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तलाक के 76 प्रतिशत मामले मध्यम वर्ग से

रांची: आश्चर्यजनक रूप से तलाक के सबसे ज्यादा मामले मध्यमवर्ग के लोगों के हैं. झारखंड के विभिन्न फैमिली कोर्ट में दर्ज तलाक के मामलों में से 76 प्रतिशत मध्यम वर्ग के हैं. उच्च वर्ग के दंपतियों द्वारा दायर किये गये तलाक के मामलों का प्रतिशत 15 है, जबकि निम्न वर्ग से केवल आठ प्रतिशत ही […]

रांची: आश्चर्यजनक रूप से तलाक के सबसे ज्यादा मामले मध्यमवर्ग के लोगों के हैं. झारखंड के विभिन्न फैमिली कोर्ट में दर्ज तलाक के मामलों में से 76 प्रतिशत मध्यम वर्ग के हैं. उच्च वर्ग के दंपतियों द्वारा दायर किये गये तलाक के मामलों का प्रतिशत 15 है, जबकि निम्न वर्ग से केवल आठ प्रतिशत ही तलाक के मामले दर्ज कराये गये हैं. अधिवक्ता राकेश झा बताते हैं : तलाक के ज्यादातर मामलों में दंपतियों की अौसत उम्र 25 से 35 वर्ष के बीच होती है. जिला विधिक सेवा प्राधिकार (डालसा) के मध्यस्थ एलके गिरि बताते हैं : लव मैरेज में तलाक की संभावना ज्यादा होने की बात केवल भ्रम है. न्यायालय में तलाक के लिए आनेवाले मामलों में अरेंज अौर लव मैरेज के अनुपात में कोई अंतर नहीं है.
विलासिता बन रहा है तलाक का कारण
मनोचिकित्सक सह मैरेज काउंसेलर डॉ संजय कुमार कहते हैं. : एक-दूसरे को ठीक से नहीं समझना, समांजस्य नहीं बैठा पाना और अति महत्वाकांक्षी होना तलाक का बड़ा कारण बनता है. हालांकि इसके और भी कई चौंकाने वाले कारण बनते हैं. मिडिल क्लास परिवार में तलाक के सबसे अधिक मामले आते हैं. खुला जीवन, विलासिता, खूब पैसा कमाने का शौक आदि रिश्तों में कड़वाहट ला रहा है. पार्टनर से असंतुष्टि या किसी तीसरे के आने से भी दूरी बढ़ती है. लव मैरेज के बाद दो से तीन वर्ष में तलाक की नौबत आ जाती है. एक-दूसरे को नहीं समझ पाने के कारण ऐसा होता है. वैसे, तलाक के कई मामले तो ऐसे भी आ रहे हैं, जिनमें अभिभावक विवाद सुलझाने के बजाय उसे हवा देकर बढ़ा देते हैं. इसके अलावा दहेज प्रताड़ना से संबंधित ज्यादातर मामलों में भी सुलह नहीं हो पाती है अौर मामला तलाक तक पहुंच जाता है.
अभिभावकों की भूमिका में बदलाव से टूटते रिश्ते
विशेषज्ञ बताते हैं : शहरों में अभिभावकों की भूमिका में बड़ा बदलाव आया है. गांव-देहात में अभिभावक परिवार के मार्गदर्शक की भूमिका में होते हैं. वह पति-पत्नी के बीच विवाद सुलझाने में मदद करते हैं. मामले बढ़ने पर परिवार, समुदाय या क्षेत्र के सम्मानित लोग पंचायती करते हैं. पहले शहरों में भी यही होता था. अब शहरों में परिवार छोटे हो गये हैं. खुली जीवनशैली में माता-पिता और बड़े-बुजुर्गों की सलाह की कीमत कम हो गयी है. अभिभावकों के लिए अदृश्य दायरा बन गया है. यह पूरे परिवार को प्रभावित करता है. परिवार में अभिभावकों का महत्व कम होने की वजह से दपंती के बीच होनेवाले झंझट का निपटारा कोर्ट के माध्यम से कराना पड़ रहा है.
केस : एक
जीजा के पास पत्नी के रहने का आरोप
आमटाल निवासी जगरनाथ महतो अपनी पत्नी से तालक के लिए आवेदन दिया. न्यायालय ने टी(एम)एस 336/14 केस दर्ज किया. पति का कहना है कि लक्खी देवी वर्ष 2010 से अपने मायके में रह रही है. इसके दो बच्चे हैं. लक्खी के जीजा भी मायके के बगल के गांव में रहते हैं. इस बात को लेकर अनबन हुई थी. पति पर प्रताड़ना का आरोप लगा. सास, ससुर व पति को कुछ दिन जेल में रहना पड़ा. जेल से निकलने के बाद पति ने तलाक के लिए अर्जी दी है. मामला कोर्ट में चल रहा है.
केस : दाे
डॉक्टर साहब पर नर्स के साथ चक्कर का आरोप
झाडुहीह निवासी रीता मेहता ने अपने डॉक्टर पति वेदानंद प्रसाद से छुटकारा के लिए तलाक के लिए न्यायालय में अर्जी दी. वर्ष 2014 में मामला दर्ज हुआ. रीता का कहना है कि पति के साथ एक नर्स का संबंध है. इस कारण उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है. न्यायालय ने तलाक के लिए सहमति दे दी.
केस : तीन
शादी के दो वर्ष के बाद तलाक का आवेदन
बैंक मोड़ की रिया कुमारी ने ईश्वर चंद्रा से वर्ष 2013 में लव मैरेज किया था. दोनों के एक बच्चे हुए. बाद में दोनों में तालमेल ठीक से नहीं बैठा. इसके बाद न्यायालय में तलाक के लिए अर्जी दी गयी है. कोर्ट टी (एम) एस 745/15 मामला चल रहा है.
तलाक के प्रमुख कारण
पति या पति का अहम
विश्वास की कमी
आधुनिक जीवनशैली
एक-दूसरे पर शक
वाणी पर नियंत्रण नहीं
अवैध संबंध
घरेलू हिंसा
संपत्ति विवाद
बातचीत की कमी

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