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प्रभात विश्लेषण: चुनाव तीसरा ही जीतेगा

तारकेश्वर मिश्र पश्चिम बंगाल विधानसभा का चुनाव परिणाम आगामी 19 मई को मतगणना के बाद सबके सामने आयेगा. इस बीच सभी राजनीतिक दलों के नेता एक-एक सीट का हिसाब लगाने में व्यस्त हैं. केवल नेता ही नहीं, आम मतदाता भी तरह-तरह के तर्कों के आधार पर परिणाम के करीब पहुंचने की कोशिश में लगे हैं. […]

तारकेश्वर मिश्र
पश्चिम बंगाल विधानसभा का चुनाव परिणाम आगामी 19 मई को मतगणना के बाद सबके सामने आयेगा. इस बीच सभी राजनीतिक दलों के नेता एक-एक सीट का हिसाब लगाने में व्यस्त हैं. केवल नेता ही नहीं, आम मतदाता भी तरह-तरह के तर्कों के आधार पर परिणाम के करीब पहुंचने की कोशिश में लगे हैं. मीडिया के लोग भी अपने चुनावी सर्वेक्षण के क्रम में सभी विधानसभा क्षेत्रों में वोट दे चुके मतदाताओं में से 100-200 लोगों की राय जानकर सटीक पूर्वानुमान के करीब पहुंचने की जुगत में हैं. इन्हीं प्रयासों के क्रम में जो खुलासा हुआ है, उसमें एक दिलचस्प कहानी उभरकर सामने आ रही है.

एक हिंदीभाषी बहुल विधानसभा केंद्र के एक सक्रिय युवा समाजसेवी ने इस चुनाव के दौरान अपनी गतिविधियों को कुछ इस प्रकार बयान किया – ‘ सर, इलाके के करीब आधा दर्जन सामाजिक संस्थाओं से मैं सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ हूं. इसलिए प्राय: हर चुनाव में राजनीतिक दलों के लोग मेरे संपर्क में जरूर आते हैं. वैसे मैं किसी पार्टी से नहीं जुड़ा हूं. कई बार पार्टी से जुड़ने के प्रस्ताव भी मिले. लेकिन, मुझे तो पार्टी से अलग रहने का ही ज्यादा लाभ मिलता रहा है. इलाके के लगभग 25-30 युवकों के समूह को लेकर हम पिछले 10 वर्षों से हर चुनाव में कार्य करते आ रहे हैं और इस काम में बिना किसी खतरे के केवल लाभ ही लाभ है.

इस बार की चुनावी लड़ाई मुख्य रूप से तीन प्रत्याशियों के बीच थी. सबसे पहले हमसे सत्ताधारी दल के लोगों ने संपर्क किया. उनसे हम लोगों ने खर्चा-पानी लेने के बाद बता दिया कि हम सक्रिय रूप से किसी और प्रत्याशी के साथ रहेंगे, लेकिन वास्तव में हम आपकी जीत के लिए घर-घर जाकर माहौल बनायेंगे. दूसरे प्रत्याशी ने हमें भरपूर खर्चा-पानी दिया और हम भी प्रत्यक्ष रूप से रोड शो जुलूस और सभाओं में भीड़ के रूप में उस प्रत्याशी के साथ रहे. लेकिन, साथ-साथ काम कर रहे हम सभी 25-30 लोगों को यह पता था कि हमें मतदान अपनी मर्जी से ही करना है. इसलिए मैं तो कहूंगा कि इस बार चुनाव तीसरा ही जीतेगा.’ यह बताने पर कि यह तो सरासर धोखा है. उसने अपने तर्क से मुझे निरूतर कर दिया. उसने कहा – ‘ जनता में लोकप्रिय प्रत्याशी कभी भीड़ जुटाने के लिए हथकंडे नहीं अपनाता है. अब जो खुद ही जनता के साथ छल करने के लिए चुनाव के मैदान में उतरता है, उसके साथ छल करना गलत नहीं है. हमने वोट किसको दिया ये तो कोई चाहकर भी पता नहीं लगा सकता है. इसलिए पिछले दस वर्षों में हमें खर्चा-पानी देनेवाले किसी भी प्रत्याशी ने हमसे कोई शिकायत भी नहीं की.’ एक जबरदस्त विजयी मुस्कान के साथ उसने मुझे भी चुनौती दे दी – ‘आप हमें खर्चा-पानी देने वाले को यह कहानी सुनाकर भी यह विश्वास नहीं दिला सकेंगे कि हमने उसके लिए काम नहीं किया है.’ इस प्रसंग से यह सिद्ध हो जाता है कि आज की युवा पीढ़ी सचमुच जागरूक हो चुकी है. किसी से प्रत्यक्ष बैर लेने की कोई जरूरत ही नहीं है. सभी को संतुष्ट रखते हुए अपने मताधिकार की रक्षा करने उसे बखूवी आता है.
राजनीित में धन बल और बाहुबल का खेल खेलने वालों के दिन अब लदने ही वाले हैं. चुनावों के दौरान युवा पीढ़ी का धन बल और बाहुबल के आधार दुरुपयोग किये जाने की घटनायें चर्चा में रहा करती थीं, संभव है अभी भी क्लब संस्कृति से जुड़े कुछ युवा अभी भी गलत करने को बाध्य हुए हो. लेकिन, ऐसा नहीं है कि उनके पास धन बल और बाहुबल के प्रभावों से बचने का विकल्प नहीं है. केवल इच्छा शान्ति होनी चाहिए. अगर देश की युवा पीढ़ी धन बल और बाहुबल के चुनावों में बढ़ रहे प्रभाव को खत्म करने का संकल्प ले ले, तो फिर हर चुनाव में तीसरा ही जीत हासिल करेगा.

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