कोलकाता: कोलकाता नगर निगम का वार्षिक बजट तीन हजार करोड़ के करीब है, पर इतना बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर मौजूद होने के बावजूद लगभग एक वर्ष से निगम के खर्च व लेन-देन का कोई ऑडिट नहीं हुआ है. जिसका मुख्य कारण यह है कि नवंबर 2013 से निगम को किसी ऑडिट फार्म की सुविधा उपलब्ध नहीं है. इस बारे में शोर मचने पर फरवरी 2014 में किसी ऑडिट फार्म की सुविधा लेने के लिए टेंडर जारी किया गया, पर उसके बाद कुछ भी नहीं हुआ. विपक्ष का आरोप है कि निगम चुनाव से पहले किसी प्रकार के विवाद से बचने के लिए तृणमूल बोर्ड ने यह जानबूझ कर इस रास्ते को अपनाया है. फरवरी 2006 से अब तक तीन प्राइवेट ऑडिट फॉर्म को कोलकाता नगर निगम के ऑडिट की जिम्मेदारी सौंपी गयी है. ऑडिट की मुख्य जिम्मेदारी निगम के एक चीफ ऑडिटर के कंधों पर है, कंट्रैक्ट पर नियुक्त कुछ ऑडिटर उनकी सहयोगिता करते हैं. नवंबर 2013 में मियाद पूरी होने पर तीनों प्राइवेट ऑडिट फार्म को हटा दिया गया. तब से निगम में हिसाब-किताब का कोई ऑडिट नहीं हुआ है. गौरतलब है कि निगम के अपने ऑडिट रिपोर्ट में ही ट्राइडेंट लाइट का घोटाला सामने आया था. उसके बाद ट्रिप टोकन, तेल व वेभर इत्यादि कई आर्थिक अनियमितता के मामले ऑडिट से ही प्रकाश में आये हैं. इसलिए अब निगम प्रशासन किसी नये विवाद में फंसना नहीं चाहता है. फलस्वरूप एक वर्ष से ऊपर का समय हो गया है, निगम प्रशासन ने किसी ऑडिट फार्म की सेवा नहीं ली है.
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एक वर्ष से निगम के खर्च व लेन-देन का ऑडिट नहीं
कोलकाता: कोलकाता नगर निगम का वार्षिक बजट तीन हजार करोड़ के करीब है, पर इतना बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर मौजूद होने के बावजूद लगभग एक वर्ष से निगम के खर्च व लेन-देन का कोई ऑडिट नहीं हुआ है. जिसका मुख्य कारण यह है कि नवंबर 2013 से निगम को किसी ऑडिट फार्म की सुविधा उपलब्ध नहीं है. […]
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