श्रेयस सरदेसाई
सीएसडीएस-लोकनीति से जुड़े शोधार्थी
प्रभात खबर चुनाव विश्लेषण में महारत रखनेवाली संस्थाओं सीएसडीएस और लोकनीति के विद्वानों की मदद से झारखंड के जनादेश को समझने की कोशिश कर रहा है. ‘जनादेश विश्लेषण’ शृंखला की अंतिम कड़ी में आज पढ़िए कि आखिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इतने लोकप्रिय होने के बावजूद झारखंड विधानसभा चुनाव में क्यों कुछ खास असर नहीं डाल सके.
रघुवर दास सरकार के खिलाफ मजबूत सत्तारूढ़-विरोधी भावना से पार पाने के लिए, भाजपा ने अपने राष्ट्रीय नेतृत्व पर भरोसा किया. खास तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बेड़ा पार लगा देने की उम्मीद की गयी.
प्रधानमंत्री ने जनभावना को पार्टी के पक्ष में मोड़ने के लिए चुनाव अभियान के दौरान आठ-आठ रैलियां कीं. लेकिन चुनाव के नतीजे दिखाते हैं कि प्रधानमंत्री को चुनाव अभियान का मुख्य चेहरा बनाने से भाजपा को कोई खास फायदा नहीं हुआ. लोकनीति-सीएसडीएस का मतदान-बाद सर्वेक्षण इस बारे में कुछ सुराग देता है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ. प्रधानमंत्री लोकप्रिय रहे और मतदाताओं ने उन्हें पसंद किया, लेकिन यह भाजपा के लिए वोटों में नहीं बदल सका. कम से कम उतने तो नहीं जितनी भाजपा उम्मीद लगाये बैठी थी.
जब मतदाताओं से पूछा गया कि उन्हें प्रधानमंत्री पसंद हैं या नापसंद, तो 43 प्रतिशत ने बहुत पसंद होने और 38 प्रतिशत ने कुछ हद तक पसंद होने की बात कही. केवल 14 प्रतिशत ने प्रधानमंत्री को नापसंद बताया.
राज्य में प्रधानमंत्री को इतना ज्यादा पसंद किये जाने के बावजूद भाजपा को अपने विरोधियों पर इससे कोई बढ़त नहीं मिली. ऐसा इसलिए कि जब बात मतदान करने की आयी, तो केवल उन लोगों के बड़े हिस्से ने भाजपा को वोट किया जिन्हें प्रधानमंत्री को बहुत पसंद किया था.
इस श्रेणी के 58% लोगों ने भाजपा के लिए वोट किया. जबकि, प्रधानमंत्री को थोड़ा पसंद करनेवालों के बड़े हिस्से ने अन्य पार्टियों को वोट किया, न कि भाजपा को. इनके 46 प्रतिशत हिस्से ने गठबंधन को और 37 प्रतिशत ने दूसरी गैर-भाजपा पार्टियों को वोट किया. इस आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि प्रधानमंत्री केवल अपने कट्टर प्रशंसकों में से ही भाजपा को वोट दिलवा सके, सामान्य प्रशंसकों में से नहीं.
अपनी लोकप्रियता को भाजपा के लिए वोटों में नहीं बदल पाने की प्रधानमंत्री की विफलता के दो कारण नजर आते हैं- एक, रघुवर दास सरकार के प्रति बहुत ज्यादा असंतोष और दूसरा, केंद्र सरकार के प्रदर्शन को लेकर भी मतदाताओं में ठीकठाक असंतोष जिसकी चर्चा इससे पूर्व प्रकाशित लेखों में की गयी है. नरेंद्र मोदी लोकप्रिय थे, लेकिन बहुत से लोगों की ऐसी ही भावना उस केंद्र सरकार के प्रति नहीं थी जिसे वह चला रहे हैं.
इस तरह देखें तो, मोदी को व्यक्ति के रूप में पसंद करनेवाले लेकिन उनकी सरकार के कामकाज से असंतुष्ट मतदाता, भाजपा से दूर रहे लगते हैं. सर्वेक्षण में पाया गया कि ऐसे मतदाताओं की संख्या 40 प्रतिशत थी जो मोदी को तो पसंद करते थे लेकिन उनकी सरकार के काम से खुश नहीं थे. ऐसे मतदाताओं के बीच से भाजपा को 16 प्रतिशत वोट ही मिल सके.
सर्वेक्षण में एक और रोचक तथ्य सामने आया जो आखिरी वक्त में फैसला लेनेवालों और वोट के लिए अपनी पसंद तय करने से जुड़ा है. सर्वेक्षण में पाया गया कि हर तीन में से एक मतदाता ने या तो मतदान के दिन, या फिर उससे एक दिन पहले अपना मन बनाया. अंतिम क्षणों में फैसला लेनेवाले मतदाताओं ने सभी पांचों चरणों में भाजपा से ज्यादा झामुमो गठबंधन को वोट किया. चौथे और पांचवें चरणों में ऐसे मतदाताओं द्वारा गठबंधन और भाजपा को किये गये वोटों का अंतर क्रमश: 13 और 12 प्रतिशत अंक रहा. यह तथ्य सीएए और एनआरसी विवाद के संदर्भ में महत्वपूर्ण है.
चौथे और पांचवें चरणों के मतदान के दौरान यह विवाद उबाल पर था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस मुद्दे पर आक्रामक अभियान चला रहे थे. अगर भाजपा और नरेंद्र मोदी को उम्मीद थी कि वे इसके जरिये देर में फैसला लेनेवाले मतदाताओं का रुझान अपनी तरफ कर सकेंगे तो ऐसा हुआ नहीं लगता. आंकड़े बताते हैं कि अगर इस मुद्दे का कोई असर हुआ तो वह गठबंधन के पक्ष में रहा. यानी, भाजपा ने अंतिम चरण में अपना वोट शेयर काफी बढ़ाया, लेकिन यह बढ़त पहले ही फैसला ले लेनवालों के बीच समर्थन के कारण थी, न कि बाद में फैसला लेनेवालों के कारण.
अंतिम क्षणों में मन बनानेवाले गठबंधन के पक्ष में अधिक गये
गठबंधन को भाजपा को वोट किया वोट किया
पहले चरण में अंतिम क्षणों में मन बनानेवाले 40 33
दूसरे चरण में अंतिम क्षणों में मन बनानेवाले 41 26
तीसरे चरण में अंतिम क्षणों में मन बनानेवाले 33 30
चौथे चरण में अंतिम क्षणों में मन बनानेवाले 39 26
पांचवें चरण में अंतिम क्षणों में मन बनानेवाले 46 34
नेताओं को लेकर जनता की पसंद-नापसंद
पूर्ण थोड़ा थोड़ा पूर्ण विशुद्ध*
पसंद पसंद नापसंद नापसंद पसंदगी
नरेंद्र मोदी 43 38 8 6 +37
हेमंत सोरेन 22 47 21 6 +16
सोनिया गांधी 11 44 25 13 -2
रघुवर दास 10 40 26 20 -10
* विशुद्ध पसंदगी = पूर्ण पसंद-पूर्ण नापसंद