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गुड्स एवं सर्विस टैक्स के दो साल पूरे : जीएसटी लागू होने के बाद भी चीजें नहीं हुईं सस्ती, इसकी जटिल प्रक्रिया में सुधार की जरूरत
जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) को लागू हुए दो साल हो गये,लेकिन व्यापारियों के बीच जीएसटी अब भी एक जटिल प्रक्रिया बनी हुई है. टैक्स वसूलने को लेकर सरकार और व्यापारियों के बीच एक तरह की जंग चल रही है, जिसे हल करने में सलाहकारों की भूमिका काफी अहम हो गयी है. जीएसटी लागू होने […]
जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) को लागू हुए दो साल हो गये,लेकिन व्यापारियों के बीच जीएसटी अब भी एक जटिल प्रक्रिया बनी हुई है. टैक्स वसूलने को लेकर सरकार और व्यापारियों के बीच एक तरह की जंग चल रही है, जिसे हल करने में सलाहकारों की भूमिका काफी अहम हो गयी है.
जीएसटी लागू होने के बाद जहां कई उद्योगों को फायदा हुआ है, वहीं कुछ उद्यमी मानते हैं कि अपेक्षित सफलता नहीं मिली है़ चीजें सस्ती होने का लाभ भी आम लोगों को नहीं मिला है. एक देश-एक टैक्स की बात सही नहीं हो सकी है. महंगाई जस की तस बनी हुई है. जानकारों का मानना है कि अब भी इसमें सुधार की जरूरत है़ पेश है रिपोर्ट…
रांची : झारखंड में इस समय करीब 97 हजार सूक्ष्म, लघु व मध्यम श्रेणी के उद्योग हैं. जीएसटी आने के बाद जहां कई उद्योगों को फायदा हुआ है, वहीं कुछ उद्यमी मानते हैं कि अपेक्षित सफलता नहीं मिली है. वे कहते हैं कि हमारी सोच थी कि छोटे उद्योगों को टैक्स में छूट दी जाती है, क्योंकि वे अर्थव्यवस्था में रोजगार पैदा करते हैं और उद्यमिता का विकास करते हैं.
जीएसटी में छोटे और बड़े उद्योगों को एक ही साथ रख दिया गया है. सभी पर टैक्स की दर एक समान है, जबकि छोटे उद्योगों की उत्पादन लागत ज्यादा आती है. एक समान दर से टैक्स का भुगतान करने के कारण वे बड़े उद्योगों के सामने टिक नहीं पा रहे हैं. हालांकि उद्यमी यह मानते हैं कि जीएसटी से करदाताओं का दायरा बढ़ा है. वे आशान्वित हैं कि सरकार छोटे उद्योगों के विषय में जरूर सोचेगी और उसके हित में कोई कदम उठायेगी.
वार्षिक रिटर्न दाखिल करने में हो रही परेशानी
जीएसटी के तहत वार्षिक रिटर्न दाखिल करने में काफी परेशानी हो रही है. फॉर्मेट एक साल बाद आया है. नया फॉर्मेट होने की वजह से डीलरों को कई बातें समझ नहीं आ रही हैं. जीएसटी उप समिति के चेयरमैन ज्योति पोद्दार ने कहा कि व्यापारियों की सुविधा के लिए भले ही रिटर्न दाखिल करने की समय सीमा बढ़ायी गयी है, लेकिन न तो पोर्टल की रफ्तार बढ़ाने की कोशिश की गयी है और न फॉर्म की जटिलता दूर की गयी है.
व्यापारियों की परेशानी
व्यापारियों ने फॉर्म-3 बी में माल की जो खरीद-बिक्री दिखायी है, वह पोर्टल पर दिख रहे डाटा से मिलान नहीं हो रहा है. रिटर्न साइकल 1, 2 और 3 था, वह भी पूरा नहीं हुआ है. इस कारण डीलरों को जितना इनपुट टैक्स क्रेडिट मिलना चाहिए, वह वार्षिक रिटर्न में नहीं दिख रहा है. जो व्यापारी कुछ समय समाधान योजना और कुछ समय सामान्य में रहे, उन्हें अलग-अलग रिटर्न फाइल करनी पड़ रही है. पर पोर्टल उसे रिसीव नहीं कर रहा है.
पेट्रोलियम पदार्थों पर भी जीएसटी लागू करने की उठ रही मांग
पेट्रोलियम प्रोडक्ट के लोग भी चाहते हैं कि उनके उत्पादों में जीएसटी लागू हो. वैट रहने के कारण अलग-अलग राज्य अलग-अलग आधार पर टैक्स तय करते हैं.
इससे पड़ोसी राज्यों में भी कीमत का भारी अंतर हो जा रहा है. इससे बचने के लिए जीएसटी लागू होना चाहिए. झारखंड पट्रोलियम डीलर एसोसिएशन के प्रवक्ता प्रमोद कुमार का मानना है कि पूरे देश में एक तरह का टैक्स होना चाहिए. इससे बॉर्डर इलाके वाले पेट्रोल पंपों को परेशानी नहीं होगी. यह मांग एसोसिएशन पहले से ही कर रहा है.
शराब पर जीएसटी नहीं होने से राज्यों को हो रहा नुकसान
शराब पर जीएसटी नहीं होने से राज्यों को नुकसान हो रहा है. इससे शराब की कीमतों में एक राज्य से दूसरे राज्य में काफी अंतर हो जाता है. राज्यों को अपना शेयर नहीं मिल पाता है. इससे शराब का अवैध व्यापार भी बढ़ता है. शराब के कारोबार से जुड़े अनूप चावला बताते हैं कि शराब पर जीएसटी लागू होने से पूरे देश में शराब की कीमत एक होगी. इससे व्यापारियों के साथ-साथ उपभोक्ता को भी फायदा होगा.
लोगों को नहीं मिल रहा लाभ
जीएसटी (गुड्स एवं सर्विस टैक्स) लागू होने के बाद चीजें सस्ती होने का लाभ आम लोगों को नहीं मिला है. कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के संयुक्त सचिव और झारखंड के प्रदेश अध्यक्ष अर्जुन जालान ने कहा कि सामान के भाव में कोई परिवर्तन नहीं दिख रहा है. आम उपभोक्ताओं को इसका लाभ नहीं मिला है. महंगाई जस की तस बनी हुई है. प्लांट से साबुन, तेल, मंजन, क्रीम बनते हैं. उसकी कीमत आज भी वही है. कृषि मंडियों में किसानों के माल नीलामी के हिसाब से तय किये जाते हैं. पहले विभिन्न प्रकार के टैक्स लगते थे. आज एक टैक्स लग रहा है, लेकिन कीमतें कम नहीं हो पायी हैं.
अब भी कई विसंगतियां
झारखंड चेंबर के अध्यक्ष दीपक कुमार मारू ने कहा कि जीएसटी को जिस प्रारूप में लागू किया गया था, तब और आज इसके प्रारूप में काफी बदलाव हुए हैं. हालांकि अब भी इसमें सुधार की जरूरत है. टैक्सेशन की निर्धारित चार दरों को एक ही दर करने का प्रयास अब करना चाहिए. जीएसटी का मूल उद्देश्य भी यही था कि अब देश में एक ही टैक्स लगेगा, लेकिन राज्य व स्थानीय स्तर पर अभी भी व्यापारियों को कई टैक्स का भुगतान करना पड़ता है. सरकार को इन विसंगतियों को समाप्त करने की पहल करनी चाहिए. अपने छोटे कार्यकाल में ही जीएसटी ने ऊंचा मुकाम हासिल किया है.
सीए की आमदनी व व्यापारियों की जटिलता बढ़ी
रांची : नोटबंदी और जीएसटी के बाद सीए और अकाउंटेंट काफी व्यस्त हो गये हैं. बाजार में उनकी मांग बढ़ गयी है. सीए के दस्तखत व्यापारियों के लिए कीमती हो गये हैं. व्यापारियों की नजर में जीएसटी को लेकर अब भी स्थिति स्पष्ट नहीं है. लिहाजा इसकी पेचीदगी के चलते सीए फर्म को मोटी आमदनी हो रही है. सीए इसे सरल बनाने की मांग तो करते हैं, पर इससे होनेवाली आमदनी से वह संतुष्ट भी नजर आते हैं.
जीएसटी लागू होने के बाद झारखंड के पेशेवर सीए के पास क्लाइंट बेस 20 से 25 प्रतिशत तक बढ़ा है, जबकि काम में चार गुना इजाफा हुआ है. सबसे ज्यादा मांग छोटे और मझोले उद्योगों (एमएसएमइ) से आ रही है. इस मांग को पूरा करने के लिए अब इनकम टैक्स का काम करने वाले सीए भी जीएसटी की प्रैक्टिस करने लगे हैं.
वकीलों का मार्केट हुआ डाउन
जीएसटी के सरल नहीं होने की वजह से टैक्स मामलों के वकीलों को भी परेशानी हो रही है. वाणिज्यकर मामले में कारोबारियों की पैरवी करने वाले अधिवक्ताओं की जीएसटी से माथापच्ची चल रही है. वैट के दौरान व्यापारियों का काम वकीलों के माध्यम से चल जाता था, पर अब उनको सीए की जरूरत ज्यादा पड़ रही है. हालांकि, व्यापारी जीएसटी में विधि प्रक्रिया व नियम के तहत फाइल करने में कठिनाइयों का सामना करने पर अधिवक्ताओं से सुझाव ले रहे हैं. लेकिन, बड़े फर्म या फिर सीए के पास जीएसटी की ज्यादा समझ व सुविधाएं होने से वकीलों का एकाधिकार टूटा है. टैक्स मामलों के वकीलों का कंपीटीशन बढ़ गया है.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
जीएसटी में बिल की अनिवार्यता होने की वजह से उपभोक्ताओं को उचित दर पर सामान मिल रहा है. ब्लैक मार्केटिंग में काफी कमी आयी है. जीएसटी लाने के पीछे एक महत्वपूर्ण उद्देश्य यह था कि टैक्स में कमी की वजह से वस्तुओं की कीमतों में भी कमी आयेगी, पर हकीकत आज भी इससे अलग है. इनपुट क्रेडिट को लेकर अभी कई सारी खामियां हैं.
सुमित अग्रवाल, वरिष्ठ, चार्टर्ड एकाउंटेंट
टैक्स वकीलों को आज भी जीएसटी भरने में कई घंटे लग रहे हैं. हमारा सीधा मुकाबला टैक्स फर्म या एक ही जगह सीए द्वारा सेवाएं उपलब्ध करानेवालों से है. हालांकि व्यापारियों का एक बड़ा वर्ग कानून की बारिकियों और बाद में आनेवाली उलझनों के समाधान निकालने के लिए लॉ फर्म या एडवोकेट से सलाह लेकर ही आगे बढ़ रहा है.
प्रतीक बंसल, टैक्स एडवोकेट, जीएसटी
जीएसटी पर आम लोगों की राय
जीएसटी लागू होने के बाद चीजें सस्ती नहीं हुईं. राज्यों को भी फायदा नहीं हुआ. एक देश-एक टैक्स की बात सही नहीं हो सकी. पेट्रोलियम पदार्थ अब भी इससे बाहर हैं.
संजीव कुमार
जीएसटीएन में बदलाव करती रही है सरकार
रांची : केंद्र सरकार जीएसटी को संचालित करनेवाले सॉफ्टवेयर(जीएसटीएन) में लगातार बदलाव करती आ रही है. यह बदलाव व्यापारियों द्वारा रिटर्न दाखिल करने में आनेवाली परेशनियों को खत्म करने के उद्देश्य से किया जाता है. कई बार रिटर्न दाखिल करने के लिए लागू किये गये फॉर्म में बदलाव किया गया. इसी के अनुरूप जीएसटीएन में बदलाव किया गया. वहीं व्यापारियों द्वारा किये जानेवाले टैक्स की चोरी रोकने के लिए गाड़ियों पर रडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन डिवाइस(आरएफआइडी) लगाने का काम शुरू कर दिया गया है. अब तक कर्नाटक और यूपी में इस प्रणाली का इस्तेमाल शुरू कर दिया गया है. झारखंड में भी जल्द ही इसे लगाया जायेगा.
व्यापार जगत से मिलेवाले टैक्स का हिसाब रखने और व्यापारियों को अपनी व्यापारिक गतिविधियों का ब्योरा सौंपने के लिए गुड्स एंड सर्विस टैक्स नेटवर्क(जीएसटीएन) तैयार किया गया.
जीएसटी लागू होने के प्रारंभिक दौर में रिटर्न दाखिल करने के अंतिम दिनों में एक ही साथ करोड़ों व्यापारियों द्वारा जीएसटीएन का इस्तेमाल करने की वजह से जीएसटीएन हैंग करने लगा. इस सॉफ्टवेयर में अपग्रेड करने के बाद अब तीन करोड़ से अधिक लोग एक ही समय में जीएसटीएन का इस्तेमाल कर सकते हैं. रिटर्न दाखिल करने में होनेवाली परेशानियों की जानकारी और उसके समाधान के लिए ‘ग्रिवांस सेल’ बनाया गया है. इस पोर्टल पर दर्ज की गयी शिकायतों का हल निकाला जाता है. जीएसटी लागू करने से पहले व्यापारिक गतिविधियों से संबंधित ब्योरा दाखिल करने के लिए तीन तरह के फाॅर्म( जीएसटीआर-1, जीएसटीआर-2,जीएसटीआर-3) को लागू करना था.
हालांकि व्यापारियों द्वारा दिये गये सुझाव के आधार पर सरकार ने तीन के बदले दो फाॅर्म(जीएसटीआर-1, जीएसटीआर-3बी) लागू किया. इसी के अनुरूप जीएसटीएन में बदलाव किया. जनवरी 2020 से दो के बदले सिर्फ एक ही फॉर्म का इस्तेमाल किये जाने की तैयारी की जा रही है.
सरकार ने व्यापारियों की सुविधा के लिए वित्तीय वर्ष 2017-18 का वार्षिक रिटर्न दाखिल करने की अंतिम तिथि 30 जून से बढ़ा कर 31 अगस्त कर दी है. सरकार को इस बात की उम्मीद थी कि जीएसटी लागू होने के बाद टैक्स की चोरी रुकेगी और कच्चा व्यापार बंद हो जायेगा. हालांकि जीएसटी में भी फर्जी दस्तावेज के सहारे रजिस्ट्रेशन लेने और व्यापार करने का मामला प्रकाश में आया. इसके बाद केंद्र सरकार ने माल की वास्तविक खरीद-बिक्री पर नजर रखने के लिए व्यावसायिक वाहनों पर आरएफआइडी लगाने का फैसला किया.
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