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रांची : को-ऑपरेटिव बैंक में एफडी का दे दिया फर्जी प्रमाण पत्र
शकील अख्तर खाताधारी द्वारा एफडी और सूद की राशि चालू खाता में जमा करने का अनुरोध करने के बाद मामला पकड़ में आया रांची : को-ऑपरेटिव बैंक के अफसरों द्वारा इंद्रजीत वर्मा नामक खाताधारी के फिक्स डिपोजिट के बदले फर्जी प्रमाण पत्र देने का मामला प्रकाश में आया है. फिक्स डिपोजिट की अवधि पूरी होने […]
शकील अख्तर
खाताधारी द्वारा एफडी और सूद की राशि चालू खाता में जमा करने का अनुरोध करने के बाद मामला पकड़ में आया
रांची : को-ऑपरेटिव बैंक के अफसरों द्वारा इंद्रजीत वर्मा नामक खाताधारी के फिक्स डिपोजिट के बदले फर्जी प्रमाण पत्र देने का मामला प्रकाश में आया है. फिक्स डिपोजिट की अवधि पूरी होने के बाद खाताधारी द्वारा यह रकम अपने चालू खाता में जमा करने का अनुरोध करने के बाद जालसाजी का यह मामला पकड़ में आया है.
इसके बाद बैंक के ब्रांच मैनेजर ने इस मामले में सीनियर मैनेजर से आवश्यक दिशा निर्देश की मांग की है. मामला गिरिडीह को-ऑपरेटिव बैंक से संबंधित है. इस मामले के पकड़ में आने के बाद को-ऑपरेटिव बैंक में हड़कंप मचा हुआ है.
क्या है मामला : इंद्रजीत वर्मा को-ऑपरेटिव बैंक गिरिडीह के खाताधारी हैं. बैंक के इस ब्रांच में उनका बचत खाता है, जिसका नंबर 10532006871 है. श्री वर्मा ने दो जुलाई 2016 में चार लाख रुपये का फिक्स डिपोजिट किया था. फिक्स डिपोजिट की अवधि एक साल की थी. फिक्स डिपोजिट के बदले बैंक की ओर से श्री वर्मा को प्रमाण पत्र जारी किया गया. बैंक के अकाउंटेंट और असिस्टेंट मैनेजर के हस्ताक्षर से जारी प्रमाण पत्र का नंबर-007826 था. एक साल की अवधि पूरी होने के बाद बैंक अधिकारियों ने श्री वर्मा की सहमति से फिक्स डिपोजिट की अवधि एक साल यानी दो जुलाई 2018 तक के लिए बढ़ा दी.
जालसाजी के बारे में कब और कैसे पता चला
फिक्स डिपोजिट की अवधि पूरी होने के बाद श्री वर्मा ने प्रमाण पत्र के साथ बैंक में एक आवेदन दिया. इसमें उनकी ओर से बैंक के मैनेजर से यह अनुरोध किया गया कि फिक्स डिपोजिट और इससे मिली सूद की राशि उनके बचत खाते में ट्रांसफर कर दी जाये.
इस आवेदन को स्वीकार करने के बाद फिक्स डिपोजिट और सूद की राशि बचत खाते में ट्रांसफर करने की प्रक्रिया शुरू करने के क्रम में बैंक को इस जालसाजी का पता चला. बैंक के डिजिटल ब्योरे में इंद्रजीत वर्मा के फिक्स डिपोजिट का कोई ब्योरा ही दर्ज नहीं है. इतना ही नहीं बैंक के किसी भी दस्तावेज में इस फिक्स डिपोजिट का ब्योरा दर्ज नहीं है.
जबकि को-ऑपरेटिव बैंक वर्ष 2012 में ही ऑनलाइन हो चुका है. बैंक में हुई इस जालसाजी के पकड़ में आने के बाद गिरिडीह को-ऑपरेटिव बैंक के ब्रांच मैनेजर ने सीनियर मैनेजर को पत्र लिख कर मामले की जानकारी दी है. साथ ही यह जानना चाहा कि है अब बैंक को क्या करना चाहिए. ब्रांच मैनेजर ने इस मामले में आवश्यक दिशा निर्देश मांगा है, ताकि इस समस्या का हल निकाला जा सके.
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