कोलकाता: जन संसार की ओर से हम नये साल की अगवानी इसलिए करते हैं क्योंकि यही एकमात्र त्योहार बचा है जो धर्मनिरपेक्ष है तथा जिसे हर धर्म के लोग मिल-जुल कर मनाते हैं. किंतु इस बार हम इसे भारी हृदय से मना रहे हैं, क्योंकि नये साल का प्रारंभ ही एक किशोरी की दर्दनाक मौत से हुआ, जिसने समाज को उद्वेलित कर दिया है.
कैसे संवेदना शून्य माहौल में हम जी रहे हैं, जहां एक लड़की का दो-दो बार बलात्कार करने के बाद उसे जिंदा जला दिया जाता है और कतिपय विशिष्ट जनों को लगता है कि घटना का राजनीतिकरण लाभ उठाया जा रहा है. जबकि इस घटना से सारे समाज का सिर शर्म से झुक जाना चाहिए. ये कहना है प्रख्यात लेखक व पत्रकार गीतेश शर्मा का. वे संस्था के अंतरंग गोष्ठी में ये बातें कहीं.
बांग्ला के वरिष्ठ कवि व लेखक डॉ. आशीष सान्याल ने घटना की तीव्र भर्त्सना करते हुए कहा कि जो कुछ भी हुआ उसने बंगाल की उस संस्कृति को कलंकित किया है, जिस पर हर बंगाली नाज करता था. संगोष्ठी में वरिष्ठ कवि आलोक शर्मा, नवल, शरण बंधु, प्रख्यात लेखक डॉ. बाबूलाल शर्मा, कुसुम जैन, सेराज खान बातिश, अमिताभ चक्रवर्ती, सिंदूर विरिक, जरीना जरी, विमल शर्मा, नारायण होमगाइ, सुफिया यास्मीन, ओम लाडिया, रमेश शर्मा, उषा गुप्ता, घनश्याम मौर्य, शाहिद हुसैन शाहिद, प्रदीप ड्रोलिया, सुरेश शॉ, प्रेम कपूर व अन्य चनाकार बड़ी संख्या में उपस्थित थे. संगोष्ठी में उपस्थित बुद्घिजीवियों और रचनाकारों की आम राय यह रही कि साहित्य और साहित्यकार जब तक आम आदमी की समस्याओं से नहीं जुड़ेंगे, तब तक उनकी रचनाधर्मिता बेमानी रहेगी. राष्ट्र ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी जो कुछ घटित होता है, उसके प्रति रचनाकार व बुद्धिजीवी निरपेक्ष नहीं हो सकता. अपनी रचना के माध्यम से इन सवालों पर उसे स्वयं को अभिव्यक्त करना ही चाहिए.