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अब सुनायी नहीं देती कोयल की कूक

कोलकाता: ‘द एनर्जी एंड रिसोर्सेस इंस्टीटय़ूट’ (टेरी) द्वारा कराये गये पर्यावरण सर्वे-2013 में कोलकाता में पर्यावरण के बिगड़ते हालात के संबंध में भयावह चित्रण किया गया है. टेरी की रिपोर्ट में भयावह खुलासेभले ही 15 वर्ष पुराने वाहनों को हटाने का फैसला करके नये बस या टैक्सियों को महानगर की सड़कों पर लाने का फैसला […]

कोलकाता: ‘द एनर्जी एंड रिसोर्सेस इंस्टीटय़ूट’ (टेरी) द्वारा कराये गये पर्यावरण सर्वे-2013 में कोलकाता में पर्यावरण के बिगड़ते हालात के संबंध में भयावह चित्रण किया गया है.

टेरी की रिपोर्ट में भयावह खुलासे
भले ही 15 वर्ष पुराने वाहनों को हटाने का फैसला करके नये बस या टैक्सियों को महानगर की सड़कों पर लाने का फैसला किया गया हो, लेकिन 10 में से नौ लोगों का मानना है कि महानगर की दूषित हवा के लिए परिवहन सेक्टर जिम्मेदार है, जिसकी वजह से बीमारियां हो रही हैं. हालांकि 80 फीसदी इसी परिवहन का इस्तेमाल करते हैं, क्योंकि वह सस्ता है.

महानगर के एक बड़े हिस्से का मानना है कि कोलकाता की हरियाली कम हुई है और जलीय क्षेत्र (वाटर बॉडीज) भी घटे हैं. 10 में से तीन लोग कभी भी किसी पार्क में नहीं गये. 52 फीसदी का मानना है कि कोलकाता की हरियाली को बढ़ाने के लिए इसके कुछ हिस्सों को संरक्षित घोषित कर देना चाहिए. कुछ का मानना है कि नीतियों में बदलाव से हरियाली बढ़ेगी.

वहीं, कुछ को लगता है कि वेस्टलैंड को पार्को में बदलना चाहिए. सर्वे से पता चलता है कि हवा की गुणवत्ता स्तर में गिरावट, हरियाली के गायब होने से पर्यावरण काफी बाधित हुआ है. सर्वे में 55 फीसदी लोगों ने कहा कि अब उन्हें कोयल और तितलियां पहले से काफी कम दिखती हैं. 37 फीसदी का कहना है कि झील व तालाब का पानी बेहद गंदा हो गया है. हालांकि 10 में से छह लोगों ने कहा कि पीने के पानी की गुणवत्ता में सुधार हुआ है. 73 फीसदी का मानना था कि पानी को अधिक खपत के जरिये बरबाद किया जाता है.

10 में से सात लोगों का कहना था कि पानी की बरबादी वितरण के समय लीकेज की वजह से होती है. सर्वे में 59 फीसदी शिक्षित लोगों ने माना कि पीने के पानी के लिए वह खर्च करने को तैयार हैं. 52 फीसदी लोगों का मानना था कि शहर के कूड़े को इकट्ठा करने और उसकी डंपिंग की प्रक्रिया में सुधार हुआ है. पर्यावरण व विकास के बीच संतुलन के सवाल पर कोलकाता के 99 फीसदी लोगों का कहना था कि पर्यावरण तथा विकास की आपसी प्रकृति अलग-अलग है और इसपर पृथक रूप से विचार करना चाहिए.

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