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रांची : रिम्स व पीएमसीएच में निविदा घोटाला, विभागीय जांच में घपले की पुष्टि, 20 करोड़ के उपकरण 45 करोड़ में खरीदे गये

संजय सक्षम व स्वतंत्र जांच एजेंसी से विस्तृत जांच की अनुशंसा रांची : रिम्स रांची तथा पीएमसीएच धनबाद में विभिन्न मेडिकल उपकरणों की खरीद बाजार दर से दोगुनी से भी अधिक कीमत पर की गयी है. करीब 20 करोड़ रुपये के उपकरण लगभग 45 करोड़ में खरीदे गये हैं. इसका खुलासा स्वास्थ्य विभाग की जांच […]

संजय
सक्षम व स्वतंत्र जांच एजेंसी से विस्तृत जांच की अनुशंसा
रांची : रिम्स रांची तथा पीएमसीएच धनबाद में विभिन्न मेडिकल उपकरणों की खरीद बाजार दर से दोगुनी से भी अधिक कीमत पर की गयी है. करीब 20 करोड़ रुपये के उपकरण लगभग 45 करोड़ में खरीदे गये हैं. इसका खुलासा स्वास्थ्य विभाग की जांच में हुआ है. स्थानीय आपूर्तिकर्ताअों द्वारा मेडिकल उपकरण की खरीद में गड़बड़ी की शिकायत पर पूर्व स्वास्थ्य सचिव निधि खरे ने 24 अगस्त 2018 को गत पांच वित्तीय वर्ष की निविदा व खरीद की जांच का आदेश दिया था.
जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त विभाग के नियम के मुताबिक किसी निविदा का टेक्निकल व फाइनेंशियल बिड एक ही कमेटी (परचेज कमेटी) द्वारा खोला जाता हैए पर रिम्स में टेक्निकल बिड खोलने के लिए अलग से एक टेक्निकल कमेटी बनायी गयी, जिसने विभिन्न निविदा में दो फर्म के साथ मिल कर वित्तीय अनियमितता को अंजाम दिया. यानी एक परचेज कमेटी के बजाय अलग-अलग परचेज कमेटी व टेक्निकल कमेटी बनायी गयी.
टेक्निकल कमेटी में अधीक्षक व डीन सहित कई विभागों के अध्यक्ष शामिल थे. वहीं परचेज कमेटी में निदेशक, अधीक्षक तथा वित्त, उद्योग, निगरानी व स्वास्थ्य विभाग के प्रतिनिधि शामिल थे. एनएचएम के निदेशक वित्त नरसिंह खलखो की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय जांच टीम ने अपनी रिपोर्ट में दोनों कमेटी के सदस्यों तथा आपूर्तिकर्ता दो कंपनियों के बीच मिलीभगत की संभावना जतायी है.
दरअसल टेक्निकल कमेटी ने एक ही पते (30ए, सीअाइटी रोड, कोलकाता, प.बंगाल-700014) वाली दो आपूर्तिकर्ता कंपनियों मेसर्स श्रीनाथ इंजीनियरिंग (पैन सं- एएपीसीएस 2088 ए) तथा मेसर्स डीके मेडिकल्स (पैन सं-इएफजेपीएस 5171 सी) को ज्यादातर निविदाअों के तकनीकी बिड में क्वालिफाइ कराया तथा शेष को रिजेक्ट कर दिया. डेंटल विभाग की एक निविदा (सं-8646. दिनांक-12.12.17) 239 उपकरणों की खरीद के लिए निकाली गयी थी. इसमें से 220 उपकरणों के लिए उपरोक्त दोनों कंपनियों को ही क्वालिफाइ किया गया.
विभागीय जांच में इनमें से एक फर्म डीके मेडिक्लस द्वारा निविदा के साथ जमा किये गये अोरिजिनल इक्विपमेंट मैन्यूफैक्चरर (उपकरण बनाने वाली कंपनी) के अधिकृत पत्र (अॉथोराइजेशन लेटर) फर्जी पाये गये हैं.
जांच कमेटी ने दोनों कंपनियों को एक ही व्यक्ति या ग्रुप द्वारा संचालित या खड़ी की गयी कंपनी बताया है, जिसमें डीके मेडिकल्स ने छद्म कंपनी का रोल निभाया. इन दोनों के टेंडर में भाग लेने से कोई टेंडर सिंगल टेंडर नहीं हुआ तथा निविदा में गड़बड़ी का मकसद भी पूरा हो गया.
दरअसल एक सोची-समझी रणनीति के तहत यह काम हुआ. सभी टेंडर में श्रीनाथ इंजीनियरिंग की दर डीके मेडिकल्स से थोड़ी ही कम होती थी. इसलिए आपूर्ति आदेश इसी को मिलता था. डीके मेडिकल्स का चूंकि अधिकृत पत्र फर्जी होता था, इसलिए आपूर्ति आदेश पाने की स्थिति में वह इसे पूरा भी नहीं कर पाता.
दोगुनी दर कोट की
जिन निविदाअों में इन दोनों के अलावा किसी तीसरी कंपनी टेक्निकल बिड में क्वालिफाइ हुई, उनकी दर मेसर्स श्रीनाथ व डीके मेडिकल्स से दोगुनी से भी कम थी. उदाहरण के लिए इंटरा अोरल एक्स-रे मशीन की दर श्रीनाथ इंजीनियरिंग ने 6.03 लाख तथा डीके मेडिकल्स ने 7.10 लाख कोट की थी. वहीं इसी उपकरण के लिए विशाल सर्जिकल की दर सिर्फ 2.5 लाख रुपये थी. इसी तरह सर्जिकल माइक्रोमीटर की दर श्रीनाथ की 17.15 लाख व डीके की 20 लाख थी. वहीं विशाल सर्जिकल ने इसकी दर 2.43 लाख तथा कांफिडेंट डेंटल इक्विपमेंट ने 2.45 लाख कोट की थी.
रिम्स के टेंडर : रिम्स/स्टोर/एमइ(4)/3630 दिनांक – 4.6.18 तथा इसी के तहत डेंटल विभाग के दो टेंडर- 8646, दिनांक -12.12.17 व 3422, दिनांक – 2.6.15 में गड़बड़ी.
पीएमसीएच के तीन क्रय आदेश : 591, 594 तथा 597 (सभी दिनांक – 23.3.17) में गड़बड़ी
पीएमसीएच में उपरोक्त कार्यादेश के विरुद्ध हुए भुगतान के साथ श्रीनाथ इंजीनियरिंग को तीन साल का एनुअल मेंटेनेंस चार्ज भी अग्रिम के रूप में दे दिया गया, जबकि न्यूनतम दर में यह चार्ज शामिल होता है तथा मूल निविदा में इसका कोई प्रावधान नहीं था.
डीके मेडिकल्स ने एबोट, टटनैमुअर, मैग्नाटेक, निहोन, रेसमेड, हिताची व होलोजिक जैसी कंपनियों में से कई के फर्जी अधिकृत पत्र जमा किये. इसका खुलासा विभिन्न कंपनियों को मेल भेज कर पूछने से हुआ.
रेसमेड ने तो स्वास्थ्य विभाग से डीके मेडिकल्स के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का अनुरोध किया है तथा कहा है कि वह खुद भी फर्म के खिलाफ कार्रवाई करेगी.
यूएस की एक मल्टीनेशनल कंपनी एबोट हेल्थ केयर ने एक ही पते वाली उक्त दोनों कंपनी को निविदा में भाग लेने के लिए अधिकृत किया. ऐसा करना फॉरेन करप्ट प्रैक्टिसेस एक्ट, यूके ब्राइबरी एक्ट तथा इथिकल बिजनेस प्रैक्टिस के खिलाफ है.
तीन-चार लाख का डेंटल चेयर 12-13 लाख में खरीदा गया
जितना डेंटल चेयर खरीद लिया गया, उसकी जरूरत उस वक्त तो दूर वर्तमान में भी नहीं है.
डेंटल वैन जिसकी कीमत 40-45 लाख से अधिक नहीं हो सकती, उसे 1.95 करोड़ में खरीदा गया.

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