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सभी की भावनाओं का ख्याल रखेगी सरकार : मुख्यमंत्री

स्थानीय नीति को लेकर बुद्धिजीवियों के संग बैठे मुख्यमंत्री, बोले मुख्यमंत्री ने लिखित सुझाव भी एक सप्ताह में देने को कहा रांची : मुख्यमंत्री रघुवर दास ने मंगलवार को प्रोजेक्ट भवन में राज्य के बुद्धिजीवियों के साथ स्थानीय नीति तय करने को लेकर बैठक की. बैठक में बुद्धिजीवियों से सुझाव मांगे गये. एक सप्ताह में […]

स्थानीय नीति को लेकर बुद्धिजीवियों के संग बैठे मुख्यमंत्री, बोले
मुख्यमंत्री ने लिखित सुझाव भी एक सप्ताह में देने को कहा
रांची : मुख्यमंत्री रघुवर दास ने मंगलवार को प्रोजेक्ट भवन में राज्य के बुद्धिजीवियों के साथ स्थानीय नीति तय करने को लेकर बैठक की. बैठक में बुद्धिजीवियों से सुझाव मांगे गये. एक सप्ताह में लिखित सुझाव देने को कहा गया. सारे बुद्धिजीवियों के सुझाव सुनने के बाद मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार सबकी भावनाओं का ख्याल करेगी. हम सबको खुश नहीं कर सकते, पर हर पक्ष को देखेंगे. मौके पर वरिष्ठ पत्रकारों के साथ ही वरीय अधिवक्ता, विभिन्न संगठनों से जुड़े लोग, शिक्षाविदों ने भी हिस्सा लिया.
मुख्यमंत्री के साथ मुख्य सचिव राजीव गौबा, कार्मिक के प्रधान सचिव एसके सत्पथी, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव संजय कुमार भी
उपस्थित थे.
छत्तीसगढ़ का फॉमरूला अपना सकते हैं : बलबीर दत्त
वरिष्ठ पत्रकार बलबीर दत्त ने कहा कि इसमें दो राय नहीं है कि स्थानीय लोगों को प्राथमिकता मिले. छत्तीसगढ़ वाले फॉमरूला को अपनाया जा सकता है. छत्तीसगढ़ बिल्कुल झारखंड से मिलता-जुलता भी है. पर जो भी फैसला हो, जल्द हो. इसमें संतुलित निर्णय हो. फैसला जो भी होगा, उसका विरोध होगा, राजनीतिक कारणों से ही. इस पर विचार करना होगा.
छत्तीसगढ़ का फॉमरूला अच्छा है : रघुवंशी
वरिष्ठ पत्रकार कमलेश रघुवंशी ने कहा कि इसे नियोजन से जोड़ेंगे, तो कन्फ्यूजन होगा. स्थानीय नीति के संबंध में छत्तीसगढ़ का भी फॉमरूला अच्छा है. जिस तारीख को अलग झारखंड बना है, वह भी कट ऑफ डेट हो सकता है.
राज्य निर्माण की तिथि हो आधार : एमपी सिन्हा
विनोबा भावे विश्वविद्यालय के डॉ एमपी सिन्हा ने कहा कि कट ऑफ डेट राज्य निर्माण की तिथि को ही माना जाये. जब निर्माण ही नहीं हुआ, तो पीछे जाकर कैसे डेट तय करेंगे. छत्तीसगढ़ पॉजिटिव है. लोगों को इससे होने वाले हित के बारे में बतायें.
हम कहां हैं आज, यह देखें : रतन तिर्की
रतन तिर्की ने कहा कि राज्य ऐसे ही नहीं मिला है. इसके पीछे लंबा संघर्ष हुआ है. यहां इस पर ध्यान देने की जरूरत है कि पांचवी अनुसूची का उल्लंघन न हो. यहां कोई भी लाभ लेने के लिए स्थानीयता नहीं ले सकता है. जमीन देकर भी आज हम कहां खड़े हैं? यह देखने की जरूरत है. इसमें ईमानदारी बरतें.
दूसरे राज्यों से तुलना न करें : बंधु तिर्की
पूर्व विधायक बंधु तिर्की ने कहा कि झारखंड की तुलना दूसरे राज्यों से न करें. यहां सीएनटी/एसपीटी बहुत कुछ है. यहां जिला रोस्टर क्लीयर हो. स्थानीय नीति का कट ऑफ डेट क्या हो, यह तय करें. स्थानीय नीति या नियोजन नीति क्या हो, यह क्लीयर करें. यहां आदिवासियों को छोड़ कर शेष को कितना क्या देना है, यह तय करें. स्थानीय नीति के बारे में टाल मटोल जवाब न दें.
सदानों का ख्याल
रखें : राजेंद्र प्रसाद
संयुक्त सदान संघर्ष मोरचा के राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि सदानों का ख्याल रखना चाहिए. अलग राज्य के आंदोलन में मूलवासियों की भी बड़ी भागीदारी है. ट्राइबल को 26 फीसदी आरक्षण मिल रहा है, पर हमें क्या मिल रहा है. हम यहां की भाषा/संस्कृति को जानते हैं. यहां के तृतीय व चतुर्थ वर्गीय नौकरी शत प्रतिशत आदिवासियों व मूलवासियों को मिले.
स्थानीयता को परिभाषित न करें : विनोद किस्पोट्टा
पूर्व आइएएस विनोद किस्पोट्टा ने कहा कि झारखंडी कौन है, यह तय करने में बड़ी परेशानी होगी. यह संवेदनशील मुद्दा है. स्थानीयता को परिभाषित न करें, बल्कि तृतीय व चतुर्थ वर्गीय नौकरी में स्थानीय भाषा आदि को अनिवार्य कर दें. झारखंडी कौन है, यह तय करने से हम बच सकते हैं.
ग्राउंड पोजीशन देख कर लें निर्णय : तुबिद
पूर्व आइएएस अफसर जेबी तुबिद ने कहा कि ग्राउंड पोजीशन देख कर निर्णय लें. झारखंडी कौन है, इसमें कोई विवाद नहीं है. भाषा, संस्कृति आदि से इसकी पहचान होती है. पर पहचान स्पष्ट हो. इस पर सरकार को निर्णय लेना है. नियोजन नीति पर ध्यान देना होगा. हमें कट ऑफ डेट में पड़ने की जरूरत नहीं है. तीन तरह के लोग यहां है. एक ट्राइबल, दूसरा सदान व तीसरे तरह के लोग औद्योगिकीकरण के बाद अन्य राज्यों से यहां आये.
15 वर्ष पहले से रहनेवाले हों स्थानीय: डॉ सिंह
कोल्हान विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ आरपीपी सिंह ने कहा कि स्थानीयता व नियोजन को अलग-अलग रखा जाये. अब सवाल है कि स्थायी किसे मानें. जिस दिन झारखंड बना, उस समय से 15 वर्ष पहले से जो लोग यहां रह रहा हो, उसे स्थायी माना जाये.
फिर से झारखंड में सर्वे करा लें : एएन ओझा
नीलांबर-पीतांबर विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ एएन ओझा ने कहा कि यह तय करें कि जब हम आयें, तब से झारखंड है. 1932 में अंगरेजों का सर्वे था. तब का सर्वे कैसा था? क्या था? उसे सोचें. डेट लाइन को छोड़ें. झारखंड का फिर से सर्वे करा लें. यहां आदिवासी भी माइग्रेट करके आये हैं.
सदियों से रहनेवालों का हक न मरे: दिनेश मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार दिनेश मिश्र ने कहा कि यह तय करना होगा कि सदियों से यहां रहनेवालों का हक कोई न छीने. उन्हें बेदखल न करे. पर स्थानीयता किसे दी जा सकती है, यह तय करना होगा. यह भी तय करना होगा कि जो बच्चे 10-15 वर्षो से यहां पढ़ रहे हैं, उन्हें भी लाभ मिले.
तृतीय/चतुर्थ वर्गीय नौकरी मिले : बैजनाथ मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार बैजनाथ मिश्र ने कहा कि तृतीय व चतुर्थ वर्गीय नौकरी यहां के लोगों को मिले. छत्तीसगढ़ का फॉमरूला ठीक-ठाक लग रहा है.
आंकड़ों पर ध्यान
दें : डॉ प्रकाश उरांव
डॉ प्रकाश उरांव ने कहा कि 15 साल बीत गये, पर किसे कट ऑफ डेट मानें, तय नहीं हुआ. सदियों से यहां रहने वालों को ही खतियान आदि के आधार पर स्थानीयता दी जाये. जनगणना के आंकड़ों पर खास ख्याल रखा जाये. आज जो भी आवास बोर्ड की कॉलोनियां हैं, उसमें यहां के आदिवासियों को कितना आवास मिला है?

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