केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय की ओर से सभी स्कूलों में इसके इंस्टालेशन की औपचारिकताएं पूरी करने और अलग से बालिकाओं का शौचालय बनाने को कहा गया है. यह सुविधा छात्राओं के छात्रावास में भी बहाल करने को कहा गया है.
केंद्र सरकार के निर्देशों के आलोक में एनसीइआरटी ने भी स्कूलों के लिए कक्षा एक से लेकर 12वीं तक राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य और शारीरिक शिक्षा के तहत नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क 2005 का कोर्स तैयार किया है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से बालिकाओं के मासिक धर्म स्वास्थ्य संबंधी प्रबंधन के लिए प्राथमिकता के आधार पर आशा वर्कर के जरिये सैनिटरी नैपकीन रियायती दरों पर उपलब्ध कराने को कहा गया है.
झारखंड में भी प्रत्येक वर्ष 20 से 22 करोड़ रुपये की लागत से बालिकाओं के लिए सैनिटरी नैपकीन की खरीद की जा रही है. केंद्र सरकार इसके लिए राज्यों को अनुदान भी दे रही है. वहीं, केंद्रीय पेयजल और स्वच्छता विभाग की तरफ से भी मासिक धर्म स्वास्थ्य प्रबंधन (एमएचएम) नीति तैयार की गयी है, जो स्वच्छ भारत अभियान का एक हिस्सा है. इसमें मासिक धर्म के दौरान उपयोग में लाये जानेवाले सैनिटरी नैपकिन के बेहतर डिस्पोजल की नीति बनायी गयी है, जिसके लिए इंसीनरेटर लगाने को कहा गया है.