सिलीगुड़ी. दार्जीलिंग पर्वतीय क्षेत्र पर 17 दिनों से जारी गोरखालैंड आंदोलन के वजह से दिन प्रतिदिन खाद्य संकट गहरा रहा है. आलम यह है कि पहाड़वासियों की जिंदगी अब उबले आलू पर ही कट रही है. एकमात्र आलू ही पहाड़ के लोगों के लिए जीने का सहारा बना हुआ है. आंदोलन की आग में आलू ही पहाड़वासियों के पेट की आग बुझाने का सहारा है. पहाड़ के सभी हाट-बाजार, दुकानपाट 24 घंटे बंद रहने से लोगों के घरों में खाने-पीने के सामानों के लाले पड़ गये हैं. खाद्य संकट के वजह से सबसे बुरा हाल बच्चे, वृद्ध और मरीजों का हो रखा है. पहाड़ पर खाद्य संकट को दूर करने के लिए आंदोलनकारी नेता बीच-बीच में आंदोलन में 12 घंटे का विराम लगाकर सिलीगुड़ी से खाने-पीने के सामानों का पहाड़ पर मुहैया भी करवाने की कोशिश करते हैं. लेकिन जिस परिमान में समतल से पहाड़ पर खाद्य सामग्रियों की आवक होती है वह पर्याप्त नहीं है.
राजनीति विश्लेषकों की माने तो पहाड़ पर आंदोलन का दौर जल्द नहीं थमता है तो पहाड़ पर खाद्य संकट विकराल रुप धारण करेगा. इसकी एक वजह और यह है कि एक तरफ जहां अलग राज्य गोरखालैंड के लिए पहाड़ पर लगातार हिंसक आंदोलन हो रहा है वहीं, गोरखालैंड के विरोध में समतल क्षेत्र में भी आवाज बुलंद होने लगा है.गोरखालैंड विरोधी आंदोलनकारी अब समतल खासकर सिलीगुड़ी से पहाड़ पर जानेवाले खाद्य सामग्रियों पर भी जबरन रोक लगाने के मूड में हैं. पहाड़-समतल की राजनीति पर गहरी पकड़ रखनेवाले प्रमुख राजनीतिक विश्लेषक उदय दुबे अपने वर्षों के तजुर्बे के आधार पर कहते हैं कि पहाड़ समस्या नहीं निपटने पर इसका खामियाजा केंद्र और राज्य सरकार को ही भुगतना पड़ेगा. क्योंकि अगर पहाड़ पर खाद्य सामग्रियों को जाने से जबरन रोका गया तो यह मानवाधिकार का उल्लंघन होगा. इसके लिए जिम्मेवार एकमात्र केंद्र और राज्य सरकार ही होगी.
खाद्य संकट को लेकर दार्जीलिंग में रहनेवाली एक गृहणी आराधना देवी अग्रवाल ने फोन पर प्रभात खबर के साथ खास बातचीत में केवल अपना या अपने परिवार का ही नहीं बल्कि पूरे पहाड़ के लोगों की समस्या को साझा किया. उनका कहना है कि लगातार गोरखालैंड आंदोलन की वजह से किसी के घरों में भी अन्न का एक दाना तक नहीं बचा है. किसी के पास भी खाने-पीने का कोई सामान नहीं है. खाद्य सामग्रियां और दवाईयों की आपूर्ति न होने से खासकर बच्चों, वृद्धों और मरीजों को समस्याओं से जूझना पड़ रहा है. बच्चों के लिए दूध आदि की बड़ी समस्या हो गयी है. श्रीमती अग्रवाल का कहना है कि बीच-बीच में आंदोलनकारियों की ओर से खाद्य सामग्रियों की आपूर्ति की जाती है. लेकिन यह पहाड़ के समस्त लोगों की भूख मिटाने के लिए पर्याप्त नहीं है. उन्होंने बताया कि अब तो हमारी यानी पूरे पहाड़वासियों की जिंदगी केवल आलू पर ही टिकी है.