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ऐसे सोच से तो झारखंड बरबाद हो जायेगा
रांची : झारखंड हाइकोर्ट ने सोमवार को पलामू प्रमंडल में सिंचाई व पेयजल की समस्या को लेकर दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कड़ी नाराजगी जतायी. जस्टिस डीएन पटेल व जस्टिस रत्नाकर भेंगरा की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि झारखंड गठन के 15 साल में पलामू में छह बार सूखा […]
रांची : झारखंड हाइकोर्ट ने सोमवार को पलामू प्रमंडल में सिंचाई व पेयजल की समस्या को लेकर दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कड़ी नाराजगी जतायी.
जस्टिस डीएन पटेल व जस्टिस रत्नाकर भेंगरा की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि झारखंड गठन के 15 साल में पलामू में छह बार सूखा पड़ा. क्षेत्र में इस बार बारिश हो रही है. बारिश का पानी रोकने अथवा जल संरक्षण की कोई ठोस योजना नहीं नजर आ रही है.
पानी बह कर बाहर चला जायेगा. विजन की कमी व लेथाजिर्क एप्रोच की वजह से समाधान नहीं हो पा रहा है. ऐसी सोच से तो झारखंड बरबाद हो जायेगा. खंडपीठ ने राज्य सरकार को शपथ पत्र दाखिल करने का निर्देश दिया. पूछा कि पिछले 40 साल से कनहर परियोजना पर काम चल रहा है. करोड़ों रुपये खर्च हो गये, लेकिन अब तक निर्माण शुरू नहीं किया गया.
आखिर कनहर नदी पर प्रस्तावित बराज परियोजना का निर्माण कब पूरा होगा. बराज निर्माण का कट ऑफ डेट तय करते हुए कोर्ट को अवगत कराया जाये. साथ ही यह बताया जाये कि वर्षा जल का सदुपयोग करने के लिए क्या उपाय किये गये हैं. कौन-कौन सी योजना ली गयी है. खंडपीठ ने कनहर मामले में गठित उच्चस्तरीय समिति के कामकाज के तरीके पर असंतोष प्रकट किया.
कहा कि लेथाजिर्क एप्रोच की वजह से समिति की गति काफी धीमी हो गयी है. सिर्फ बैठकें हो रही है. खंडपीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए आठ सितंबर की तिथि निर्धारित की.
इससे पूर्व प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता महेश तिवारी ने खंडपीठ को बताया कि राज्य सरकार के पास विजन नहीं है. पलामू प्रमंडल को छह बार सूखाग्रस्त घोषित किया गया. सूखाग्रस्त घोषित कर राज्य सरकार चुप हो जाती है. केंद्र को भी राज्य सरकार द्वारा लिखा जाता है, लेकिन झारखंड को वहां से भी मदद नहीं मिलती है. गांवों में पीने के पानी का गंभीर संकट है.
आम लोगों के साथ-साथ उस क्षेत्र में पशु-पक्षी भी पानी के लिए त्रहिमाम करते हैं. गौरतलब है कि प्रार्थी पूर्व स्वास्थ्य मंत्री हेमेंद्र प्रताप देहाती ने पलामू प्रमंडल में सिंचाई व पेयजल की सुविधा को लेकर अलग-अलग जनहित याचिका दायर की है. दोनों याचिकाओं पर सुनवाई साथ-साथ हो रही है.
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