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रांची : आरोपी बने जांचकर्ता और जांचकर्ता बने आरोपी, मामला बिजली के लिए एलविन केबल कंपनी के भुगतान का
अभी तक जांच का इंतजार रांची : तत्कालीन झारखंड राज्य विद्युत बोर्ड (जेएसइबी) में एक जांच का मामला पिछले 10 वर्षों से चल रहा है. फरवरी 2018 में तीसरी बार जांच कमेटी बनी है, पर दोषी चिह्नित नहीं किये जा सके हैं. इस मामले में मजेदार बात यह है कि जिस व्यक्ति ने सबसे पहले […]
अभी तक जांच का इंतजार
रांची : तत्कालीन झारखंड राज्य विद्युत बोर्ड (जेएसइबी) में एक जांच का मामला पिछले 10 वर्षों से चल रहा है. फरवरी 2018 में तीसरी बार जांच कमेटी बनी है, पर दोषी चिह्नित नहीं किये जा सके हैं. इस मामले में मजेदार बात यह है कि जिस व्यक्ति ने सबसे पहले जांच कर गड़बड़ी पकड़ी और जिसे आरोपी बनाया, बाद में वही आरोपी जांच अधिकारी बना और जांच करनेवाले को ही दोषी ठहरा दिया गया. इसके बाद अब तीसरी बार जांच कमेटी बनी है और जांच का इंतजार किया जा रहा है.
क्या है मामला : तब के जेएसइबी में 11 फरवरी 2008 को मेसर्स एलविन केबल को 3860 किमी एसीएसआर विजल कंडक्टर की आपूर्ति एडीपी हेड में करने का ऑर्डर दिया गया था. ऑर्डर संख्या 28 (एसएंडपी) है.
पांच करोड़ 33 लाख 15 हजार 480 रुपये का यह ऑर्डर वेरियेबल प्राइस के साथ दिया गया था. कंडक्टर की आपूर्ति 31.1.2009 तक करनी थी. तब जेएसइबी के चेयरमैन एचबी लाल थे. इसी दौरान कंडक्टर आपूर्ति किये जाने के बाद तत्कालीन अभियंता प्रमुख सीडी कुमार के आदेश पर चेयरमैन की सहमति कंपनी को आधे पैसे का भुगतान किया गया. यह राशि ग्रामीण विद्युतीकरण मद से भुगतान की गयी, जबकि योजना एक्सीलेरेटडेड डेवलपमेंट प्रोग्राम(एडीपी) की थी. इसके पूर्व कंपनी के कारखाने का निरीक्षण कराया गया, तो वहां तार रेडी नहीं था.
बाद में विलंब से आपूर्ति किये जाने के बाद भी कंपनी को प्राइस वेरियेशन का लाभ दिया गया. इस मामले को तत्कालीन वित्त नियंत्रक टू उमेश कुमार ने बोर्ड के संज्ञान में लाया और इसके लिए तत्कालीन अभियंता प्रमुख को आरोपी बनाया. तब जेएसइबी के चेयरमैन एके चुघ बन गये थे. उन्होंने गलत निरीक्षण कराने, विलंब से आपूर्ति करने पर कंपनी को पेनाल्टी नहीं लगाने के आरोप में तत्कालीन अभियंता प्रमुख सीडी कुमार से जून 2009 में स्पष्टीकरण पूछने का आदेश दिया. साथ ही वित्त नियंत्रक उमेश कुमार व उप विधि सलाहकार एके मिश्रा को पूरे मामले की जांच का जिम्मा सौंपा.
पर इस मामले को बोर्ड के प्रशासनिक विभाग द्वारा ही दबा दिया गया. बोर्ड प्रशासन ने अभियंता प्रमुख सीडी कुमार की अध्यक्षता में एक और कमेटी बना दी. इस कमेटी ने भुगतान न रोकने का आरोप लगाते हुए वित्त नियंत्रक को ही आरोपी बना दिया. इनके साथ-साथ 16 अन्य लोगों को भी आरोपी बनाया गया. मामले पर फाइलों में कार्रवाई चल ही रही थी कि इसी बीच अभियंता प्रमुख सेवानिवृत्त हो गये और जेएसइबी का बंटवारा कर चार कंपनियां बन गयीं.
कंपनी ने छह करोड़ से अधिक केवल सूद की रकम मांगी : इधर, इस पेच में कंपनी एलविन ने वर्ष 2016 में भुगतान को लेकर उद्योग विभाग के अधीन झारखंड सूक्ष्म एवं लघु उद्यम सुगमीकरण परिषद में मामला दायर कर दिया. कंपनी का तर्क था कि 24.12.2008 से लेकर 6.6.2009 तक एसीएसआर विजल कंडक्टर और एसीएसआर रेबिट कंडक्टर की आपूर्ति की गयी, जिसकी लागत सात करोड़ 40 लाख चार हजार 173 रुपये है. इसमें बोर्ड द्वारा छह करोड़ 37 लाख 48 हजार 978 रुपये का भुगतान किया गया है.
कुल बकाया राशि एक करोड़ दो लाख 55 हजार 194 रुपये है. इस पर सूद की रकम छह करोड़ 45 लाख 40 हजार 278 रुपये हो गयी. यानी कुल सात करोड़ 47 लाख 95 हजार 473 रुपये भुगतान करने की मांग की गयी है. यानी जितने में काम दिया गया था, उससे भी अधिक का दावा किया गया. फिलहाल मामला उद्योग विभाग में विचाराधीन है.
तीसरी जांच कमेटी बन गयी
इसी दौरान तत्कालीन ऊर्जा सचिव नितिन मदन कुलकर्णी ने फरवरी 2018 में एलविन केबल के भुगतान के मामले की जांच के लिए तीसरी कमेटी बना दी. इस कमेटी में ऊर्जा विभाग के विशेष सचिव सुरेंद्र प्रसाद सिंह, वित्त नियंत्रक वन अमित बनर्जी और मुख्य अभियंता यूके सिंह हैं. फिलहाल इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट नहीं दी है. इधर, इस मामले को लेकर कई पदाधिकारियों की प्रोन्नति रुकी हुई है.
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