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फैसला: सिंगूर में टाटा नैनो के लिए जमीन अधिग्रहण को सुप्रीम कोर्ट ने अवैध करार दिया, किसानों को जमीन वापस मिलेगी

सिंगूर के किसानों ने बड़ी जीत हासिल की है. दूरगामी नतीजे वाले एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सिंगूर में 2006 में पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा टाटा मोटर्स की नैनो कार उत्पादन संयंत्र स्थापित करने के लिए 997.11 एकड़ जमीन के विवादास्पद अधिग्रहण को निरस्त कर दिया. अदालत ने किसानों को उनकी जमीन 12 हफ्ते […]

सिंगूर के किसानों ने बड़ी जीत हासिल की है. दूरगामी नतीजे वाले एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सिंगूर में 2006 में पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा टाटा मोटर्स की नैनो कार उत्पादन संयंत्र स्थापित करने के लिए 997.11 एकड़ जमीन के विवादास्पद अधिग्रहण को निरस्त कर दिया. अदालत ने किसानों को उनकी जमीन 12 हफ्ते के अंदर लौटाने का निर्देश दिया है.
कोलकाता/नयी दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को वर्ष 2006 में माकपा के नेतृत्व वाली तत्कालीन वाममोरचा सरकार द्वारा टाटा के नैनो कार प्रोजेक्ट के लिए सिंगूर में 997 एकड़ जमीन का अधिग्रहण अवैध बताते हुए किसानों को उनकी जमीन 12 हफ्ते के भीतर लौटाने का निर्देश दिया. सुप्रीम कोर्ट ने अधिग्रहण की समूची प्रक्रिया को अवैध करार दिया.

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश वी गोपाल गौड़ा और न्यायाधीश अरुण मिश्र की खंडपीठ ने अपने पृथक फैसलों में भिन्न बिंदुओं पर, अधिग्रहण की प्रक्रिया को खारिज करने और हजारों किसानों को उनकी जमीन लौटाने का निर्देश दिया. न्यायाधीश गौड़ा ने अपना फैसला पढ़ते हुए कहा कि किसानों से लेकर कंपनी के पक्ष में जमीन के अधिग्रहण को ‘जनहित’ में करार नहीं दिया जा सकता. हालांकि न्यायाधीश मिश्र की इस बिंदु पर अलग राय थी. उनका कहना था कि टाटा मोटर्स के पक्ष में जमीन का अधिग्रहण जनहित में था क्योंकि फैक्टरी से हजारों लोगों को रोजगार मिलता. इस संबंध में कुछ अवैध नहीं था. लेकिन दोनों ही न्यायाधीशों का मानना था कि पूछताछ की प्रक्रिया जिसके बाद अधिग्रहण की अधिसूचना जारी हुई, वह सही तरीके से नहीं हुई थी. न्यायाधीश गौड़ा के मुताबिक, कार्य कानून के मुताबिक करना चाहिए या फिर नहीं करना चाहिए. जमीन मालिकों के लिए नोटिस जारी नहीं किया गया और उनकी आपत्तियों पर ध्यान नहीं दिया गया. न्यायाधीश मिश्र के अनुसार पूछताछ प्रक्रिया विकृत रही. भले ही अधिग्रहण जनहित के लिए किया गया, परियोजना गुजरात में चली गयी और इसकी जरूरत खत्म हो गयी.

पूरी अधिग्रहण प्रक्रिया खारिज की जाती है . न्यायाधीश गौड़ा के अनुसार जमीन अधिग्रहण कलेक्टर ने कोई कारण नहीं बताया. जिससे स्पष्ट होता है कि राज्य सरकार ने अधिसूचना जारी करने के संबंध में अपने दिमाग का इस्तेमाल नहीं किया. नोटिस जारी करने के संबंध में भी न्यायाधीशों का रुख अलग-अलग था. जहां न्यायमूर्ति गौड़ा के अनुसार अधिग्रहण के लिए व्यक्तिगत नोटिस दिये जाने चाहिए थे. वहीं न्यायमूर्ति मिश्र के अनुसार व्यक्तिगत नोटिस के बदले गजेट नोटिस पर्याप्त थी. खंडपीठ की ओर से फैसला सुनाते हुए न्यायाधीश गौड़ा ने कहा कि अधिग्रहण और मुआवजे की प्रक्रिया को खारिज किया जाता है.

खंडपीठ ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि 10 हफ्तों के भीतर अधिग्रहण की गयी जमीन को चिह्नित करें और और अगले 12 हफ्तों के भीतर किसानों को उनकी जमीन लौटा दें. खंडपीठ का यह भी कहना था कि दिये गये मुआवजे को किसान रख सकते हैं क्योंकि जमीन के अधिग्रहण की वजह से वह 10 वर्षों से उससे होने वाली कमाई से वंचित रहें. राज्य सरकार को उन्हें भी मुआवजा देना होगा जिन्हें अब तक नहीं दिया गया है.
कुछ िबंदुओं पर जजों में असहमति : दोनों न्यायाधीशों के बीच कुछ बिंदुओं पर असहमति थी. न्यायमूर्ति गौड़ा ने कहा कि टाटा मोटर्स की ओर से सार्वजनिक उद्देश्य के लिए सीधे तौर पर भूमि का अधिग्रहण नहीं किया गया था, जबकि न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि सार्वजनिक उद्देश्य के लिए जमीन के अधिग्रहण में कुछ भी अवैधता नहीं थी, क्योंकि इससे हजारों लोगों को रोजगार मिलता. वैसे दोनों न्यायाधीशों ने माना कि जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया कानून सम्मत नहीं थी.
कलकत्ता हाइकोर्ट ने सही ठहराया था : कलकत्ता हाइकोर्ट ने सरकार के अधिग्रहण को सही ठहराया था, जिसके खिलाफ किसानों की ओर से गैर सरकारी संगठनों ने फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की गयी थी. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन वाम सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा था कि लगता है सरकार ने प्रोजेक्ट के लिए जिस तरह जमीन का अधिग्रहण किया, वह तमाशा और नियम-कानून को ताक पर रख कर जल्दबाजी में लिया गया फैसला था.
इस फैसले के राजनीतिक मायने : ममता बनर्जी नीत तृणमूल कांग्रेस सरकार ,जो 2011 में पहली बार सत्ता में आयी थी, उसे बल मिला, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने उसके राजनैतिक घोषणापत्र पर मुहर लगा दी कि भूमि किसानों को लौटा दी जानी चाहिए.

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