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समाज को संवारता है साहित्य : राज्यपाल

कोलकाता. नकारात्मक लेखनी या फिर दूसरे के विचारों पर आधारित साहित्य कभी भी स्थायी नहीं रह सकता. साहित्य का सृजन रूपी स्वरूप ही समाज को संवार सकता है. साहित्य न केवल समाज का दर्पण होता है, बल्कि समाज की दिशा की ओर भी इशारा करता है. यह कहना है राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी का. श्री बड़ाबाजार […]

कोलकाता. नकारात्मक लेखनी या फिर दूसरे के विचारों पर आधारित साहित्य कभी भी स्थायी नहीं रह सकता. साहित्य का सृजन रूपी स्वरूप ही समाज को संवार सकता है. साहित्य न केवल समाज का दर्पण होता है, बल्कि समाज की दिशा की ओर भी इशारा करता है. यह कहना है राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी का. श्री बड़ाबाजार कुमारसभा पुस्तकालय की ओर से आयोजित जुगलकिशोर जैथलिया स्मृति व्याख्यानमाला के पहले आयोजन के तहत ‘साहित्य का सामाजिक संदेश’ विषय पर अपना वक्तव्य रखते हुए उन्होंने ये बातें कहीं.

राज्यपाल ने यह भी कहा कि श्री जैथलिया की सामाजिक स्वीकृति और विश्वसनीयता की वजह से वह उनके प्रशंसक रहे हैं. वह विभिन्न संस्थाओं के प्रेरक थे. कुमारसभा पुस्तकालय तो उनके कण-कण में बसा था. उनकी स्मृति में व्याख्यानमाला का आयोजन प्रशंसनीय कदम है. इस अवसर पर उपस्थित मुख्य अतिथि तथा राजस्थान के सार्वजनिक निर्माण व परिवहन मंत्री युनूस खां ने श्री जैथलिया को स्मरण करते हुए कहा कि विषम परिस्थितियों में कार्य करना श्री जैथलिया की विशेषता रही. उनकी उस लौ को प्रज्जवलित रखने की जिम्मेदारी अब सभी की है. राज्यपाल ने श्री जैथलिया को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की.

इस अवसर पर मुख्य वक्ता डॉ शिवओम अंबर ने साहित्य के सामाजिक संदेश पर कहा कि नकारात्मकता का निषेध व सकारात्मकता का सन्निवेश ही कविता और साहित्य का संदेश है. उन्होंने कहा कि पहली कविता शब्द के धनुष पर बिंधे हुए क्रौंच की व्यथा से व्यथित शाप की टंकार थी. श्री जैथलिया को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्होंने कहा कि वे सच्चे अर्थों में कर्मयोगी थे. जब बाह्य जीवन में आचरण का व्याकरण होता है, शुद्ध अंत:करण होता है और शरीर जब जयस्थली बनता है तभी कोई जुगलकिशोर जैथलिया बनता है.

विशिष्ट अतिथि सज्जन कुमार तुलस्यान ने कहा कि श्री जैथलिया एक निष्ठावान स्वयंसेवक के रूप में समाज व राष्ट्र को समर्पित थे और कार्यकर्ताओं का निर्माण करना उनकी विशेषता थी. कार्यक्रम की शुरुआत में ‘हे नाथ अब तो ऐसी दया हो’ वंदना से हुआ जिसका गायन सत्यनारायण तिवाड़ी ने किया. स्वागत भाषण पुस्तकालय के मंत्री महावीर बजाज ने तथा धन्यवाद ज्ञापन दुर्गा व्यास ने किया. कार्यक्रम का संचालन डॉ तारा दुगड़ ने किया. अरुण प्रकाश मल्लावत, मोहनलाल पारिक व शांतिलाल जैन भी मंच पर उपस्थित थे. भंवरलाल मूंधड़ा, शंकरबक्स सिंह, रुगलाल सुराणा (जैन), बंशीधर शर्मा व सुनीता झंवर ने माल्यार्पण कर अतिथियों का स्वागत किया.

कार्यक्रम को सफल बनाने में गिरधर राय, योगेश राज उपाध्याय, संत्येंद्र सिंह अटल, मनोज काकड़ा, सत्यप्रकाश राय, राजाराम बिहानी, गजानंद राठी, श्रीराम सोनी, चंद्रकुमार जैन व अन्य सक्रिय रहे. कार्यक्रम में अलका पाण्डे, महावीर प्रसाद माणकसिया, ईश्वरीप्रसाद टांटिया, नंदलाल शाह, विमल लाठ, अनिल पाण्डेय, भागीरथ चांडक, गोविंद नारायण काकड़ा, जयप्रकाश सेठिया, तारकदत्त सिंह, योगेंद्र शुक्ल सुमन, डॉ आरएस मिश्र, नंदलाल रोशन, आनंदमोहन मिश्र, शंभु प्रसाद जालान, रामचंद्र अग्रवाल, नरेंद्र अग्रवाल, स्नेहलता बैद, सुशीला चेनानी, किशन झंवर, दिनेश पाण्डे, गुड्डन सिंह, पूर्णिमा कोठारी, सत्यप्रकाश दूबे, गोविंद जैथलिया, राजकुमार भाला, मुरली मनोहर चांडक, नवल केडिया, ओमप्रकाश मिश्र तथा अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे.

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