बीटेक किया, नौकरी छोड़ी, अब बनाते हैं साइंस प्रोजेक्टबच्चों के प्रोजेक्ट काे सुलझाते मेरठ के विजय चौहानउम्र : 35, शिक्षा : पॉलिटेक्निक, बीटेक राहुल गुरु @ रांची जिन दिनों स्कूल में पढ़ते थे तभी बैटरी जोड़ कर पंखा चलाना, रोबोट से छोटे-मोटे काम करना, सामान्य रंगीन बल्बों काे सीरीज करना आदि के काम में खूब मन लगता था. हर दिन साइंस से जुड़े नये काम करते थे. इसी प्रेम के कारण डाक विभाग की नौकरी रास नहीं आयी. आज जब विद्यार्थी साइंस के प्रोजेक्ट में उलझते हैं, तो उनकी उलझन को विजय सिंह चौहान सुलझाते हैं. मेरठ के रहनेवाले विजय ने जीटीआइ लखनऊ से जूनियर इंजीनियरिंग की पढ़ाई की़ इससे संतुष्ट नहीं मिली, तो मोतीलाल नेहरू एनआइटी लखनऊ से बीटेक की डिग्री़ तभी डाक विभाग में नौकरी लग गयी, लेकिन वहां भी मन नहीं बसा़ …………………………….इस काम में मिलती है खुशी विजय कहते हैं कि बचपन से ही साइंस से जुड़ी चीजों से काफी लगाव था. एक दिन लगा कुछ ऐसा करूं, जिससे खुशी मिले. इसी खुशी की तलाश में आज यह काम कर रहे हैं. डेली मार्केट की चायवाली गली में स्थित 10/10 की साइज की दुकान में बैठ कर साइंस प्रोजेक्ट बनाते हैं. ……………………10 वर्षों से रांची में हैं पिता शंकर सिंह चौहान डाक विभाग में थे. उनकी नौकरी भी बतौर क्लर्क डाक विभाग में लग गयी़ कुछ दिनों तक काम किया, लेकिन मन नहीं लगा़ विजय रांची में 10 वर्षों से काम कर रहे हैं. वह कहते हैं : रांची घूमते हुए पहुंचे थे. जगह पसंद आयी, तो यहीं रह गया़ फिर डेली मार्केट की एक इलेक्ट्राॅनिक्स दुकान में काम करने लगे. साइंस प्रोजेक्ट बनाने का आइडिया कैसे आया? इस सवाल के जवाब में विजय कहते हैं : जिस दुकान में मैं काम करता था, वहां स्टूडेंट्स साइंस से जुड़े विभिन्न तरह के प्रोजेक्ट ले कर आते थे़ एक बार बीआइटी के बच्चे पहुंचे़ उन्होंने प्रोजेक्ट तो पूरा कर लिया था, लेकिन कुछ परेशानी हो रही थी़ मैंने मदद कर दी़ इसी दिन के बाद से लगा कि क्यों नहीं इसी काम को किया जाये़ ………………………………..प्रोजेक्ट बनाते ही नहीं, पढ़ाते भी हैंलगभग एक घंटे की बातचीत के दौरान विजय ने पांच से अधिक प्रोजेक्ट को पूरा कर लिया. इस दौरान उन्होंने न केवल प्रोजेक्ट का मॉडल बनाया, बल्कि बच्चे को उसकी पूरी जानकारी भी दी. वह बताते हैं कि कई बार बच्चों के दिमाग में प्रोजेक्ट का मॉडल तो होता है, लेकिन उसे मूर्त रूप नहीं दे पाते हैं. कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं, जो साथ काम करते हैं. जब तक मॉडल के बारे में बच्चों को नहीं समझायेंगे, उनके लिए प्रोजेक्ट बेकार होगा़……………………………………….शिक्षक भी लेते हैं मददविजय के पास शिक्षक और प्रोफेसर भी अपनी समस्या लेकर आते हैं. वह कहते हैं कि बीआइटी मेसरा के एक प्रोजेक्ट ने काफी परेशान किया़ इस मॉडल को प्रोफेसर शीला राॅय लेकर आयीं थी़ वह ऑटोमेटिक रेलवे गेट, लंदन ब्रिज, विंड व्हीकल एनर्जी आदि जैसे प्रोजेक्ट के मॉडल भी बना चुके हैं. …………………………..प्लेटफॉर्म मिला, तो दूंगा ट्रेनिंगकभी ऐसा नहीं लगता कि बच्चों को ट्रेंड किया जाये? इसपर विजय कहते हैं कि यदि मौका मिले, तो बच्चाें काे ट्रेनिंग दूंगा. वह बताते हैं कि बच्चों की सोच में काफी बदलाव आये है़ अब वह ज्यादा क्रिएटिव हो गये हैं. उनके पास सिर्फ मॉडल नहीं होते बल्कि लॉजिक भी होती है़ छोटे बच्चे ज्यादा क्रिएटिव हैं. उनके पास सवाल भी ज्यादा होते हैं.
बीटेक किया, नौकरी छोड़ी, अब बनाते हैं साइंस प्रोजेक्ट
बीटेक किया, नौकरी छोड़ी, अब बनाते हैं साइंस प्रोजेक्टबच्चों के प्रोजेक्ट काे सुलझाते मेरठ के विजय चौहानउम्र : 35, शिक्षा : पॉलिटेक्निक, बीटेक राहुल गुरु @ रांची जिन दिनों स्कूल में पढ़ते थे तभी बैटरी जोड़ कर पंखा चलाना, रोबोट से छोटे-मोटे काम करना, सामान्य रंगीन बल्बों काे सीरीज करना आदि के काम में खूब […]
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