कच्ची सुपारी के जाने माने व्यापारी कमल प्रसाद साह, नवल किशोर चौरसिया, नेवला प्रसाद रौनियार बताते हैं कि चामुर्ची इलाका महाकाल बाबा का धर्मस्थल है. सुपारी के व्यापारी और इस काम में लगे मजदूर सभी उत्तर प्रदेश और बिहार के रहने वाले हैं. सुपारी के छिलके उतार कर मजदूर 400 रुपये दिहाड़ी कमा लेते हैं.
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चामुर्ची इलाके में कच्ची सुपारी का सीजन शुरू
चामुर्ची. भारत-भूटान सीमावर्ती इलाका चामुर्ची कच्ची सुपारी (कच्चा गुआ) का अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक स्थल के रूप में मशहूर है. कच्चा गुआ का सीजन अब शुरू हो गया है. पूरे चामुर्ची इलाके में कच्ची सुपारियों से पेड़ लद गये हैं. चामुर्ची बाजार से लगे फॉरेस्ट बस्ती सुनतलाबाड़ी, रेडबैंक, आमबाड़ी क्षेत्रों में हर कोई सुपारी के धंधे में […]
चामुर्ची. भारत-भूटान सीमावर्ती इलाका चामुर्ची कच्ची सुपारी (कच्चा गुआ) का अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक स्थल के रूप में मशहूर है. कच्चा गुआ का सीजन अब शुरू हो गया है. पूरे चामुर्ची इलाके में कच्ची सुपारियों से पेड़ लद गये हैं. चामुर्ची बाजार से लगे फॉरेस्ट बस्ती सुनतलाबाड़ी, रेडबैंक, आमबाड़ी क्षेत्रों में हर कोई सुपारी के धंधे में व्यस्त है. कोई कच्चा गुआ को सुखाने के लिए उसे पेड़ से कटवाने में लगा है, तो कोई इस फल को मिट्टी में गाड़कर दोगुना मुनाफा कमाने का सपना संजोये हुए है. यह व्यवसाय छह से आठ महीने के अंदर दोगुना फायदा करने वाला व्यवसाय माना जाता है.
बड़ी मात्रा में यहां से सुपारी भूटान जाती है. भूटान में कच्ची सुपारी के साथ जो पान खाया जाता है, उसे दोमा पान कहते हैं. जबकि भारतीय क्षेत्र में इसे तांबुल पान के नाम से जाना जाता है. चामुर्ची से कच्ची सुपारी भूटान के फुंशिलिंग, थिम्पू और पारो भेजी जाती है. सीजन में असम और कामाख्यागुड़ी के व्यापारी गुटखा बनाने के लिए निम्न स्तरीय सुपारी को सस्ती दरों पर खरीदने के लिए चामुर्ची पहुंचते हैं.
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