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बालश्रम का अभिशप्त कोयलांचल, बच्चे कोयला न चुनें तो घर में चूल्हा कैसे जले?

विकास सिन्हा झारखंड की राजधानी रांची से सटे रामगढ़ कोयलांचल में बालश्रम से कई बच्चे अभिशप्त हैं. हजारों बच्चे कोल इंडस्ट्रीज में अपने माता-पिता के हाथ बंटा रहे हैं. इन बच्चों को देखने वाला न सरकार है और न ही कोई स्थानीय संस्था. बच्चे अपनी माता-पिता के साथ घरों में कोयले के कारोबार में हाथ […]


विकास सिन्हा


झारखंड की राजधानी रांची से सटे रामगढ़ कोयलांचल में बालश्रम से कई बच्चे अभिशप्त हैं. हजारों बच्चे कोल इंडस्ट्रीज में अपने माता-पिता के हाथ बंटा रहे हैं. इन बच्चों को देखने वाला न सरकार है और न ही कोई स्थानीय संस्था. बच्चे अपनी माता-पिता के साथ घरों में कोयले के कारोबार में हाथ बंटा रहेहैं.

रामगढ़ कोयलांचल का पतरातू प्रखंड के अंतर्गत भुरकुंडा इसका जीवंत उदाहरण है. यहां के बच्चे रेलवे साइडिंग व आसपास को कॉलोनियों में कोयला बेचते नजर आते हैं. यह बच्चे 7 साल से लेकर 14 साल के उम्र के हैं. डंगरा टोली, रेलवे साइडिंग व उरीमारी क्षेत्र में बच्चे आसपास के क्षेत्रों में कोयला बेचते हैं. प्रति बोरा 40 रुपये की बिक्री करते हैं. डंगरा टोली के 12 वर्षीय रिशी, मेनका कुमारी व रानी कहतीहैं कि अगरवे कोयला नहीं बेचेंगे, तो उनके घर में चूल्हेे नहीं जलेंगे. पूछने पर ये बच्चे कहते हैं कि मध्य विद्यालय जाते हैं, लेकिन मिड डे मिल खाकर वापस घर को आ जातेहैं. सुबह वह कोयला चुन कर स्कूल जाताहै. यह केवल रिशी का ही नहीं,बल्कि गणेश, दिनेश, पिंटू, प्रेम भुइयां, गोलू, पिंटू सभी उसके साथ कोयला बेचते हैं.12वर्षीय सुमीत कहता है कि वह सरकारी स्कूल में पढ़ता है, लेकिन कोयले बेच कर ही स्कूल जाता है. डंगरा टोली के लगभग सभी बच्चे कोयला चुनने का काम करते हैं.

चारलाख का होता है प्रतिदिन अवैध कारोबार


रामगढ़ कोयलांचल में लाखों की प्रतिदिन कोयले का अवैध कारोबार किया जाता है. रामगढ़ कोयलाचंल में लगभग सभी क्षेत्रों में जिनमें बरकासयाल, कुजू क्षेत्र, रजरप्पा प्रोजेक्ट, अरगड्डा प्रक्षेत्र सहित सभी क्षेत्रों में प्रतिदिन कोयले की चोरी कर बाजार में बेचा जाता है. यह कोयला जिले में कार्यरत कई फैक्ट्ररियों तक भी पहुंचता है और हजारों की संख्या में लोग कोयला बोरे में भरकर साइकिल से रांची ले जाते हैं. क्षेत्र के युवा समाजसेवी, नेता व पत्रकार संजीव सिंह कहते हैं कि प्रतिदिन 50 टन से ज्यादा की कारोबार की जाती है. रेलवे से जाने वाले बॉगी में ज्यादातर चोरी की जाती है. इसके साथ ही रेलवे साइडिंग व अन्य माइंस एरिया से भी कोयले की चोरी होती है. अगर 50 टन कोयले को सामान्य कीमत लगभग 4,00,000 तक आंकी जाये, तो महीने में 1,20,00,000 (एक करोड़ बीस लाख) की कोयले की चोरी होती है. सालाना 12 करोड़ से ज्यादा की कोयले की चोरी होती है. यह एक अनुमानितकीमत है.

नहीं पहुंची सरकारी योजना


पंचायत चुनाव के बाद सरकारी योजना डंगरा टोली तक नहीं पहुंचसकीहै. आसपास की कॉलोनियों में जहां बिजली पानी मुहैया है, वहीं इस डंगरा टोली में न पानी है और न अन्य सुविधाएं. दुर्भाग्य यह है कि लगभग एक हजार की आबादी के बावजूद यहां सरकारी योजना नदारत दिखती है. कहने को आंगनबाड़ी केंद्र है, लेकिन महीने में एक बार ही खुलताहै. पूरे क्षेत्र में सरकारी अस्पताल नहीं होने के कारण लोग निजी क्लिीनिक में अपना इलाज कराते हैं.


स्थानीय युवा समाजसेवी बबल सिंह का कहना है कि इस क्षेत्र के विकास को लेकर कई बार सांसद व विधायक को मांग पत्र सौंपा लेकिन आज तक न सड़क बन पायी न ही पानी मुहैया हो पाया.


श्री सिंह कहते हैं कि पांचवर्ष के बाद भी पंचायत भवन नहीं बन पाया. लोग मुखिया के पास जाते हैं, तो कोई जवाब हीं नहीं मिलता. केवलआश्वासन ही उन्हें मिलता है. स्थानीय महिला बुटो देवी कहती हैं कि आज तक सरकारी योजना का कोई लाभ नहीं मिला. जनवितरण प्रणाली से मिलने वाले लाभ को भी वह नहीं जानती. किसी तरह अपना परिवार का पालन कर रही हैं.

कई लोग हैं मरीज


डंगराटोली सहित आसपास केक्षेत्र (चपरासी क्वार्टर, पटेल नगर, सयाल मोड़) में कई लोग गंभीर रूप से बीमार हैं. पूछने पर प्रो एनके सिंह कहते हैं कि धूलकण के कारण लोग टीबी के चपेट में आ रहे हैं. कई लोगों को टीबी हो चुकी है. कोल इंडिया का यहशाप है. जो कोयलांचल में रहेंगे, वह बीमार होंगे ही। यह निश्वित है लेकिन सरकार इसके लिए अस्पताल की व्यवस्था कराये.
स्थानीय निवासी परशुराम तिवारी कहते हैं कि वातावरण खराब होने के कारण लोगों को सांस की बीमारी हो रही है. स्वच्छ हवा नहीं मिल पाना एक इसका सबसे बड़ा कारण है. श्री तिवारी कहते हैं कि कई बच्चों को खांसी है. यहां आसपास में कोई स्वास्थ्य केंद्र नहीं है और न ही प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र. सभी लोग बीमार पड़ने पर निजीक्लिनिक में इलाज कराते हैं.

मिड डेमीलतक रुकते हैं बच्चे


डंगरा टोली के बच्चे सरकारी विद्यालय में जाकर पढ़ाई करते हैं. लेकिन यह पढ़ाई मिड डेमीलतक ही सीमित रहती है. मिड डेमीलके बाद कई बच्चे घर को आ जाते हैं. आसपास के सरकारी विद्यालयों में बच्चे पढ़ाई किया करते हैं.

नहीं बन पाया पंचायत भवन, आवास पर होता है काम

पंचायत कार्यालय नहीं होने के कारण ज्यादातर योजना की राशि वापस लौट जाती है. क्षेत्र के युवा समाजसेवी पिंटू लाल व बबल सिंह कहते हैं कि इस क्षेत्र में न तो पीसीसी रोड बनाया गया और न ही पेयजल व्यवस्था की गयी है. क्षेत्र के कई लोगोंं से बातचीत करने पर पता चला कि सीसीएल द्वारा एनओसी नहीं दिये जाने के कारण पंचायत भवन का कार्यालय नहीं बन पाया. सीसीएल का कहना है कि कब किस क्षेत्र में प्रोडक्शन करना पड़े, यह हमें नहीं मालूम पूरा क्षेत्र माइंस एरिया है. ऐसे में पंचायत भवन के लिए एनओसी अगर दे दिया जाता है, तो राज्य सरकार कीराशि कादुरुपयोग होगा. अगर पंचायत भवन बना दिया जाये और फिर उत्पादन के लिए माइंस करनी पड़े तो पंचायत भवन को तोड़ना होगा. ऐसे में 25 लाख कीराशि से बनने वाला पंचायत भवन कीराशि कादुरुपयोग होगा. इस कारण पंचायत भवन के लिए एनओसी नहीं दिया जाता है. सच यह है कि पूरा क्षेत्र ही कोल माइंस एरिया है.


टिप्पणी


बालश्रम को रोकने के लिए भारतीय संविधान में अधिकार दिये गये हैं. सरकार को चाहिए कि इसे अमल में लायें, पुनर्वास योजना को लागू करें.

– सुभागम कुमार, लॉ विशेषज्ञ

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(बालश्रम पर आधारित स्टोरी)

Prabhat Khabar Digital Desk
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