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स्थानीय नीति : सभी का हित ध्यान में रख बने नीति

स्थानीय नीति : प्रभात खबर सभागार में हुई परिचर्चा, वक्ताओं ने कहा झारखंड की स्थानीय नीति कैसी हो इस पर बहस चल रही है. अलग अलग लोगों की इस पर अलग अलग राय है. कोई स्थानीय नीति के लिए खतियान की बात कर रहा है, तो कोई भाषा संस्कृति की. कोई यह मानता है कि […]

स्थानीय नीति : प्रभात खबर सभागार में हुई परिचर्चा, वक्ताओं ने कहा
झारखंड की स्थानीय नीति कैसी हो इस पर बहस चल रही है. अलग अलग लोगों की इस पर अलग अलग राय है. कोई स्थानीय नीति के लिए खतियान की बात कर रहा है, तो कोई भाषा संस्कृति की.
कोई यह मानता है कि राज्य गठन के वर्ष की तिथि इसके लिए तय हो. प्रभात खबर सभागार में अलग-अलग वर्ग के लोगों को इस मुद्दे पर परिचर्चा के लिए आमंत्रित किया गया था. आमंत्रित लोगों में राजनीतिज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता, अधिवक्ता, चेंबर के प्रतिनिधि, चिकित्सक, शिक्षक सहित अन्य लोग उपस्थित थे. पेश है उनकी राय:
भाषा संस्कृति व परंपरा हो आधार
आदिवासी सेंगेल अभियान के संयोजक सालखन मुरमू ने कहा कि स्थानीय नीति झारखंडी जन को स्थापित करने वाली हो न कि उन्हें उजाड़ने वाली. स्थानीयता का आधार भाषा, संस्कृति, परंपरा से हो न कि खतियान से. खतियान आधार न हो क्योंकि डॉक्यूमेंट्स तो गैरझारखंडी भी बनवा सकते हैं. स्थानीयता का मुद्दा नौकरी से भी जुड़ा है. यहां झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को स्थानीय मानना चाहिए और प्रखंडवार कोटा बना कर 90 प्रतिशत रिक्तियों को भरना चाहिए. वर्ष 2000 को आधार मानकर स्थानीयता तय करनी चाहिए.
एक व्यक्ति का दो राज्यों में डोमेसाइल नहीं हो सकता
आदिवासी बुद्धिजीवी मंच के प्रेमचंद मुरमू ने कहा कि एक व्यक्ति का एक से अधिक राज्यों में डोमेसाइल नहीं हो सकता. यह संविधान के विरुद्ध भी है. आरक्षण के मामले में भी देखें तो जिसे बिहार में आरक्षण मिला है, उसे बाकी राज्य में आरक्षण नहीं मिल सकता. असम, बिहार बंगाल, ओड़िशा सभी जगह यह व्यवस्था है. झारखंड में स्थानीयता का मुद्दा यहां की 90 प्रतिशत झारखंडी जनता व 10 प्रतिशत बाहर से आये लोगों के बीच हितों का संघर्ष है. दस प्रतिशत लोग हावी हों, यह स्वीकार नहीं किया जा सकता. इन ऐतिहासिक तथ्यों को भी देखना होगा कि झारखंड बनने के पीछे क्या वजह थी.
सभी पक्षों पर ध्यान रहे
आइएमए के जिला अध्यक्ष डॉ जेके मित्र ने कहा कि स्थानीय नीति बने पर इसमें सभी पक्षों का ध्यान रखा जाना चाहिए. झारखंड अलग राज्य बना तो हमलोग भी चाहते थे कि इसका विकास हो. यहां किसी के साथ भेदभाव नहीं हो. सबको लाभ मिले. मैं 1962 से ही झारखंड में हूं. हमने हमेशा झारखंड को अपना समझा.
यहां चिकित्सा के क्षेत्र में योगदान दे रहा हूं. हम कभी मरीज से यह नहीं पूछते कि तुम स्थानीय हो या बाहरी. हमें यदि इलाज करना है, इन पचड़ों में नहीं पड़ते कि कौन बाहरी है और कौन भीतरी.
झारखंडी हितों को ध्यान में रख कर बने नीति
सामाजिक कार्यकर्ता रतन तिर्की ने कहा कि क्या ओड़िशा के आदिवासी को झारखंडी माना जा सकता है? क्या झारखंड के आदिवासी को ओड़िशा में आदिवासी का दर्ज मिल सकता है? मेरे लिए स्थानीय नीति का मतलब विलकिंसन रूल है. अगर इनका पालन कड़ाई के साथ हो व इन्हीं के अनुरूप स्थानीय नीति बने. झारखंड में झारखंडी हितों को ध्यान में रख कर ही स्थानीय नीति बने.
सभी पक्षों से राय लेकर बने नीति
महिला सामाख्या की प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर स्मिता गुप्ता ने कहा कि यह सही बात है कि स्थानीय नीति में सभी का ध्यान रखा जाये. पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि झारखंड के आदिवासी मूलवासी हाशिये पर हैं. झारखंड आंदोलन की वजह भी यही थी. वर्ष 2000 के बाद से झारखंड में बाहरी लोगों की संख्या बेतहाशा बढ़ी. पर यहां के लोग पिछड़ते चले गये. स्थानीय नीति पर हर वर्ग से राय ली जानी चाहिए.
राजनीति करनेवालों की वजह से हल नहीं निकला
सामाजिक कार्यकर्ता हुसैन कच्छी ने कहा कि झारखंड के लोग स्थानीय नीति बनाना चाहते हैं तो उन्हें बहस छोड़ कर सौदा करना चाहिए. मैं कच्छ से आया हूं और यहां की धरती ने मुङो पनाह दी है. यहां की धरती ने कई लोगों को पनाह दी. पर बाहर से आकर झारखंड को लूटने का धंधा बंद होना चाहिए. राजनीति करने वाले लोगों की वजह से यहां स्थानीय नीति का हल नहीं निकल सका है. शुरू से ही यहां के लोगों की अनदेखी की गयी है. स्थानीयता की बात नौकरी के मुद्दे से कहीं ज्यादा है. यह झारखंड की डेमोग्राफी की बात है.
मूलवासियों के अधिकार छीने जा रहे
अधिवक्ता मुमताज खान ने कहा कि झारखंड में झारखंड के विकास की बात की जाती है, पर झारखंडियों के विकास की बात कभी नहीं की जाती. झारखंड के बाहर से लोग यहां आकर समृद्ध हो रहे हैं, जबकि झारखंडियों का शोषण हो रहा है. झारखंड में आदिवासियों की पहचान है और इन्हें आरक्षण भी प्राप्त है. पर मूलवासियों की पहचान नहीं है. स्थानीय नीति नहीं बनने से सबसे ज्यादा इन्हीं के हक छीने जा रहे हैं. मूलवासियों में पंडित, मुसलिम व अन्य लोग भी हैं पर उनकी संस्कृति व बोली में काफी समानता है. इन बातों को ध्यान में रख कर नीति बने.
संविधान का अध्ययन कर बने स्थानीय नीति
अधिवक्ता विश्वजीत शाहदेव ने कहा कि झारखंड के साथ छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों का गठन हुआ, जहां हर राज्य के लोग रहते हैं. सभी को लाभ मिले इसका ख्याल रखना चाहिए. संविधान का अध्ययन करने के बाद स्थानीय नीति बनायी जानी चाहिए.
नये राज्यों की स्थानीय नीति का अध्ययन हो
अधिवक्ता डीजे सांगा ने कहा कि झारखंड का स्थानीय नीति बनाने से पहले अन्य राज्यों एवं नये राज्यों की स्थायी नीति का अध्ययन होना चाहिए. ऐसा नहीं कि सभी राज्यों को ऐसे ही सब कुछ मिल गया, सभी ने संघर्ष किया है. संविधानिक रूप से स्थानीय नीति को तय किया जाना चाहिए. जो पहले से रह रहा है, जिसमें राज्य की भाषा, संस्कृति एवं संविधान की समझ है, उसे स्थानीय नीति का लाभ मिलना चाहिए.
सार्थक प्रयास की जरूरत
चेंबर सदस्य राम बांगड़ ने कहा कि स्थानीय नीति की बात हो रही है, तो पहले तो यह तय हो कि स्थानीय कौन है. आदिवासी मूलवासी के नाम पर सिर्फ चर्चा होती रहती है, लेकिन इसका रिजल्ट नहीं निकलता. अगर सही मायने में स्थानीय नीति का लाभ सबको देना है तो सार्थक प्रयास की आवश्यकता की जरूरत है. हमेशा सबके हक को बचाने की बात होनी चाहिए.
आदिवासियों की संख्या निरंतर कम हो रही है
कोचिंग इंस्टीटय़ूट के संचालक डॉ अनिल मिश्र ने कहा कि पहले तो यह स्पष्ट होना चाहिए कि स्थानीय क्या है, इसकी परिभाषा यह है. राज्य में अभी भी स्थानीय लोगों को छला गया है. अभी तक जितनी नियुक्ति हुई है, अधिकारी से लेकर चपरासी तक, उसमें बाहरी को फायदा मिला है. आदिवासियों की जनसंख्या निरंतर कम हुई है. वर्ष 2000 को आधार मान कर स्थानीय नीति को तय करने का विरोध होना चाहिए.
सर्वसम्मति से हो स्थायी नीति का निर्धारण
झारखंड माध्यमिक शिक्षक संघ के महासचिव गंगा प्रसाद यादव ने कहा कि मैं झारखंड में वर्ष 1972 से रह रहा हूं. यहीं के कॉलेज में शिक्षक के रूप में सेवा दी. सेवानिवृत्त भी यहीं से हुआ. ऐसे में क्या हम झारखंडी नहीं है. स्थानीय नीति बने तो यह ध्यान में रख कर कि सब का भला हो. कानूनी तौर पर कोई पेंच नहीं फंसे. सर्वसम्मति से स्थानीय नीति को बनाया जाना चाहिए. राज्य के सभी लोगों के हितों की रक्षा होनी चाहिए.
स्थानीय नीति के कारण राज्य का विकास है बंद
एदारे सरिया के नाजिमे आला मौलाना कुतुबुद्दीन ने कहा कि राज्य बने 14 साल हो गये, लेकिन अभी स्थानीय नीति नहीं बन पायी है. इससे राज्य का विकास नहीं हो पा रहा है. अगर राज्य के विकास के बारे में सोचना है तो मजबूती से स्थानीय नीति बनाया जाना चाहिए. हक बुला कर नहीं दिया जाता है, उसे छीनना पड़ता है. ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को फायदा पहुंचे इसका ख्याल स्थानीय नीति में रखना होगा. यह भी ध्यान देना होगा कि बाहरी राज्य के लोगों को भी 20 से 25 प्रतिशत लाभ मिले.
हमारा हो गया है झारखंड तो क्यों न मिले लाभ
झारखंड माध्यमिक शिक्षक संघ के संगठन मंत्री कालीनाथ झा ने कहा कि झारखंड में 40 साल से ज्यादा रहे हो गया. हम यहां के सभ्यता, संस्कृति एवं भाषा से जुड़ गये हैं. यहां आये और यही के हो कर रह गये. अब हमारा बिहार में कुछ नहीं है.
बच्चों का जन्म यहीं हुआ, पढ़ाई यहीं हुई. ऐसे में स्थानीय नीति में लाभ नहीं मिलेगा, तो हमारा क्या होगा. सरकार को चाहिए कि ऐसी नीति बनाये जिससे सभी को लाभ मिले.
आदिवासी को उनका अधिकार मिलना चाहिए
आदिवासी सेंगेल अभियान की नेत्री सुमित्र मुरमू ने कहा कि स्थानीय नीति का निर्धारण वर्ष 2000 को आधार बना कर नहीं होना चाहिए, इससे तो आदिवासियों को लाभ नहीं मिलेगा. राज्य बनने के पांच साल पहले ही बाहरी लोग यहां आ कर बस गये. सरकार एवं अनुबंध की नौकरी पर उनका कब्जा है. आदिवासी को उनका अधिकार तो मिलना ही चाहिए.
सालखन ने सीएम को लिखा पत्र
रांची : पूर्व सांसद सह आदिवासी सेंगेल अभियान के संयोजक, सालखन मुरमू ने सीएम रघुवर दास को पत्र लिखा है. इसमें उन्होंने कहा है कि राज्य के आदिवासी व मूलवासियों के लिए स्थानीयता (डोमिसाइल) का मामला राज्य की आत्मा की तरह है.
वर्तमान सरकार ने इसे परिभाषित करने के प्रति गंभीरता दिखायी है, जिसके लिए वे शुक्रगुजार हैं. पर जिस तरह सरकार ने 15 नवंबर 2000 को कट ऑफ डेट मानकर स्थानीयता तय करने की मंशा जाहिर की है, वह दुर्भाग्यपूर्ण है. विकास के नाम पर पहले भी झारखंड क्षेत्र से लगभग 30 लाख एकड़ जमीन लेकर 30 लाख आदिवासियों को विस्थापित किया गया है.
लगता है कि सरकार वर्ष 2000 की नीति लागू कर तीन लाख सरकारी नौकरियों से आदिवासियों व मूलवासियों को विस्थापित करने को व्याकुल है. यह राज्य का दुर्भाग्य है कि प्रमुख विपक्षी दल झामुमो के पास झारखंडी डोमिसाइल नीति का कोई प्रारूप तक नहीं है.

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