23.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

बेटे की रिहाई की आस देख रही हैं बूढ़ी आंखें

कोलकाता : अयोध्या मूल की 75 वर्षीया गीता कोइरी ने कभी सोचा भी नहीं था की एक ही झटके में उसकी पूरी दुनिया ही जैसे उजड़ जायेगी. पति के गुजरे 20 साल हो गये. तीन बेटे ही उसका सहारा थे. बड़े बेटे की आकस्मिक मौत से संभलने का मौका जब तक मिलता इलाका के एक […]

कोलकाता : अयोध्या मूल की 75 वर्षीया गीता कोइरी ने कभी सोचा भी नहीं था की एक ही झटके में उसकी पूरी दुनिया ही जैसे उजड़ जायेगी. पति के गुजरे 20 साल हो गये. तीन बेटे ही उसका सहारा थे. बड़े बेटे की आकस्मिक मौत से संभलने का मौका जब तक मिलता इलाका के एक कारखाना में काम करनेवाला छोटा बेटा विनोद कोइरी हत्या के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया. ‍वर्ष 2001 में महानगर में हुई हत्या के मामले में उसे गिरफ्तार किया गया था.
गिरफ्तारी के बाद आसपड़ोस में रहने वाले वे लोग जो उसकी काफी इज्जत करते थे, वे मुंह घुमाने लगे. बेटे की गिरफ्तारी के बाद वह पुलिस थाना, अदालत के चक्कर लगाती रही. मुसीबत टली नहीं थी, इसी बीच मझला बेटा भी लापता हो गया, जो अभी तक नहीं मिला. बूढी मां बेटे की रिहाई के लिए कई लोगों की कर्जदार भी हो गयी लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था और छोटे बेटे और उसके एक साथी का अपराध साबित होने के बाद दोनों को उम्रकैद की सजा सुनायी गयी. मौजूदा समय में गीता दो घरों में छोटे-मोटे काम करती है. दयावश लोग दो वक्त की रोटी दे देेते हैं. सब कुछ उजड़ जाने के बावजूद 16 सालों से बूढ़ी आंखें अभी भी बेटे की रिहाई की उम्मीद लगाये बैठी है कि शायद उसका आखिरी चिराग घर लौट आये.
मुझे भी मिल रही सजा : महानगर में नारकेलडांगा इलाके में रहने वाली गीता कोइरी का कहना है कि विनोद एक कारखाना में काम करता था. कभी भी उसने ऐसा काम नहीं किया कि शर्मिंदगी हो. वर्ष 2002 में उसका बेटा विनोद नाश्ता कर रहा था. अचानक पुलिस आयी और विनोद को पकड़ कर ले गयी. घर के पास काफी भीड़ लग गयी थी. हत्या के जुर्म में उसके बेटे की हुई गिरफ्तारी की खबर फैलते ही वे लोग जो कभी उसे श्रद्धा के साथ प्रणाम करते थे, उन्होंने मुंह फेर लिया. लोगों की तरह-तरह की बातें ने उसकी उम्मीदों को आधा तोड़ दिया था. अचानक उसके किसी की हत्या किये जाने की बात वह आज भी स्वीकार नहीं कर पा रही है. उसे आज भी यकीन नहीं होता कि उसका बेटा ऐसा कर सकता है. बेटे की गिरफ्तारी और मिली सजा के बाद उसे भी एक तरह से सजा मिल रही है.
जुर्म करने वालों की होती है दो श्रेणी : मनोचिकित्सक अभिषेक हंस का मानना है कि जुर्म करने वालों की दो श्रेणी होती है. पहली श्रेणी में वे लोग शामिल हैं जो पेशेवर अपराधी होते हैं. अपराध ही उनका पेशा होता है. इनसे जुड़े लोग और परिजन भी उसी माहौल में रहने के लिए खुद को ढाल लेते हैं. यानी अपराध के बाद संशोधनागार जाना, बार-बार पुलिस से रूबरू होना, समाज से थोड़ा कटना ऐसी कई बातें हैं जिसके वे आदि हो जाते हैं. समस्या दूसरी श्रेणी में आने वाले उन लोगों के लिए होती है जो भूलवश, लालचवश या दुर्घटनावश अपराध कर बैठते हैं. उन्हें अपराध की सजा तो मिलती ही है लेकिन कई मामलों में उनके परिवार को भी सजा भोगनी पड़ती है. मसलन ऐसे अपराधियों के परिजनों को पुलिस से रूबरू होने, संशोधनागार व अदालत के चक्कर लगाने की आदत नहीं होती. कुछ मामलों में वे आसपास के लोगों के हेय दृष्टि के शिकार भी होते हैं. भूलवश, लालचवश या दुर्घटनावश अपराध करने वाले खुद को पेशेवर अपराधियों के बीच अकेला समझते हैं. यही वजह है कि संशोधनागार में सजा काटने वाले कई ऐसे कैदियों को मनोचिकित्सकों की जरूरत भी पड़ती है. उन्हें अपनी गलती का एहसास होता है लेकिन काफी देर हो चुकी होती है.
पांच वर्षों में 3,55,157 लोगों को मिली उम्रकैद की सजा : एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2011 से वर्ष 2015 यानी पांच वर्षों में पूरे देश में 3,55,157 लोगों को उम्रकैद की सजा मिली. इनमें पुरुषों की संख्या 3,40,090 और महिलाओं की संख्या 15,067 है. पश्चिम बंगाल की बात करें तो इस अंतराल में 9,636 लोगों को उम्रकैद की सजा मिली जिनमें पुरुषों की संख्या 9,114 और महिलाओं की संख्या 522 रही.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें