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इस बार भी मायूसी में मनेगी रामलला की दिवाली

।। राजेन्द्र कुमार।। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के 14 वर्ष वनवास काटकर अयोध्या लौटने की खुशी में पूरी दुनिया में भारतवंशी प्रकाश पर्व मनाते हैं, उन्हीं भगवान राम की जन्मभूमि (विवादित) पर इस बार भी दिवाली के दिन मायूसी का आलम रहेगा. भले ही अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर निर्माण करने का दावा […]

।। राजेन्द्र कुमार।।

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के 14 वर्ष वनवास काटकर अयोध्या लौटने की खुशी में पूरी दुनिया में भारतवंशी प्रकाश पर्व मनाते हैं, उन्हीं भगवान राम की जन्मभूमि (विवादित) पर इस बार भी दिवाली के दिन मायूसी का आलम रहेगा. भले ही अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर निर्माण करने का दावा करने वाली भाजपा केंद्र में सत्तारूढ़ हो गई है पर इस बार भी अयोध्या में रामलला का अस्थाई मंदिर दीपावली पर रोशनी से नहाया नहीं दिखेगा. सुरक्षा संबंधी प्रतिबंध और बजट का अभाव इसकी अहम वजह हैं.

हालाकि रामजन्मभूमि मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सतेन्द्र दास ने मंदिर परिसर के रिसीवर विशाल चौहान से गुरूवार को रामलला के अस्थाई मंदिर पर धूमधाम से दिवाली मनाने के लिए फंड की मांग की है. परन्तु न्यायालय और सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए विशाल चौहान ने मंदिर के पुजारी की मांग को पूरा करने में असमर्थता जता दी है. ऐसे में अब दिवाली के दिन भगवान राम के अयोध्या लौटने के जश्न के बीच जब घर-घर में तरह-तरह के लजीज व्यंजनों का दौर चल रहा होगा, उस वक्त रामलला को मात्र पूड़ी सब्जी, कुछ मिष्ठान तथा लैया, गट्टा का भोग लगेगा और दीपावली की शाम रामलला के अस्थाई आशियाने में देशी घी के महज 25 दीपक जला पर्व की रस्म अदायगी की जाएगी. कोई पटाखा या आतिशबाजी भी रामलला के परिसर में नहीं होगी.

सत्येन्द्र दास के अनुसार रामलला के अस्थाई मंदिर में दीपावली पर्व के आयोजन की परंपरा तो है पर इसके लिए बजट के नाम पर एक पैसा भी प्रशासन से नहीं मिलता. खुद के पैसे से वह पूजी की रस्म अदायगी करते हैं और दीपावली के दिन भगवान रामलला की मूर्ति के सामने देशी घी के मात्र 25 दीपक जलाकर संतोष कर लेते हैं. दीपावली की पूजा के दौरान रामलला को गुलाबी वस्त्र और दशकों पुराना चांदी का मुकुट पहनाया जाता है. सतेन्द्र दास बताते हैं कि सन् 1992 में विवादित ढांचा टूटने से पहले तक पूरी अयोध्या के लोग और देश भर से आए श्रद्धालु सरयू नदी, नागेश्वरनाथ के साथ-साथ रामलला की चौखट पर दीपक जलाते थे.
परन्तु अब सुरक्षा कारणों के चलते दीपावली पर रात को पुजारियों को कर किसी को भी मंदिर परिसर में जाने की इजाजत नहीं है. जबकि अधिग्रहीत परिसर के रिसीवर और शासन-प्रशासन को दीपवाली के दिन उस स्थान की वैश्विक महत्ता को समझते हुए पुरानी परंपरा को नए सिरे से आरंभ करने पर विचार करना चाहिए. ताकि दीपावली के पर्व पर रामलला परिसर भी रोशनी से जगमगाता दिखे और वहां मायूसी का आलम खत्म हो.

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