कोलकाता: लोकसभा चुनाव में माकपा की अभूतपूर्व हार के बाद पार्टी की यहां चल रही राज्य कमेटी की बैठक में नेतृत्व बदलने की आवाजें और तेज हो गयी है. साथ ही महासचिव प्रकाश करात को अपनी ‘त्रुटिपूर्ण राजनीतिक दिशा’ के लिए घोर आलोचना का सामना करना पड़ा.
माकपा ने 60 के दशक के मध्य में अपनी स्थापना के बाद से चुनावों में अबतक का सबसे खराब प्रदर्शन किया है और पिछले कुछ दिनों से पार्टी के ‘अक्षम’ नेतृत्व में बदलाव की मांग गति पकड़ रही है. नेतृत्व में बदलाव की मांग माकपा के मौजूदा मध्य स्तर के नेताओं और पार्टी से निष्कासित नेताओं ने मिलकर उठायी है. इसलिए पार्टी की दो जून से शुरू हुई दो दिवसीय राज्य कमेटी की बैठक में हाल के समय में हुई बैठकों की तुलना में बहुत गरमी देखी गयी. विभिन्न जिलांे के राज्य कमेटी के नेताओं ने किसी का नाम लिए बिना करात, राज्य सचिव विमान बोस, पोलित ब्यूरो के सदस्य और पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धादेव भट्टाचार्य और राज्य में विपक्ष के नेता डॉ सूर्यकांत मिश्र की संकट के समय नेतृत्व देने में विफल रहने के लिए निंदा की.
बैठक में करात के अलावा त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार और पोलित ब्यूरो के सदस्य सीताराम येचुरी भी मौजूद थे. पार्टी ने 34 साल के बाद पश्चिम बंगाल में 2011 में तृणमूल कांग्रेस के हाथों सत्ता गवां दी थी और इस बार के लोकसभा चुनाव में राज्य की 42 में से सिर्फ दो सीटें जीत पायी है. जबकि 2009 में उसकी नौ सीट के साथ उसके नेतृत्व वाले वाममोरचे ने 15 सीटें जीती थीं.
एक राज्य कमेटी के नेता ने कहा : चुनाव से ठीक पहले क्षेत्रीय दलों के साथ तीसरा मोरचा बनाना 2009 की तरह जनता में स्वीकार्यता नहीं पा सका.
शीर्ष नेतृत्व द्वारा अपनायी गयी दिशा कोई स्वीकर्याता नहीं हासिल कर पायी, क्योंकि तीसरा मोर्चा भ्रष्ट संप्रग सरकार का कोई विकल्प प्रस्तुत करने में विफल रहा. एक अन्य राज्य कमेटी के नेता ने कहा कि चुनाव प्रचार के दौरान तृण्मूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी और भाजपा नेता नरेंद्र मोदी के बीच मौखिक द्वंद्व-युद्ध की वजह से राज्य में हुए ध्रुवीकरण को आंकने में नेतृत्व विफल रहा.
राज्य कमेटी के नेता ने कहा : हम पूरी तरह से ममता बनर्जी और नरेंद्र मोदी के बीच के मौखिक द्वंद्व-युद्ध को समझने में विफल रहे, जिससे चुनाव में ध्रुवीकरण हुआ. हमने सोचा कि भाजपा तृणमूल का वोट प्रतिशत खायेगी, लेकिन असलियत में भाजपा ने वामपंथ की जगह खायी, वह भी इस तथ्य के बावजूद कि वामपंथ पारंपरिक रूप से भाजपा और सांप्रदायिक शक्ति के विरुद्ध है. कई नेताओं ने शीर्ष नेतृत्व की इस तर्क की भी निंदा की जिसमें ‘सामूहिक जिम्मेदारी’ की बात कही गयी है जो उन्हें हार की सीधी आलोचना से बचाती है.
माकपा नेतृत्व में बदलाव की मांग पार्टी के राज्य मुख्यालय के बाहर मौजूदा मध्य स्तर के नेता और निष्कासित नेताओं द्वारा आयोजित की गयी रैली के एक दिन बाद आयी. रैली में मांग की गयी थी कि बंगाल में वामपंथ आंदोलन को बचाने के लिए पार्टी नेतृत्व में तुरंत बदलाव किया जाये. पार्टी के निष्कासित नेता प्रसेनजीत बोस ने रैली में कहा : नेतृत्व बार-बार नाकाम रहा है और बंगाल में वामपंथ को बचाने के लिए इसकी अक्षम और पुराने नेतृत्व को फौरन बदले की जरूरत है.