सीबीआइ ने जेपीएससी द्वारा राज्य प्रशासनिक सेवा में हुई नियुक्ति में गड़बड़ी के आरोप में प्राथमिकी (आरसी 10/2012) दर्ज की थी. मामले की जांच में सुनियोजित तरीके से अयोग्य उम्मीदवारों को योग्य करार दिया गया. इसके लिए खास प्रत्याशियों को लिखित परीक्षा में अधिक अंक दिये गये. साथ ही साक्षात्कार में इतने अंक प्रदान किये गये ताकि मनपसंद उम्मीदवारों की नियुक्ति की अनुशंसा की जा सके.
मामले की जांच के बाद सीबीआइ ने राज्य सरकार से करीब ढाई साल पहले अभियोजन स्वीकृति मांगी थी. सीबीआइ की मांग के आलोक में इस मामले को विधि विभाग के हवाले कर दिया गया था. विधि विभाग ने सीबीआइ द्वारा आरोपों से संबंधित भेजे गये दस्तावेज की जांच के बाद सरकार को यह राय दी थी कि नागेश के खिलाफ सरकार अभियोजन की स्वीकृति दे सकती है. विधि विभाग की इस स्पष्ट राय के बावजूद राजनीतिक कारणों से इस मामले में केंद्र से पत्राचार शुरू हुआ.
वह अपने हर पत्र में इस बात का उल्लेख करते रहे कि इससे पहले उन्होंने सरकार को कितनी बार पत्र लिखा. सीबीआइ एसपी के 22 वें पत्र के बाद सरकार ने अभियोजन स्वीकृति देने के लिए सही दिशा में काम शुरू किया . कार्मिक सचिव निधि खरे ने केंद्रीय कार्मिक विभाग के सक्षम पदाधिकारी को पत्र भेजा. केंद्रीय कार्मिक विभाग ने इस मामले में अपनी राय देते हुए कहा कि नागेश मूलत: न्यायिक सेवा के अधिकारी थे. आयोग के सदस्य के रूप में उनका कार्यकाल समाप्त हो चुका है. इसलिए इस मामले में अभियोजन स्वीकृति के लिए राष्ट्रपति की सहमति जरूरी नहीं है. केंद्र की इस राय के बाद कार्मिक विभाग ने अभियोजन स्वीकृति के मामले में मुख्यमंत्री रघुवर दास की सहमति मांगी . मुख्यमंत्री ने पूरे मामले पर विचार के बाद अभियोजन स्वीकृति के प्रस्ताव पर अपनी सहमति दे दी है.