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ममता से तेलांगना के सीएम केसी राव ने की मुलाकात, तीसरे मोर्चे की कवायद तेज

कोलकाता :लोकसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले विपक्षी खेमे में गोलबंदी तेज हो गयी है. कांग्रेस के महाधिवेशन से एक दिन पहले सोनिया गांधी ने डिनर पार्टी का आयोजन कर सभी पार्टियों को चौंका दिया है. वहीं 2019 लोकसभा चुनाव से पहले तीसरा मोर्चा बनाये जाने की चर्चा जोरों पर है. तेलांगना के मुख्यमंत्री […]

कोलकाता :लोकसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले विपक्षी खेमे में गोलबंदी तेज हो गयी है. कांग्रेस के महाधिवेशन से एक दिन पहले सोनिया गांधी ने डिनर पार्टी का आयोजन कर सभी पार्टियों को चौंका दिया है. वहीं 2019 लोकसभा चुनाव से पहले तीसरा मोर्चा बनाये जाने की चर्चा जोरों पर है. तेलांगना के मुख्यमंत्री केसी राव ने बंगाल के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से कोलकाता में मुलाकात की है. इस मुलाकात को लोकसभा चुनाव से जोड़ कर देखा जा रहा है.

क्या है तीसरा मोर्चा

2019 के आम चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस पार्टी चाहती है कि तमाम विपक्षी दल कांग्रेस का सहयोग करे. वहीं तेलंगाना राष्ट्र समिति ( टीआरएस ) के प्रमुख के चंद्रशेखर राव ने तीसरा मोर्चा के लिए बिगुल फूंका है. बता दें कि राहुल गांधी के के रवैये से यूपीए के सहयोगी दल नाराज चल रहे हैं. ऐसे में तेलगांना सीएम के. चंद्रशेखर राव अलग ही तैयारियों में जुटे हैं. वो गैर-बीजेपी और गैर-कांग्रेसी तीसरा मोर्चा बनाने की जुगत में है. इस संबंध में आज वो तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात कर रहे हैं.

बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस को झटका

तीसरे मोर्चे का गठन बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस के लिए मुसीबत बन सकती है. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी सबसे मजबूत दौर से गुजर रही है. ऐसे वक्त में विपक्षी खेमे में बिखराव का लाभ भाजपा को मिलने की संभावना है. हालांकि, यूपी से समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी अभी इस खेमेबाजी से दूर नजर आ रहे हैं. हाल में बीएसपी के साथ उपचुनाव साथ लड़ने वाले सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव भी बीजेपी विरोधी दलों के गठजोड़ पर कांग्रेस को लीड करने की बात कह चुके हैं. वहीं, बिहार से लालू यादव की आरजेडी भी कांग्रेस के साथ खड़ी नजर आ रही है.

दक्षिण की पार्टियां नहीं चाहती है भाजपा – कांग्रेस का वर्चस्व

भाजपा जहां एक ओर दक्षिण भारत के राज्यों में अपना जनाधार बढ़ाना चाहती है. वहीं दक्षिण भारत की तमाम पार्टियां नहीं चाहती है कि यहां राष्ट्रीय राजनीतिक दलों का प्रभाव बढ़े. बता दें कि भाजपा का कर्नाटक छोड़ दक्षिण के किसी भी राज्य में पकड़ नहीं है. वहीं कर्नाटक में लिंगायत समुदाय भाजपा के लिए चुनौती साबित हो रही है. कर्नाटक कैबिनेट ने लिंगायत को अल्पसंख्यक का दर्जा दे दिया है. कर्नाटक कांग्रेस के इस फैसले से भाजपा के सामने नया संकट खड़ा हो गया है.
Prabhat Khabar Digital Desk
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