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तबादले के बाद ठेकेदार को साथ लेकर नये जिले में जाते थे एसपी

रांची: सिक्यूरिटी रिलेटेड एक्सपेंडीचर (एसआरई) के तहत राज्य के नक्सल प्रभावित 21 जिले की पुलिस को केंद्र सरकार राशि उपलब्ध कराती है. इस राशि से जिलों के पुलिस अधीक्षक पुलिस व सुरक्षा बलों को संसाधन उपलब्ध कराते हैं. महालेखाकार ने एसीआरई फंड के इस्तेमाल में कई गड़बड़ियां पकड़ी हैं. वर्ष 2014 में पुलिस मुख्यालय को […]

रांची: सिक्यूरिटी रिलेटेड एक्सपेंडीचर (एसआरई) के तहत राज्य के नक्सल प्रभावित 21 जिले की पुलिस को केंद्र सरकार राशि उपलब्ध कराती है. इस राशि से जिलों के पुलिस अधीक्षक पुलिस व सुरक्षा बलों को संसाधन उपलब्ध कराते हैं. महालेखाकार ने एसीआरई फंड के इस्तेमाल में कई गड़बड़ियां पकड़ी हैं. वर्ष 2014 में पुलिस मुख्यालय को भी इसकी आशंका हुई थी.

तब पुलिस मुख्यालय ने पुलिस अधीक्षकों को इसे लेकर दिशा-निर्देश जारी किया था. झारखंड के कई जिलों में एसपी पद पर रहे पदाधिकारियों ने इसका फायदा उठाया है. सूत्रों के मुताबिक पुलिस अधीक्षक जिस जिले में जाते थे, अपना ठेकेदार लेते जाते थे. वही ठेकेदार उस जिला में एसआरई मद से होनेवाले सभी काम करते थे. बदले में ठेकेदार पुलिस अधीक्षकों को लाभ पहुंचाते थे.

एक अफसर को दो-तीन वाहन एसआरई की राशि के दुरुपयोग की बात पहले भी सामने आयी है. करीब डेढ़ साल पहले यह मामला सामने आया था कि रांची के एक पूर्व आइजी चाईबासा से एसआरई की इनोवा गाड़ी लेकर इस्तेमाल करते थे. करीब तीन साल पहले भी यह बात सामने आयी थी कि एसआरई के पैसे से पुलिस अधीक्षक बाजार से भाड़े पर गाड़ियां लेते थे. एक-एक अफसर को दो-तीन गाड़ियां तक दे दी गयी थीं. तब यह सवाल भी उठा था कि कुछ अफसरों ने गाड़ियां खरीद कर एसआरई के तहत पुलिस को उपलब्ध करा दिया. गाड़ी चली भी नहीं और बिल भी ले लिया. ढाई साल पहले इस तरह का मामला सामने आया था. तब पुलिस मुख्यालय ने कॉमर्शियल रजिस्ट्रेशन के वाहन ही लेने का आदेश जारी किया था.
फरजी नक्सल सरेंडर में भी हुआ इस्तेमाल
चार साल पहले झारखंड में हुए फरजी नक्सली सरेंडर मामले में भी एसआरई फंड का इस्तेमाल किया गया था. जिन 514 युवकों को पुराने जेल में रखा गया था, उनके लिए भोजन व अन्य सुविधाओं की व्यवस्था एसआरई मद से ही की गयी थी.

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