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दो वर्षों से माओवादी के निशाने पर था
बुधवार की रात आयी थी महेंद्र चौधरी की दो बेिटयों की बारात पांडू (पलामू) : माओवादी संगठन छोड़ने के बाद से ही महेंद्र चौधरी संगठन के निशाने पर था. दो वर्षों से माओवादी इस ताक में थे कि कैसे महेंद्र को निशाना बनाया जाये. लेकिन प्रयास के बाद भी माओवादियों को मौका नहीं मिला था. […]
बुधवार की रात आयी थी महेंद्र चौधरी की दो बेिटयों की बारात
पांडू (पलामू) : माओवादी संगठन छोड़ने के बाद से ही महेंद्र चौधरी संगठन के निशाने पर था. दो वर्षों से माओवादी इस ताक में थे कि कैसे महेंद्र को निशाना बनाया जाये. लेकिन प्रयास के बाद भी माओवादियों को मौका नहीं मिला था.
दो माह पहले जब माओवादियों को पता चला था कि महेंद्र चौधरी घर आया है तो दस्ता उसके घर आ धमका था. लेकिन दस्ता में जो लोग शामिल थे, वह महेंद्र को नहीं पहचानते थे, इस कारण महेंद्र की जान बच गयी थी. बताया जाता है कि बुधवार की रात जो दस्ता आया था, उसमें कई सदस्य ऐसे थे, जो महेंद्र को पहचानते थे. इसलिए पहले सादे लिबास में आये माओवादियों ने उसे ढूंढा. जब वह बाहर में नहीं मिला तो घर के अंदर जाकर उसे पकड़ा गया. महेंद्र चौधरी टीपीसी के लिए काम करता था. इस वर्ष उसके घर चार शादी होने वाली थी. दो बेटी की बारात बुधवार की रात ही आयी थी.
महेंद्र के भाई सुरेंद्र साहनी और राजेंद्र चौधरी के बेटी की शादी इसी लगन में होने वाली है. लेकिन इस घटना के बाद परिजन काफी दहशत में हैं. महेंद्र चौधरी की बेटी रिंकी की बारात औरंगाबाद जिला के बारून तथा संध्या की बारात गढ़वा थाना क्षेत्र के गांगी से आयी थी. महेंद्र की छह बेटी और एक लड़का है. इसके पहले भी वह एक लड़की की शादी कर चुका था.
महेंद्र चौधरी के भाई सुरेंद्र साहनी ने बताया कि आठ माओवादियों ने उसके घर हमला बोला था. माओवादियो में अजयजी का दस्ता आया था. जिसने घटना को अंजाम दिया है. सुरेंद्र साहनी का कहना है कि जो दो माओवादी सादे लिबास में थे, वह माओवादी अजय यादव और नितेश यादव थे. जिन लोगों ने उनके भाई महेंद्र चौधरी को मंडप में खड़ा कर गोली मार दी. बदला लेने का यह तरीका नहीं है.
दुश्मन के घर भी यदि बेटी की बारात आती है, तो मौका नहीं साधा जाता. लेकिन माओवादियों ने कायरतापूर्वक कार्रवाई कर उनकी भाई की हत्या की है. पूर्व में भले ही उसके भाई का नाता संगठन से रहा था, लेकिन हाल के दिनों में वह किसी भी उग्रवादी संगठन से जुड़ा नहीं था, वह मुख्यधारा में आकर मजदूरी कर अपना जीवनयापन करता था. अपनी दोनों लड़कियों की शादी करने के बाद उसने तय किया था कि गांव में नहीं रहेगा.
बाहर जाकर कमायेगा, क्योंकि जब वह गांव में रहता था तो यदाकदा माओवादी उसे ढूंढते घर पहुंच जाते थे और बेगुनाहों के साथ मारपीट करते थे, इसी से बचने के लिए वह बाहर जाकर कमाना चाहता था, लेकिन माओवादियों ने उससे बदला ले लिया. सुरेंद्र साहनी का कहना है कि जिन माओवादियों ने हमला बोला है, उस दस्ता में अजय व नितेश यादव के अलावा संजय यादव, एनुल खान शामिल थे, जिसे वह पहचानता है. पुलिस मामले की छानबीन करने में जुटी है.
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