झारखंड में जमशेदपुर के महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (एमजीएम) में इस साल की 31 मई तक इलाज के लिए आए 185 बच्चे दम तोड़ चुके हैं.
इनमें से अधिकतर नवजात थे. 47 बच्चों की मौत इसी साल अप्रैल महीने में हुई. यह आदिवासी बहुल कोल्हान प्रमंडल का सबसे बड़ा अस्पताल है. यहां रोज सैकड़ों मरीज़ इलाज के लिए आते हैं.
एमजीएम अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ. नकुल प्रसाद चौधरी ने इन मौतों की पुष्टि की है.
संसाधनों की कमी
अस्पताल के एक वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी डॉ. एनपी चौधरी ने बीबीसी से कहा, ‘जनवरी से मई तक हमारे अस्पताल में 2478 बच्चे इलाज के लिए भर्ती कराए गए. इनमें से 185 बच्चों की मौत हो गई. वैसे भी यहां लाए जाने वाले सभी बच्चों को बचाया जाना संभव नहीं है.’
वे कहते हैं, ‘हम संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं. इसके बावजूद अस्पताल प्रबंधन चाहता है कि यहां कम से कम बच्चों की मौत हो. हम हर बच्चे की निगरानी करते हैं, लेकिन गंभीर स्थिति में लाए जाने के कारण सभी बच्चों की जान नहीं बच पाती.’
झूठ बोलते हैं डॉक्टर ?
हालांकि मृत बच्चों के परिजन इस तर्क को सिरे से नकारते हैं. सोनारी स्थित कालिंदी बस्ती की पुष्पा आरोप लगाती हैं कि एमजीएम अस्पताल के डॉक्टर इलाज को लेकर गंभीर नहीं रहते.
इस कारण बच्चों की मौत हो जाती है. बीते मार्च महीने में उनकी एक साल की बेटी भवानी ने इसी अस्पताल में दम तोड़ दिया. उन्होंने जुकाम और बुखार के बाद अपनी बेटी को भर्ती कराया था.
पुष्पा ने बीबीसी से कहा, ‘भवानी की हालत बिल्कुल ठीक थी. टुसु पर्व के बाद बुखार हुआ, तो हमलोग उसे एमजीएम लेकर गए. वहां डॉक्टरों ने उसे इंजेक्शन दिया और पानी (स्लाइन) चढ़ाया. वह ठीक होने लगी तो मैंने उसे खिलाना चाहा. वह खाने लगी थी तभी उसकी सांस बंद हो गई. अब मेरी बेटी इस दुनिया में नहीं है.’
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लापरवाही से हुई मौत
पुष्पा की पड़ोसन रानी के डेढ़ साल की बेटी शांतिकली की मौत भी इसी अस्पताल में हुई. उसके बाद परिजनों ने अस्पताल में हंगामा किया. तब पुलिस वहां पहुंची, लेकिन शांतिकली को सुई लगाने वाला कंपाउंडर तब तक अस्पताल से भाग चुका था.
रानी कहती हैं कि उनकी बच्ची की मौत डॉक्टरों की लापरवाही के कारण हुई. अगर डॉक्टर सतर्क रहते तो शांति की जान बचायी जा सकती थी.
2017 में भी सैकड़ों बच्चों की मौत
एमजीएम मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में बीते वर्ष भी 160 बच्चों की मौत हुई थी. झारखंड हाई कोर्ट ने इसे गंभीरता से लेते हुए पूर्वी सिंहभूम के ज़िला जज को अस्पताल के निरीक्षण के लिए भेजा था.
तब उन्होंने अस्पताल प्रबंधन को कमियां दुरुस्त करने का निर्देश दिया था पर आज भी सब कुछ वैसा ही है.
एक इन्क्यूबेटर में 5 बच्चे
यहां सिर्फ़ छह इन्क्यूबेटर हैं जबकि अस्पताल में सैकड़ों बच्चे भर्ती रहते हैं. अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ एनपी चौधरी ने बताया कि एक इनक्यूबेटर में सिर्फ़ एक बच्चे को रखा जाना चाहिए, लेकिन मजबूरी में एक-एक इन्क्यूबेटर में 4-5 नवजात को रखना पड़ता है.
कुपोषण बड़ी समस्या
एमजीएम अस्पताल के अधीक्षक डॉ एसएन झा ने कहा कि नवजातों की मौत की मुख्य वजह उनका कुपोषित होना है. उन्होंने बताया कि गर्भवती महिलाओं के एनिमिक होने के कारण यहां जन्म लेने वाले अधिकतर बच्चों का वज़न एक किलोग्राम से भी कम रहता है.
ऐसे बच्चों को सांस लेने में परेशानी होती है. उन्हें नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट (निकू) में रखा जाता है, लेकिन उन्हें बचा पाना काफ़ी मुश्किल होता है.
ऐसे बच्चों की मौत जन्म लेने के तीन-चार दिनों के अंदर ही दम घुटने (बर्थ एस्फिक्सिया) के कारण हो जाती है. इस अवस्था में नवजात न तो रो पाता है और न सांस ही ले पाता है. इस कारण उनकी मौत हो जाती है.
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