हावड़ा. कोई भी श्रेष्ठ कार्य अशांत मन से नहीं किया जा सकता, उसके लिए मन का शांत होना अति आवश्यक है. धार्मिक कथा या प्रवचन आदि सुनने के लिए व्यक्ति का मानसिक व शारीरिक रूप से स्वच्छ व पवित्र होना बड़ा जरूरी है. एकाधिक पौराणिक ग्रंथों में विधिवत वर्णन मिलता है कि स्वयं सृष्टि के संहारक भगवान शिव भी कथा सुनते हुए पूरी तन्मयता से शांतिपूर्ण मुद्रा में आ जाते हैं. सज्जनों से भी कथा-श्रवण के दौरान ऐसी ही पात्रता अपेक्षित है. इस आशय की तात्विक बातें पूज्य राजन जी महाराज ने मानस मंथन समिति के तत्वावधान में हावड़ा के श्याम गार्डेन में आयोजित नौ दिवसीय रामकथा के दूसरे दिन कहीं. महाराज जी ने सैकड़ों श्रद्धालुओं की मौजूदगी में रामकथा से जुड़े ऐसे-ऐसे प्रसंग सुनाये, जिन्हें अपने जीवन में उतारने की चेष्टा की जाये, तो यह जीवन सच में सार्थक हो जाये. रामकथा प्रवचन के दूसरे दिन महाराज जी ने भक्तों के लिए व्यावहारिक व सांसारिक जीवन में वैयक्तिक स्तर पर मर्यादा की एक स्पष्ट रेखा खींचने की सलाह दी, जिससे यह तय हो कि उसे किस दिशा में जाना है. बिना यह तय किये सभ्य व शालीन नागरिक नहीं बना जा सकता. इसके लिए मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम से बढ़ कर जग में दूसरा उदाहरण और कोई नहीं है. जिंदगी भर इस मृत्युलोक में इनसान माया मोह में पड़ा रहता है, इससे मुक्ति का एकमात्र जरिया प्रभु के श्रीचरणों में संपूर्ण समर्पण है. जिसने इस भवसागर में ऐसा कर दिया, उसका बेड़ा पार समझो. नौ दिवसीय रामकथा के इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि हरेराम मिश्र, शशिधर सिंह, पंडित दीनबंधु उपाध्याय, पंडित तारकेश्वर मिश्र, रघुनाथ चौधरी व अन्य भी उपस्थित थे.
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सहजता ही शांति की कुंजी : राजन महाराज
हावड़ा. कोई भी श्रेष्ठ कार्य अशांत मन से नहीं किया जा सकता, उसके लिए मन का शांत होना अति आवश्यक है. धार्मिक कथा या प्रवचन आदि सुनने के लिए व्यक्ति का मानसिक व शारीरिक रूप से स्वच्छ व पवित्र होना बड़ा जरूरी है. एकाधिक पौराणिक ग्रंथों में विधिवत वर्णन मिलता है कि स्वयं सृष्टि के […]
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