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रांचीवासियों के श्रद्धा और आस्था के केंद्र पहाड़ी मंदिर का यह हुआ हाल, पढ़ें
पहाड़ी मंदिर का अस्तित्व खतरे में है. झंडा फहराने को लेकर पहाड़ी के दर्जनाें पेड़ काट दिये गये. कभी हरा-भरा दिखनेवाली रांची पहाड़ी आज वीरान लगने लगी है. मंदिर के आसपास मिट्टी का कटाव अब भी जारी है. कई जगह सीढ़ियों के दोनों ओर की दीवारों पर दरार पड़ने लगी है. पहाड़ी मंदिर की यह […]
पहाड़ी मंदिर का अस्तित्व खतरे में है. झंडा फहराने को लेकर पहाड़ी के दर्जनाें पेड़ काट दिये गये. कभी हरा-भरा दिखनेवाली रांची पहाड़ी आज वीरान लगने लगी है. मंदिर के आसपास मिट्टी का कटाव अब भी जारी है. कई जगह सीढ़ियों के दोनों ओर की दीवारों पर दरार पड़ने लगी है. पहाड़ी मंदिर की यह स्थिति सिर्फ इसलिए हुई, क्योंकि योजनाबद्ध तरीके से काम नहीं हुआ. हालत यह है कि मंदिर का जीर्णोद्धार करनेवाले भी अब इसकी सुध नहीं ले रहे हैं.
रांची : पहाड़ी मंदिर रांचीवासियों की श्रद्धा और आस्था के केंद्र है. साथ ही इसका एेतिहासिक महत्व भी रहा है. यहां देश का सबसे ऊंचा तिरंगा स्थापित करने और जीर्णोद्धार की योजना पर काम नवंबर 2014 में शुरू हुआ. मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए मुख्य मंदिर से सटा हॉल और कुछ ढांचे तोड़ दिये गये. बड़ी संख्या में पेड़ों को काटा गया और मुख्य मंदिर के आसपास मिट्टी की बेतरतीब कटाई भी की गयी. नया ढांचा खड़ा करने के लिए नींव की खोदी जा रही है, जिससे मंदिर के मुख्य ढांचे के गिरने का खतरा बना हुआ है. इस खतरे को कम करने के लिए मुख्य ढांचे के आसपास गिट्टी और बालू की बाेरियां रख दी गयी हैं.
पहाड़ी के जिस भाग में झंडे का पोल खड़ा किया गया है, उसके आसपास का क्षेत्र क्षतिग्रस्त है. मिट्टी का कटाव रोकने के लिए सीढ़ियों के पास की गयी बैरिकेडिंग को ऊंचा किया गया है, इससे श्रद्धालुओं को परेशानी होती है. विशेषज्ञों आैर शिव भक्ताें का कहना है कि अगर पहाड़ी मंदिर को बचाने की कोशिश तेज नहीं की गयीं, तो बरसात में पहाड़ी की स्थिति और बिगड़ जायेगी. भक्ताें चाहते हैं… प्रशासन जल्द मंदिर का जीर्णाेद्धार कराये. उल्लेखनीय है कि पहाड़ी मंदिर के जीर्णाेद्धार कार्य का शिलान्यास मुख्यमंत्री रघुवर दास ने किया था.
नहीं दिखते समिति के लोग
पहाड़ी मंदिर के जीर्णोद्धार का काम पहाड़ी मंदिर विकास समिति जिम्मे है. समिति में जिला प्रशासन के अधिकारियों समेत राजधानी के कई समाजसेवी भी शामिल हैं. जनवरी 2015 में जीर्णोद्धार का कार्य शुरू हुआ था. उस समय सैकड़ों कार्यकर्ता दिन-रात दिखायी देते थे. देश का सबसे ऊंचा तिरंगा फहराने में सब अपना-अपना श्रेय लेने में जुटे थे, लेकिन अब पहाड़ी मंदिर परिसर में समिति का कोई सदस्य नजर नहीं आता है.
पहाड़ी मंदिर पर स्थापित देश का सबसे ऊंचा तिरंगा 23 जनवरी 2016 को रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने फहराया था. हालांकि, अब पहाड़ी मंदिर पर तिरंगा भी नहीं दिखता है. समिति ने तय किया था कि तिरंगा 24 घंटे फहराता रहेगा. लेकिन, चार दिन बाद ही 27 जनवरी को तिरंगा फट गया. उसी दिन ढाई बजे डेरिक पर चढ़ कर मजदूरों ने तिरंगे को उतारा. अब तक चार बार तिरंगा फट चुका है. जब यह मामला उच्च न्यायालय पहुंचा, तो न्यायालय ने आदेश दिया कि अब तिरंगा किसी खास मौके पर ही फहराया जाये.
कम हो गये आयोजन
पहाड़ी मंदिर में मुख्य मंदिर के पास बड़ा सा हॉल था, जहां लोग विवाह व मुंडन संस्कार कराते थे. जीर्णोद्धार करने के दौरान यह तोड़ दिया गया. अब संस्कार कार्य पहाड़ी मंदिर के बीच में स्थित शिव स्थान पर किया जाता है. जगह कम होने व हॉल के अभाव में अब कम लोग शादी व मुंडन के लिए पहुंचते हैं. वहीं, पहाड़ी मंदिर का वार्षिकोत्सव हर साल उल्लास के साथ मनाया जाता था. मंदिर के पास हॉल में भजन-कीर्तन का आयोजन होता था, लेकिन इस साल महोत्सव सादगी के साथ मनाया गया.
रांची शहर के मध्य में स्थित पहाड़ी सदियों से छोटानागपुर के मौसम, मिट्टी व चट्टानों के बदलाव की साक्षी है. करोड़ों वर्ष पुराना यह पहाड़ अब अपनी वृद्धावस्था से गुजर रहा है. मैंने पांच साल पहले इस पहाड़ के अस्तित्व पर सवाल खड़ा किया था, जो लगता है सत्य साबित होने जा रहा है. भारी बारिश के कारण कुछ दिनों पहले पहाड़ी का बड़ा पत्थर मकानों पर आ गिरा था. पहाड़ी के नीचे रहनेवाले लोग मिट्टी को काट कर ले जाते हैं. कुछ भूवैज्ञानिकों का मानना है कि इस पहाड़ी की आयु 980 से 1200 मिलियन वर्ष है. इस पहाड़ी का भौगोलिक नाम गारनेटिफेरस सिलेमेनाइट शिष्ट है. इसे खोंडालाइट के नाम से पुकारा जाता है. इस तरह की चट्टानें ओड़िशा के पूर्वी घाट में पायी जाती हैं.
डॉ नीतीश प्रियदर्शी, पर्यावरणविद
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