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राजनीतिक दलों से नाराज पुरुषों का संगठन

कोलकाता: रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क इत्यादि की मांग पर वोट बहिष्कार का एलान आम बात है, पर पुरुषों के हित व विकास के लिए काम करनेवाले संगठनों की एक गंठबंधन ने अपनी मांग पूरी नहीं होने पर वोट नहीं देने का एलान किया है. इसके लिए नेशनल कोलिशन ऑफ मैन (एनसीएम) नामक यह गंठबंधन प्रत्याशी […]

कोलकाता: रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क इत्यादि की मांग पर वोट बहिष्कार का एलान आम बात है, पर पुरुषों के हित व विकास के लिए काम करनेवाले संगठनों की एक गंठबंधन ने अपनी मांग पूरी नहीं होने पर वोट नहीं देने का एलान किया है.

इसके लिए नेशनल कोलिशन ऑफ मैन (एनसीएम) नामक यह गंठबंधन प्रत्याशी को नकारने के हक (राइट टू रिजेक्ट) का इस्तेमाल करेगा. देश के 25 राज्यों के 50 शहरों में यह संगठन काम करता है. इन संगठनों के कुल सदस्यों की संख्या पांच हजार है.

एनसीएम के अध्यक्ष अमित गुप्ता ने बताया कि हमारे सदस्यों की संख्या देख कर कोई भी राजनीतिक दल हमारी शक्ति को कम कर आंकने की गलती न करे. देश में 498 ए मामले से पीड़ित परिवारों की संख्या लगभग 25 लाख है. प्रत्येक परिवार में चार सदस्य होने पर इनकी कुल संख्या एक करोड़ हो जाती है. जैसे-जैसे हमारे अभियान में तेजी आयेगी और भी लोग हमारे साथ जुड़ेंगे. सभी राजनीतिक दलों को पुरुषों के हितों को दरकिनार करने का खमियाजा भुगतना पड़ेगा.

श्री गुप्ता ने बताया कि चुनाव की सरगरमी शुरू होने से पहले ही हम लोगों ने अपना एक घोषणा पत्र तैयार किया था, जिसे ले कर हम लोग देश के सभी राजनीतिक दलों के पास गये, पर किसी ने भी हमारी मांगों को अपने घोषणा पत्र में जगह नहीं दी.

क्या है मांग
एनसीएम की प्रमुख मांग देश में महिला विकास मंत्रलय की तर्ज पर पुरुष विकास मंत्रलय का गठन, पुरुष आयोग का गठन, आत्महत्या कर रहे पुरुषों की बढ़ती संख्या पर नियंत्रण के लिए विशेष हेल्पलाइन तैयार करना, पुरूषों को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए कानून तैयार करना, सभी कानूनों को लैंगिक रूप से तटस्थ बनाना, 498 ए समेत सभी पारिवारिक कानूनों को सिविल कानून बनाना इत्यादि है. इसी के आधार पर एनसीएम ने अपना घोषणा पत्र तैयार करवाया था.

नारी सशक्तिकरण के नाम पर लैंगिक भेदभाव
पुरुषों के हित के लिए आवाज उठानेवाले इन संगठनों का आरोप है कि देश में नारी सशक्तिकरण के नाम पर लैंगिक भेदभाव को बढ़ावा दिया जा रहा है. ऐसा केवल वोट बैंक की राजनीति के तहत हो रहा है. श्री गुप्ता के अनुसार, महिलाओं को पुरुष के अत्याचार से बचाने की बातें तो हर कोई करता है, पर पुरुषों को महिलाओं के अत्याचार से बचाने की बात कोई नहीं करता है. हकीकत तो यह है कि महिलाओं के मुकाबले पुरुष अधिक घरेलू हिंसा का शिकार हो रहे हैं. महिलाओं ने 498 ए का सहारा ले कर पुरुषों का जीवन दूभर कर दिया है.

श्री गुप्ता ने बताया कि सितंबर 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रत्याशियों को नकारने का हक (राइट टू रिजेक्ट) का अधिकार दिया था. अगर चुनाव में खड़ा कोई भी प्रत्याशी पसंद नहीं है तो वोटर उन्हें नकार सकता है. इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर चुनाव आयोग ने सभी ईवीएम में एक अतिरिक्त बटन लगाया है, जिस पर नन ऑफ दि एबभ (उपरोक्त में कोई नहीं) दर्ज होगा, उसे दबाने पर यह जाहिर होगा कि मतदाता को कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं है. भारत में पहली बार आम चुनाव में इसका इस्तेमाल होगा. श्री गुप्ता ने कहा कि हम लोग मतदान का बहिष्कार नहीं करेंगे, बल्कि राइट टू रिजेक्ट का इस्तेमला कर राजनीतिक दलों के प्रति अपनी नाराजगी को दर्शायेंगे, इससे उन्हें भारी नुक्सान होगा.

सोशल नेटवर्किग साइटों का सहारा ले रहे
इस अभियान को लोगों तक पहुंचाने के लिए यह संगठन सोशल नेटवर्किग साइटों का सहारा ले रहे हैं. श्री गुप्ता ने बताया कि हमने अपना अभियान शुरू कर दिया है. फेसबुक, टवीटर इत्यादि पर पुरुषों से मतदान नहीं करने की अपील की जा रही है. जल्द ही हम लोग घर-घर जा कर इस अपील को दोहरायेंगे.

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