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रांची : संपन्न लोग ज्यादा करते हैं प्राकृतिक संसाधनों का दोहन
पर्यावरण दिवस. प्रभात खबर परिसर में जल संरक्षण पर संगोष्ठी का आयोजन, बोले सरयू राय रांची : प्रभात खबर परिसर में बुधवार को पर्यावरण दिवस के मौके पर जल संरक्षण विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया. संगोष्ठी के मुख्य वक्ता राज्य के मंत्री सह पर्यावरणविद् सरयू राय ने कहा कि 70 फीसदी पानी का […]
पर्यावरण दिवस. प्रभात खबर परिसर में जल संरक्षण पर संगोष्ठी का आयोजन, बोले सरयू राय
रांची : प्रभात खबर परिसर में बुधवार को पर्यावरण दिवस के मौके पर जल संरक्षण विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया. संगोष्ठी के मुख्य वक्ता राज्य के मंत्री सह पर्यावरणविद् सरयू राय ने कहा कि 70 फीसदी पानी का उपयोग कृषि कार्य में होता है. 20 फीसदी उद्योगों के लिए उपयोग होता है.
मात्र 10 फीसदी का उपयोग की घरेलू कार्य के लिए होता है. 10 फीसदी में सबसे अधिक संपन्न लोग उपयोग करते हैं. संपन्न वर्ग ही पानी के लिए सबसे अधिक हल्ला करता है. श्री राय ने कहा कि जल उपलब्धता की व्यवस्था अगर भरोसेमंद होगी, तो लोग बोरिंग क्यों करेंगे. पानी आज भी पृथ्वी पर उतना ही है, जितना पहले था. पृथ्वी के 70 फीसदी हिस्से पर पानी है. इसमें 0.007 फीसदी पानी ही फ्रेश है. इसका उपयोग होता है.
अपने देश में पानी को लेकर क्षेत्रीय विषमता है. जहां पानी काम था, वहां के लोगों ने उसी हिसाब से जीना सीख लिया. असल में जल संकट पैदा करने वाले लोग मेधावी हैं. विकसित हैं. जागरूक भी हैं. इनको क्या जागरूकत किया जा सकता है. जो इस श्रेणी में नहीं है, उसके लिए सरकार भी नहीं सोचती है.
यह समस्या शहरी क्षेत्र के लिए है. यह आबादी मात्र तीन फीसदी है. यही आबादी 78 फीसदी कार्बन डॉयऑक्साइड छोड़ती है. इन सबसे से निबटने के लिए मिलिनियम डेवलपमेंट गोल बना. तय हुआ कि 15 साल में सभी तरह की समस्या समाप्त हो जायेगी. अब यह डेट लाइन 2030 हो गयी है. इसमें 17 गोल लेकर काम हो रहा है. पर्यावरण भी इसका एक हिस्सा है.
श्री राय ने कहा कि वाटर बॉडी को हम सुंदर बनाने के नाम पर खराब कर रहे हैं. इस पर सरकारी धनराशि खर्च हो रही है. तालाबों में पानी आने का रास्ता बंद कर दे रहे हैं. इंजीनियरिंग माइंडसेट केवल काम करने में लगा है. उसका परिणाम नहीं देख रहा है. यह सरकार की चिंता होनी चाहिए.
सप्लाई एरिया बढ़े, बोरिंग पर पाबंदी लगे : सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड के वैज्ञानिक टीवीएन सिन्हा ने कहा कि राजधानी में 1950 के आसपास तीन जलाशय बने थे. उस समय आबादी करीब एक लाख होगी. उस वक्त के हिसाब से जलाशय काफी थे. आज स्थिति बदल गयी है.
जनसंख्या बढ़ गयी है. इतने दिनों में एक भी नया जलाशय नहीं बना. पाइप लाइन भी पुरानी हैं. लीकेज काफी है. जलागार में कचरा भी हो गया है. इसकी सफाई नहीं होती है. कैचमेंट एरिया भी घटा है. ऐसे में हमलोगों को जलापूर्ति व्यवस्था से पानी नहीं पिला सकते हैं. लेकिन, यही व्यवस्था सही है. जलापूर्ति से ही पानी देनी चाहिए, बोरिंग पर पाबंदी लगनी चाहिए. जहां जलापूर्ति नहीं है, वहीं बोरिंग की अनुमति होनी चाहिए.
जनसंख्या पर नियंत्रण हो, बिना जरूरत पेड़ नहीं काटें : जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के झारखंड के निदेशक पंकज कुमार ने इस मौके पर कहा कि जल संकट बड़ी समस्या है. इसका निदान जनभागीदारी से ही संभव है. सरकार अकेले इस मामले में कुछ नहीं कर सकती है. हमें पूर्वजों ने जो दिया है, हम उसी का दोहन कर रहे हैं.
जनसंख्या पर नियंत्रण नहीं कर रहे हैं. संसाधन बढ़ नहीं रहे हैं. बिना जरूरत के पेड़ काटे जा रहे हैं. इनको रोकना होगा. हम करेंगे पर्यावरण का सम्मान तभी होगा देश महान. अगर ऐसा नहीं किया, तो झारखंड को राजस्थान बनने से नहीं रोक सकते हैं. पानी की बिना जीवन की कल्पना नहीं हो सकती है.
पैसा वाले ही आज समस्या पैदा कर रहे हैं : सिविल सोसाइटी के विकास सिंह ने कहा कि पॉकेट में पैसा वाले ही आज समस्या पैदा कर रहे हैं. हम लोगों को तालाब, कुआं और बारिश के पानी के रोकना होगा. इसी से समस्या का समाधान हो सकता है. इसके लिए टुकड़ों में बंटकर बहुत सफलता नहीं मिलेगी, मिलकर खड़ा होना होगा. कुछ लोग शहर की समस्याओं को लेकर खड़े हो रहे हैं. इसका परिणाम भी दिख रहा है. तालाबों की चहारदीवारी करने का निर्णय वापस हुआ है. बड़ा तालाब के सौंदर्यीकरण की प्रक्रिया बदली जा रही है. इससे व्यवस्था नहीं सुधरने वाली है. सरकार को जिम्मेदारी लेनी होगी.
युवाओं को आना होगा आगे : जियो साइंटिस्ट एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनल सिन्हा ने कहा कि यह समस्या बड़ी है. इसके लिए युवाओं को आगे आना होगा. संविधान में कुछ प्रावधान किया गया है. इसमें जनता की जिम्मेदारी भी तय की गयी है. इसके लिए बारे में भी सोचना होगा. जहां पर्यावरण के साथ खिलवाड़ हो रहा है. उसकी शिकायत के लिए सिया, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड आदि जैसी कई संस्था है. इसका उपयोग करना होगा.
नहीं सुनती हैं एजेंसियां : सिविल सोसाइटी के आरपी शाही ने कहा कि पिछले तीन-चार साल के कुछ लोग यहां के तालाबों को बचाने में लगे हैं. इसमें सहयोग के लिए कई एजेंसियों के पास जा चुके हैं. कोई नहीं सुनता है. हर जगह निराशा हाथ लग रही है. एक प्रयास से करमटोली को बचाया गया है. सीवरेज ट्रिटमेंट प्लांट की लड़ाई लड़ रहे हैं.
पांच-पांच पेड़ लगायें, पांच को प्रेरित करें : समाजसेवी महादेव टोप्पो ने इस मौके पर कहा कि पांच-पांच पेड़ सभी लोगों को लगाना चाहिए. पांच-पांच लोगों को इस काम के लिए प्रेरित करना चाहिए. घरों के बाहर अगर सीमेंट का पक्का बना दिया गया है, तो उसे तोड़ दें. उससे स्थान पर पानी रिसने वाला पत्थर लगायें. पानी बचाने का हर संभव प्रयास करें.
भुंगरू तकनीक से बदल गयी स्टेडियम की व्यवस्था : रवि शर्मा ने कहा कि जेएससीए के स्टेडियम में 23 बोरिंग फेल हो गये थे. यह करीब 32 एकड़ का इलाका है. 2016 में यहां भुंगरू तकनीक से पानी बचाने की व्यवस्था की गयी. इससे यहां 1.5 करोड़ लीटर पानी जमा हो पाया.
झारखंड में 52 स्थानों पर काम हो रहा है. इसके माध्यम से कम्युनिटी वाटर सप्लाई का प्रयास हो रहा है. राजधानी में आठ-नौ स्थानों पर इस तकनीकी से जल स्तर बढ़ाने का काम हो रहा है.
इससे पूर्व अतिथियों का स्वागत प्रभात खबर के प्रधान संपादक आशुतोष चतुर्वेदी ने किया. प्रभात खबर के प्रबंध निदेशक केके गोयनका ने भी विचार रखे. धन्यवाद ज्ञापन कार्यकारी संपादक अनुज कुमार सिन्हा ने किया. कार्यक्रम का संचालन कॉरपोरेट एडिटर विनय भूषण ने किया.
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