रांची: रांची में रावण दहन की शुरुआत वर्ष 1948 में हुई. पाकिस्तान के कबायली इलाके बन्नू शहर से रिफ्यूजी बन कर रांची आये 10-12 परिवारों ने इसकी शुरुआत की. रांची सहित पंजाब के तमाम शहरों में रावण का मुखौटा गधे का होता था, पर 1953 के बाद मुखौटा मानव मुख का बनने लगा. वर्ष 1949 तक रावण के पुतले का निर्माण मेन रोड स्थित डिग्री कॉलेज के बरामदे में हुआ.
अगले वर्ष भीड़ 1500 से 2000 के बीच हुई, तो पुतले की लंबाई भी 12 फीट से बढ़ा कर 20 फीट कर दी गयी. इधर, खर्च भी बढ़ गया और बन्नू समाज के कुछ आयोजकों का स्वर्गवास भी हो गया.
तब पंजाबी हिंदू बिरादरी को कमान सौंप दी गयी. बिरादरी के लाला देसराज, लाला कश्मीरी लाल, लाला धीमान जी, लाला राधाकृष्ण विरमानी, भगवान दास आनंद, राम स्वरूप शर्मा, मेहता मदन लाल ने जब आयोजन की कमान संभाली, तो रावण का निर्माण डोरंडा स्थित राम मंदिर में कराने लगे. रावण दहन राजभवन के सामनेवाले मैदान (अभी नक्षत्र वन) में दो वर्षो तक किया. 1960 से लेकर आज तक रावण दहन मोरहाबादी मैदान में हो रहा है.