नयी दिल्ली. विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के प्रमुख रोबेर्तो अजेवेदो कहते हैं कि डब्ल्यूटीओ में हमेशा शल्य चिकित्सा जैसा माहौल होता है, जहां यदि आप लक्ष्य से चूके तो रोगी की मौत हो सकती है. उनकी इस बात से ही स्पष्ट है कि 20 साल पुरानी यह वैश्विक संस्था किस तरह से भारत और अमेरिका के बीच हुई अपनी तरह की पहली सहमति के बाद 2014 में प्रमुख व्यापार समझौते पर मुहर लगा सकी है. अमीर और विकासशील देशों के बीच का फर्क हमेशा डब्ल्यूटीओ के केंद्र में रहा है. इसकी स्थापना 1995 में दुनियाभर में व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए हुई थी और 2014 में खाद्य सुरक्षा मुद्दे पर अमेरिका और भारत के बीच हुआ समझौता एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर सामने आया. इस सहमति के साथ आखिरकार डब्ल्यूटीओ में पहली बार एक बड़े व्यापार समझौते का रास्ता साफ हुआ और भारत लंबे समय से लटकी दोहा वार्ता को 2015 में आगे बढ़ने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है. दोहा दौर की वार्ता 2011 में शुरू हुई और जुलाई, 2008 के बाद लगभग अटकी हुई है, जबकि जिनेवा में व्यापार मंत्रियों की बैठक अमीर और विकासशील देशों के बीच सहमति न हो पाने के कारण अपने मुकाम तक नहीं पहुंच पायी. यह गतिरोध मुख्य तौर पर विकासशील देशों में किसानों को दी जा रही सुरक्षा और औद्योगिक उत्पादों में शुल्क कटौती के मुद्दे पर उभरा.
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डब्ल्यूटीओ में अब 2015 की वार्ता पर जोर
नयी दिल्ली. विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के प्रमुख रोबेर्तो अजेवेदो कहते हैं कि डब्ल्यूटीओ में हमेशा शल्य चिकित्सा जैसा माहौल होता है, जहां यदि आप लक्ष्य से चूके तो रोगी की मौत हो सकती है. उनकी इस बात से ही स्पष्ट है कि 20 साल पुरानी यह वैश्विक संस्था किस तरह से भारत और अमेरिका […]
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