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आजम खान की होने लगी अनदेखी

-राजेन्द्र कुमार- अपने तीखे बोल और खास अंदाज से चर्चा में रहने वाले आजम खान की अब सरकार और पार्टी दोनों में अनदेखी होने लगी है. इसकी वजह खुद आजम खान ही हैं. उनकी तुकमिजाजी और शिया धर्म गुरू कल्वे जवाद के साथ उनका विवाद पार्टी और सरकार दोनों का ही अहित कर रहा है. […]

-राजेन्द्र कुमार-

अपने तीखे बोल और खास अंदाज से चर्चा में रहने वाले आजम खान की अब सरकार और पार्टी दोनों में अनदेखी होने लगी है. इसकी वजह खुद आजम खान ही हैं. उनकी तुकमिजाजी और शिया धर्म गुरू कल्वे जवाद के साथ उनका विवाद पार्टी और सरकार दोनों का ही अहित कर रहा है. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को शिया धर्म गुरू कल्वे जवाद के साथ आजम का उलझना रास नहीं आ रहा. फिर भी आजम खान शिया धर्म गुरू के खिलाफ लगातार विवादि‍त बयान दे रहे हैं. आजम खान के रवैये में बदलाव ना आता देख मुख्यमंत्री और सपा प्रमुख मुलायम सिंह अब उनकी अनदेखी करने लगे है और आजम खान को मिलने का समय नहीं दे रहे हैं.

बीते 29 वर्षो से सपा प्रमुख मुलायम सिंह के बेहद करीबी माने जाने वाले आजम खान के साथ पार्टी में ऐसा सलूक पांच साल बाद हो रहा है. वर्ष 2009 में जब आजम ने जयाप्रदा को लेकर अमर सिंह के खिलाफ मोर्चा खोला था, तब भी सपा प्रमुख ने उनसे दूरी बनायी थी. फिर भी आजम खान ने अपना रवैया नहीं बदला तो मुलायम सिंह को उन्हें पार्टी से बाहर करना पड़ा था. आजम खान अब फिर मुलायम सिंह और अखिलेश यादव के संकेतों की अनदेखी कर रहे हैं. मुलायम और अखिलेश चाहते हैं कि आजम खान शिया धर्म गुरू कल्वे जवाद से उलझना बंद करे. इसके अलावा अमर सिंह के मामले में सपा प्रमुख के प्रयासों पर बखेड़ा ना करे. गत 5 अगस्त को जनेश्वर मिश्र पार्क के लोकार्पण समारोह में अमर सिंह को बुलाए जाने पर नाराजगी जताते हुए आजम खान लखनऊ में रहते हुए समारोह में नहीं गए. सपा प्रमुख को आजम खान का यह व्यवहार अनुचित लगा. तो उन्होंने आजम की अनदेखी करते हुए उन्हें मिलने के लिए समय नहीं दिया. पिता के इस रूख को देख मुख्यमंत्री ने भी आजम खान से दूरी बना ली है. बीते दस दिनों में मुख्यमंत्री दो सरकारी बैठकों में ही आजम खान से मिले हैं.

सपा प्रमुख और मुख्यमंत्री द्वारा आजम खान से दूरी बनाने की चर्चा अब पार्टी में हर स्तर पर होने लगी है. कहा जा रहा है कि आजम और मुलायम सिंह के बीच मतभेद विधानसभा चुनाव के बाद ही तब उभरे थे जब सपा प्रमुख ने अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय लिया था. तब आजम ने त्योरियां चढ़ा लीं थी और मुलायम सिंह ने रिश्तों की जज्बाती दुहाई देकर उन्हें अखिलेश के नाम पर राजी तो कर लिया पर आजम को अखिलेश के अंडर में काम करने का फैसला अभी तक परेशान कर रहा है. और अपनी अहमियत जताते के लिए आजम खान आए दिन विवादित कारनामों को अंजाम देते रहते हैं. कभी वह दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम मौलाना बुखारी से उलझते हैं तो कभी किसी आईएएस अफसर को नकारा और मुस्लिम विरोधी बता कर उसका तबादला करने की जिद कर बैठते हैं. सरकार यदि उनकी बात ना माने तो कैबिनेट बैठकों में जाना बंद कर देते हैं और फिर मुलायम सिंह के मनाने पर ही मानते हैं.

पार्टी में चर्चा है कि बीते दो वर्षों से आजम खान की इस तरह की तमाम तुकमिजाजी से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अब आजिज आ चुके हैं. आजम खान की बेजा जिदद के चलते पार्टी को हो रहे नुकसान के बाबत मुख्यमंत्री ने पार्टी प्रमुख को विस्तार से बताया है. उन्हें यह जानकारी भी दी है कि आजम खान के बेतुके बयान और लड़ाइयों की वजह से पार्टी की छवि कैसे खराब हो रही है, किस तरह उसका नुकसान पार्टी को लोकसभा चुनावों में झेलना पड़ रहा है और अब मुस्लिम समाज में शिया धर्म गुरू के खिलाफ आजम के विवादित बयान पार्टी के वोटबैंक को कैसे नुकसान पहुंचा रहे हैं. सपा नेताओं के अनुसार मुख्यमंत्री चाहते हैं कि पार्टी मुखिया आजम खान को ज्यादा महत्व देना बंद करे और सरकार में जिस तरह से अन्य दस मुस्लिम मंत्रियों को महत्व मिलता है, उसी तर्ज पर आजम खान की भी सुनी जाए.

आजम खान को लेकर मुख्यमंत्री की ऐसी अपेक्षा पर पार्टी नेताओं का कहना है कि आजम खान बेलगाम तरीके से सरकार में काम करने की आजादी चाहते हैं, क्योंकि वह इतिहास पुरूष बनने की महत्वाकांक्षा पाले हुए हैं. इसलिए वह सरकार का हिस्सा बनने के बजाय मुसलमानों से जुड़े किसी सवाल पर शहीदाना अंदाज में सरकार से अलग होने की फिराक में लगे रहते हैं. जिससे आजम खान की छवि तो बनी है पर सरकार और पार्टी को इसका नुकसान झेलना पड़ता है. अब आजम को लेकर मुख्यमंत्री और सपा प्रमुख ऐसा नुकसान उठाने के मूड़ में नहीं है. इस लिए अब दोनों ने उनको किनारे कर दिया है. अब सबकी निगाहें इसी बात पर टिकी हैं कि आजम खां कौन सा रास्ता चुनते हैं.

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