में ‘गोल्डेन ट्रॉयो’ ने कोलकाता में अपने सुर बिखेरे थे. अब वही ‘गोल्डेन ट्रायो’ आगामी पांच मार्च को कोलकाता के कलकत्ता रोइंग क्लब में अपनी धुनों से कोलकाता के दर्शकों को अहल्लादित करेगा. कार्यक्रम का आयोजन प्ले ऑन की ओर से किया गया है. ‘गोल्डेन ट्रायो’ के आयोजन के पूर्व प्रभात खबर ने पंडित विश्व मोहन भट्ट से विशेष बातचीत की. प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश :
सवाल : ‘गोल्डेन ट्रायो’ क्या है ? लगभग तीन दशक बाद शास्त्रीय संगीत में क्या बदलाव आये हैं ?
जवाब : भारतरत्न पंडित रविशंकर के सानिध्य में मैं, प्रसिद्ध संतूर वादक पंडित तरुण भट्टाचार्य और प्रख्यात शहनाई वादक पंडित दयाशंकर की त्रिवेणी ने सुरो का संगम पेश किया था.
वह ‘गोल्डेन ट्रायो’ के नाम से विश्व प्रसिद्ध है. गुरु पंडित रविशंकर के साथ विश्व के विभिन्न मंचों पर यह त्रिवेणी जब अपने सुरों को बिखेरती थी, तो लोग सिर आंखों पर बैठा लेते थे. लगभग तीन दशक बाद शास्त्रीय संगीत की तीन अलग-अलग विधाओं के कलाकारों ने अपने वाद्यों के माध्यम से प्रसिद्धि हासिल की है. सभी अपनी परंपरागत शैली का निर्वाह करते हुए संगीत की साधना कर रहे हैं. वर्ष बीतने के साथ-साथ संगीत की परिपक्वता भी बढ़ी है. संगीत हीरे की तरह है, उसे जितना तराशा जाता है, वह उतना ही चमकता है. शास्त्रीय संगीत में जितना रियाज करेंगे, तो संगीत उतना ही निखरेगा और महारत हासिल होगा.
सवाल : वर्तमान में भारत में शास्त्रीय संगीत कितना लोकप्रिय है ? क्या यह कुछ खास लोगों तक ही सीमित नहीं रह गया है ?
जवाब : शास्त्रीय संगीत भारतीय संस्कृति का मूल है. हमारी परंपरा, संस्कार और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है. अब समझना होगा कि आदमी क्षणिक मनोरंजन चाहता है या फिर आत्मा का शुद्धिकरण और अंतर्मन की शांति. शास्त्रीय संगीत आत्मा के शुद्धिकरण व मन-मस्तिष्क को शांति प्रदान करता है. भगवान व अाध्यात्म के लिए प्रेरित करता है. अब यह बहस का विषय है कि लोग क्षणिक सुख या आत्मा को शांति प्रदान करने वाले संगीत की ओर अग्रसर होते हैं या नहीं. मेरा मानना है कि यह ‘मिक्सड परसेंटेज’ है.
हम कलाकार शास्त्रीय संगीत के प्रति जागृति लाने और संगीत के संस्कार विकसित करने के लिए इस तरह के कार्यक्रम करते हैं, ताकि युवा पीढ़ी में शास्त्रीय संगीत के बीज का रोपण किया जा सके और इसमें मीडिया की भी महत्वपूर्ण भूमिका है.
सवाल : शास्त्रीय संगीत के प्रति समाज व सरकार का क्या दृष्टिकोण हैं ?
जवाब : केवल सरकार के भरोसे शास्त्रीय संगीत का विस्तार संभव नहीं है. सरकार शास्त्रीय संगीत के विस्तार के लिए अपने स्तर पर कई कार्य करती है, लेकिन सरकार की भी अपनी सीमाएं हैं. उन सीमाओं के बीच ही सरकार को काम करना होता है. आप टीवी देखते हैं. हर क्षेत्र के लिए अलग-अलग चैनल हैं. एक ही विषय को लेकर कई चैनल हैं, लेकिन शास्त्रीय संगीत को समर्पित एक भी चैनल नहीं है. हमारे देश की इतनी बड़ी आबादी है. उस आबादी का एक हिस्सा ही शास्त्रीय संगीत पसंद करता है, लेकिन वह भी उन्हें उपलब्ध नहीं होता है. यह दु:ख की बात है.
सवाल : शास्त्रीय कार्यक्रम के आयोजन में क्या कारपोरेट घरानों से पर्याप्त सहयोग मिलता है ?
जवाब : क्रिकेट ही एक ऐसा खेल है, जिस पर कॉरपोरेट घराने मेहरबान रहते हैं. पुराने जमाने में हमारे राजा- महाराजा शास्त्रीय संगीत को विशेष प्रश्रय देते थे. इससे शास्त्रीय संगीत फला-फूला. हमारे बड़े-बड़े कारपोरेट जैसे अदानी, अंबानी आदि शास्त्रीय संगीत के लिए अपनी आय का .00001 प्रतिशत भी समर्पित करें, तो शास्त्रीय संगीत व कलाकार के साधक नयी उंचाइयों को छू पायेंगे तथा ऐसे अनेक कार्यक्रमों का आयोजन हो पायेगा, जिससे युवाओं व नयी पीढ़ी को प्रेरित किया जा सके.वैसे बंगाल के घर-घर में संगीत बसता है. मेरा मानना है कि अभिभावकों को शास्त्रीय संगीत में रूचि लेनी चाहिए तथा उन्हें बच्चों को शास्त्रीय संगीत सीखने के लिए प्रेरित करना चाहिए.
सवाल : लेकिन अभिभावक अपने बच्चों को शास्त्रीय संगीत की ओर प्रेरित क्यों करेंगे, क्या इसमें अच्छा करियर है ?जवाब: मैं यह मानता हूं कि शास्त्रीय संगीत से धनोपार्जन नहीं किया जा सकता है. जब तक आप प्रसिद्ध नहीं हो जाते हैं, तब-तक यह जीविकोपार्जन का माध्यम नहीं हो सकता है.इसलिए मैं बच्चों व युवाओं से कहता हूं कि शास्त्रीय संगीत सीखने के साथ-साथ पढ़ाई करें. एमबीए, इंजीनियरिंग, डॉक्टरी करें या फिर कंप्यूटर में दक्षता हासिल करें. आर्थिक रूप से अपने को सबल करें. आय का अपना एक निश्चित साधन बनायें. साथ में अपनी संस्कृति के मूल शास्त्रीय संगीत को भी अपनायें. इससे उन्हें भारतीय संस्कृति की विरासत मिलेगी, जिसे वह अपनी अगली पीढ़ी को दे पायेंगे और उन्हें आर्थिक रूप से कोई भय नहीं रहेगा.
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